अधिक जनसंख्या और गिरती उपज का एक मात्र हल जैविक खेती
दुनिया की धरती 60 वर्षों में अनउपजाऊ हो जायेगी अगर किसान रासायनिक खाद का इसी प्रकार प्रयोग करते रहे। इसमें विशेष अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि उस समय दुनिया में अनाज की कितनी कमी हो जायेगी और भूखमरी से कितना हा-हा-कार मचेगा। इतना तो अवश्य है कि यूरोप के देश जो इस समय यूरिया आदि का बहुत कम इस्तेमाल कर रहे हैं उनकी धरती संभवतः आज से 100 वर्ष तक उपजाऊ रहे अगर, वह धरती को ठीक उपजाऊ और पौष्टिक पदार्थ देते रहे। सिडनी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जौन कराफोल्ड, जो धरती की उपज क्षमता बनाये रखने के विशेषज्ञ हैं, ने चेतावनी दी है कि मनुष्य मात्र को और विशेषकर किसानों को जागरूक होकर इस समस्या का हल करना होगा।
विश्व की जनसंख्या जो इस समय 6.8 अरब से बढ़कर 2050 तक 9 अरब हो जायेगी इसलिए धरती की अनउपजाऊता से मनुष्य जाति को और भी अधिक खतरा है
अधिक जनसंख्या और गिरती उपज।
भारत के किसान इस यथार्थ को कब तक नकारेंगे यह कहा नहीं जा सकता परंतु विश्व के जाने-माने वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि धरती की ऊपरी परत का इसी प्रकार दोहन किया गया तो केवल 60 वर्षों में धरती की उपज के पूरी तरह समाप्त होने के संकेत मिल जाएंगे। धरती की उपजाऊ क्षमता बनी नहीं रह सकती जब तक उसमें ऐसे पदार्थ न डाले जाये जो धरती की कुदरती खुराक हैं जैसे गोबर और गोमूत्र और अन्न से बनी जैविक खाद।
विश्व की पृथ्वी की ऊपरी परत खराब हो रही है क्योंकि किसान अधिक से अधिक रासायनिक खादों का प्रयोग कर रहे हैं। समय-समय पर हमारे विशेषज्ञ ऐसी चेतावनी देते रहे हैं कि वास्तव में धरती को पौष्टिक जैविक इत्यादि खाद चाहिए जिससे उसकी गुणवत्ता बनी रहे। इस चेतावनी का व्यापक असर तो नहीं हुआ परंतु जिन किसानों ने जैविक खाद से खेती की उनको तीन प्रकार के लाभ हुए ः एक तो उनकी धरती की पौष्टिता बनी रही, उपज अधिक हुई और उनको उपज के दाम भी अधिक मिले क्योंकि उपभोक्ता भी यही चाहता है कि वह स्वच्छ चीजें खाये और यह स्वच्छता उसको रासायनिक खादों से उगने वाले अनाज, फल और सब्जियों से प्राप्त नहीं होती।
सन 2010 में आस्ट्रेलिया में धरती के वैज्ञानिकों की एक बैठक हुई थी। हर एक वैज्ञानिक ने चिंता प्रकट की कि विश्व में अनाज की उपज में कमी का कारण है कि धरती की ऊपरी परत बहुत कमजोर हो गई है। विश्व की बढ़ती आबादी और उस आबादी के खाने-पीने की वस्तुओं का तीव्र गति से दोहन के कारण धरती की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है। इन वैज्ञानिकों का कहना था कि अनुमान के अनुसार 75 अरब टन धरती हर वर्ष बेकार हो रही है। इसके कारण 80 प्रतिशत दुनियां की खेती की जमीन की उपजाऊ शक्ति पर असर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों से आने वाले ऐसे आंकड़ों पर विश्वास न करना अपने आप को धोखा देना है। हमें मानना होगा कि यह सही है इसलिए चिंताजनक है।
सिडनी के विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक व्यापक खोज की जिसके अनुसार चीन की धरती कुदरती खाद के साधनों जैसे गोबर, गोमूत्र, पेड़ों के गिरे पत्ते इत्यादि से ठीक न होने के कारण सबसे अधिक खराब हो रही है। ऐसे ही भारत की धरती भी जहां रासायनिक खादों का अधिक प्रयोग है, यह खराबी चीन के मुकाबले बहुत कम है परंतु फिर भी चिंताजनक है। यूरोपीय देशों में धरती की खराबी चीन के मुकाबले एक तिहाई है क्योंकि वहां रासायनिक खादों का उपयोग बहुत कम हो रहा है, अमेरिका में सबसे कम और आस्ट्रेलिया में सबसे कम।
जैविक खेती की एक मात्र हल
इसका एकमात्र हल यह है कि भारत की परंपरागत धरती पोषण की नीति को अपनाकर गोबर, गोमूत्र और पत्ते की पौष्टिक खाद का प्रयोग हो। हम भूलें नहीं कि भारत की लंबी संस्कृति जो लाखों साल की जानी-मानी है धरती की उपजाऊ शक्ति कभी कम नहीं हुई जब तक कि पिछले कुछ हीं दशकों में रासायनिक खाद का प्रचार-प्रसार किया गयाऔर इसका आयात अंधाधुंध ढंग से हुआ। गोबर इत्यादि की खाद से किसान युगों-युगों से अपनी धरती की उपज बढ़ा रहे हैं। इसका व्यापक असर तब हो अगर सरकार हानिकारक रासायनिक खाद का आयात बंद कर दे और किसानों को देसी खाद से खेती करने को प्रोत्साहित करे। ऐसा न करने से भारत की खेती का वही हाल होगा जो चीन की खेती का हो रहा है। जैविक खेती करने के लिए किसान को गायों का पालन करना होगा ताकि गोबर और गोमूत्र की उपलब्धि हो सके जिससे वह जैविक खाद बनाएं
डॉ राधा कान्त सिंह
राष्ट्रीय अध्यक्ष
किसान हैल्प
कृषि विशेषज्ञ