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जैविक खेती जमीन की ही नहीं जीवन की भी जरूरत

जैविक खेती जमीन की  ही नहीं  जीवन की भी जरूरत

खेती महंगी हो गयी है। कृषि उपकरण, बीज, खाद, पानी और मजदूर सब महंगे हो गये हैं। सरकार लाख दावा कर ले, रिजर्व बैंक की रिपोर्ट यह सच सामने लाती है कि आज भी पांच में से दो किसान बैंकों की बजाय महाजनों से कर्ज लेकर खेती करने को मजबूर हैं, जिसकी ब्याज दर ज्यादा होती है। दूसरी ओर किसान हों या सरकार, सबका जोर कृषि उत्पादन की दर को बढ़ाने पर है। ज्यादा उत्पादन होने पर कृषि उपज की कीमत बाजार में गिरती है। तीसरी ओर अधिक उत्पादन के लिए हाइब्रिड बीज और रासायनिक खाद व कीटनाशक के इस्तेमाल से फलों और सब्जियों में सड़न जल्दी आ रही है। किसान उन्हें ज्यादा समय तक रख नहीं सकते। इन सब का नुकसान किसानों

अब करें कुदरती खेती

अब करें कुदरती खेती

विगत दस-बारह वर्षों से दुनिया भर में पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों के अन्धाधुंध दोहन और खेती-बाड़ी के आधुनिक तौर-तरीकों को लेकर एक बहस चल रही है, कि खेती में जैसी तकनीकें पिछले तीस-चालीस वर्षों से अपनाई गई हैं क्या वे खेत और किसान दोनों को ही बर्बाद कर रही हैं?

धान अर्थात चावल की वैज्ञानिक खेती कैसे करें

धान अर्थात चावल की वैज्ञानिक खेती कैसे करें

धान  (ओराइजा सटाइवा) ग्रेमिनी या पोएसी कुल का महत्वपूर्ण सदस्य हे। खाद्यान्नों में धान का महत्वपूर्ण स्थान है एंव विश्व की जनसंख्या का अधिकांश भाग दैनिक भोजन में चावल का ही उपयोग करता है। चावल हमारी संस्कृति की पहचान है।बिना रोली -चावल के पूजा नहीं होती तथा माथे पर तिलक नहीं लगता। हमारे यहाँ नव -विवाहित जोड़ों पर अक्षत वर्षा की आज भी परंपरा है। विश्व में खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से चावल की फसल का विशेष योगदान है। संसार की 60 प्रतिशत आबादी के भोजन का आधार चावल                ही है। देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या का प्रमुख खाद्यान्न चावल है। धान ही एक ऐसी फसल है जिसे समुद्र तल से नीचे तथा हिम

रंगों से पहचानें कीटनाशक की तेजी

 खेती में अधिक उत्पादन के लिए किसान अधिक रसायनों का प्रयोग करते हैं। फसलों के कम पैदावार के कई कारणों में से कीट, बीमारियां एवं खरपतवार प्रमुख हैं। अधिक उत्पादन लेने हेतु बुवाई से पूर्व बीजोपचार तथा बुवाई के बाद कीट नियन्त्रण एवं समय-समय पर बीमारियों से बचाव हेतु विभिन्न रासायनिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है, जिनमें से अधिकतर रसायन बहुत जहरीले होते हैं।

बदल रहे हैं अनाज के कटोरे

 deष के अनाज के कटोरे

करीब 50 साल पहले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को देशवासियों से यह अपील करनी पड़ी थी कि वे दिन में एक वक्त खाना न खाएं. 1965 के सूखे के बाद देश में अनाज की आपूर्ति काफी तंग हो गई थी और देशभक्ति की भावना के तहत अनाज के अतिशय उपभोग के खिलाफ चेताया जा रहा था. लोगों से कहा जा रहा था: आप खाने के बाद जितना छोड़ देते हैं, बाकी लोगों के पास उतना भी नहीं है.

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