अखरोट की खेती
अखरोट (जुगलांस प्रजातियाँ) देश का अति महत्वपूर्ण शीतोष्ण फल है। अखरोट उत्तराखण्ड का एक महत्वपूर्ण फल है जो कि केवल मुख्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता हैं। अखरोट में मौजूद ओमेगा-3 व 6 फैटी अम्ल एवं 60 प्रतिशत तेल की मात्रा होने की वजह से यह पोष्टिक, औषधीय एवं औद्योगिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर कम करने के साथ-साथ रक्त वाहनियों की क्रियाओं के सुचारू संचालन तथा मैमोरी बढ़ाने में भी सहायक होता है।भारत में अखरोट अलग-अलग आकारों एवं आकृतियों के पाए जाते हैं। भारतीय अखरोटों की चार श्रेणियाँ अर्थात कागज़ी खोलदार, पतला-खोलदार, मध्यम खोलदार, सख्त खोलदार अखरोट है। अखरोट 900 से 3000 तक की ऊंचाई पर फलता है |
खेती के क्षेत्र :
जम्मू और कश्मीर, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश प्रमुख उपजाऊ क्षेत्र है लेकिन कुल क्षेत्र एवं उत्पादन में जम्मू और कश्मीर में सर्वाधिक क्षेत्र में अखरोट की खेती की जाती है।
भारत के विभिन्न राज्यों में उगाए जाने वाले अखरोटों की किस्में हैं :
जम्मू और कश्मीर लेक इंग्लिश, ड्रेनोवस्की और ओपक्स कॉलचरी
हिमाचल प्रदेश गोबिन्द, यूरेका, प्लेसेन्टिया, विल्सन फ्रैंकुयेफे और कश्मीर अंकुरित
उत्तरान्चल चकराता सिलेक्शन्स
अखरोट का पेड़
अखरोट के उत्पत्ति का स्थान हमे ईरान मिलता है जहा से शुरू होकर ये इटली स्पेन, फ्रान्स, जर्मनी होते हुए भारत में इसकी खेती सेब या एप्पल की खेती की तरह ही हिमाचल प्रदेश ,उत्तराखंड , कश्मीर के कुपवाड़ा, उड़ी, , द्रास और पुंछ आदि बर्फीली घाटियों और अरूणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में की जाती है
अखरोट का तेल
जो त्वचा , बालों और दिल के लिए लाभकारी होता है। मानव शरीर के लिए अखरोट का तेल सबसे लाभकारी होता है।
इसके फलों का छिलका पतला होता है। जिसे ही 'कागजी अखरोट' कहते हैं#2404; इसका उपयोग बन्दूकों के कुन्दे बनाये में किया जाता हैं
अखरोट का पोधा
समुद्र तल से करीब 1200 से 2200 मीटर की उंचाई पर लगने वाले
अखरोट का फल बहार से एक हरे आवरण में लिपटा हुवा किसी गोल आकार की कैरी की तरह नजर आता है
अखरोट को फलने फूलने के लिए मौसम का तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेट से नीचे होना चाहिए। इसका फल जैसे ही इसका तापमान 2 से 4 सेंटीग्रेट तक बढ़ता है, वैसे ही फल की ऊपरी परत सूखने लगती है और ये फल तैयार हो जाता है
जैसे ही अखरोट के पोधे को ग्राफ्टिंग से तेयार होने के बाद हम सभी जानते है की शीतोष्ण कटिबंधी पोधो की रोपाई का काम ठण्ड के मोसम में यानि की जनवरी में की जाती है अखरोट की खेती के लिए 1 मीटर लम्बा, 1 मीटर चोडा,और 1 मीटर गहरा गड्डे खोद कर उसमे अखरोट के पोधे को लगाते है
खाद और उर्वरक
गड्डे खोदने के बाद निकाली गई बहार की मिट्टी में हम नत्रजन ,फास्फोट,पोटाश और गोबर की खाद मिला दी जाती है जिसमे हमे नत्रजन की 50 से 60 gm ,
फास्फोट की 40 से 45 gm,और पोटाश की 35 से 40 gm मात्रा को 10 gm गोबर की खाद में अच्छी तरह मिला कर
मिट्टी में इन तीनो पोषक तत्वों को पोधे के बढवार के समय देना आवश्यक है जब तक की ये फल देने लायक ना हो जाये
ध्यान रहे जिस भी भूमि में अखरोट लगाने से पहले वहा पर मिट्टी की जाच कर पोषक तत्व देना एक वैज्ञानिक तरीका है
पर्वतीय क्षेत्र में अखरोट बहुतायत में होता है। अन्य फल की तुलना में ये एक लंबे समय तक (करीब 200 साल )इसकी खेती फायदा पहुचाती है वर्तमान में अखरोट की वैज्ञानिक पद्धति से खेती कर अच्छी पैदावार लेने का अब हमारे पास पहले से आधिक अच्छा सुनहर मोका है।
भारत तथ्य और आंकड़े :
वर्ष 2016-17 के दौरान देश ने 2,191.19 मीट्रिक टन अखरोट का निर्यात विश्वभर में किया गया और 55.27 करोड़ रुपए / 8.27 मिलियन अमरीकी डॉलर अर्जित किए।
प्रमुख निर्यात लक्ष्य (2016-17): भारत से अखरोट के आयातक देशों में फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड, संयुक्त अरब गणराज्य, नेपाल, जर्मनी और सूडान प्रमुख है।