कृषि नीति
खेती का नाश नही सत्यानाश
Submitted by Aksh on 29 June, 2019 - 18:57भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है | देश के ग्रामीण इलाकों में रहनेवाली आबादी भारी तौर पर कृषि पर ही आधारित है | इस देश का किसान अपनी मेहनत और परिश्रम के बल पर अनाज उगाता है, उसे सींचता है फिर भी उनकी मेहनत का मूल्य उपजाने में लगी लागत से भी कम मिलता है| अब कृषि फायदे का सौदा नहीं रहा| लोग कृषि से दूसरी क्षेत्र की ओर पलायन को मजबूर हो रहे हैं| कृषि पर निर्भर रहनेवाले लोगों की तादाद तेजी से घाट रही है | देश में 45 फीसदी यानी आधे से भी कम लोग कृषि पर निर्भर है | देश का 64% क्षेत्र खेती के लिए मानसून और बारिश की मेहरबानी पर निर्भर है | आबादी बढ़ रही है, खाधान्नों की मांग बढ़ रही है
कृषि उद्यमिता विकसित हो
Submitted by Rewanand Nikaju on 28 February, 2018 - 22:50आज के एमबीए एवं इंजीनियरिंग शिक्षा की भेड़चाल में शामिल बहुत कम लोग जानते हैं कि सन 1952 में धार कमेटी की अनुशंसा पर आईआईटी खड़गपुर में कृषि एवं खाद्य इंजीनियरिंग में बीटेक की शिक्षा शुरू की गई थी। लेकिन समय के साथ बाजार के किसी अनजाने दबाव ने इसे कम्प्यूटर एवं इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी जैसा लोकप्रिय रोजगार परक विषय नहीं बनाया। आप जब आईआईटी या अन्य इंजीनियरिंग कॉलेजों में इसके बारे में पता करेंगे तो इस पर भी आपको पोस्ट हार्वेस्टिंग के कोर्स और रोजगार की जानकरी ज्यादा मिलेगी और शुरू में कोर्स की ड्राफ्टिंग में ही कृषि एवं खाद्य इंजीनियरिंग को एक साथ जोड़ देने से शिक्षा एवं रोजगार का ज्यादा फोकस
आंकड़ों और प्रयोगों ने किया भारतीय कृषि का सत्यानाश
Submitted by Aksh on 3 July, 2017 - 18:10भारत में ऋग्वैदिक काल से ही कृषि पारिवारिक उद्योग रहा है। लोगों को कृषि संबंधी जो अनुभव होते रहे हैं, उन्हें वे अपने बच्चों को बताते रहे हैं। उनके अनुभवों ने कालांतर में लोकोक्तियों और कहावतों का रूप धारण कर लिया, जो विविध भाषा-भाषियों के बीच किसी न किसी कृषि पंडित के नाम प्रचलित हैं। हिंदी भाषा-भाषियों के बीच ये 'घाघ' और 'भड्डरी' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके ये अनुभव आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों के परिप्रेक्ष्य मे खरे उतरे हैं, लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम विदेशियों की तरफ आकृष्ट होने लगे हैं।