जमीन में हो रही है ह्यूमस मिट्टी की कमी
चल रही महती प्राकृतिक आपदा से कृषिक त्राहि त्राहि कर रहा है, क्यूँकि आने वाला वर्ष उसके लिए निःसन्देह बहुत ही कठिन सिद्ध होने वाला है । ऐसी भीषण समस्या का समाधान क्या हो, इस पर गम्भीर विचार विमर्श करने की आवश्यकता है ।सम्पूर्ण समाज को कृषिकों की हानि का सहभागी बनने के लिए प्रेरित किया जाए । यह कार्य व्यापक प्रचार के माध्यम से किया जा सकता है । यदि खाने के लिए अन्न नहीं होगा, तो सभी जन भूखे रहते हुए मृत्यु को प्राप्त होंगे ही । इतिहास में ऐसा हुआ है, और भविष्य में भी भीषण आपदा आने से इस भुखमरी की सम्भावना को कदापि नकारा नहीं जा सकता, केवल न्यून किया जा सकता है । अतः हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं, कि कृषि को पहुँची हानि वस्तुतः केवल कृषिकों की ही नहीं, अपितु समाज के एक एक व्यक्ति की हानि है । और जब यह हानि एक प्राकृतिक आपदा के कारण हो, तो क्यूँकि इसमें कृषिक का कोई भी दोष नहीं है, अतः इस हानि के भार को केवल कृषिक के शीर्ष पर रख देना तर्क से विपरीत ही दिखाई देता है ।
किसी एक भूमि में बारबार फसल के उगाने और उसमें खाद न देने से कुछ समय के बाद भूमि अनुत्पादक और ऊसर हो जाती है. भूमि की उर्वरता के नाश होने का प्रमुख कारण भूमि से उस पदार्थ का निकल जाना है जिसका नाम ‘ह्यूमस (Humus) है. ह्यूमस भूरे-काले रंग का पदार्थ, जो जैव पदार्थों के अंशतया गलने-सड़ने से बनता है. यह मिट्टी का जैव अंश है. मिट्टी में विद्यमान विघटित तथा अंशतः विघटित जैविक पदार्थ जिनकी उत्पत्ति जन्तुओं अथवा वनस्पतियों के सड़ने-गलने से होती है. अकृषित भूमि में पूर्ववर्ती पौधों तथा जंतुओं के प्राकृतिक रूप से सड़ने-गलने (विघटन) से ह्यूमस की प्राप्ति होती है किन्तु कृषित एवं जोती गयी भूमि में जैविक खाद द्वारा भी ह्यूमस की आपूर्ति होती है. ह्यूमस युक्त मिट्टी उपमिट्टी (sub soil) की तुलना में गहरे रंग की होती है. ह्यूमस सामान्यतः मिट्टी के संस्तर में पायी जाती है. मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने में ह्यूमस की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण किन्तु जटिल होती है. विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में विद्यमान ह्यूमस की मात्रा में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है. ह्यूमस के अभाव में मिट्टी मृत और निष्क्रिय हो जाती है और उसमें कोई पेड़ पौधे नहीं उगते.
ह्यूमस में पेड़-पौधों के आहार ऐसे रूप में रहते हैं कि उनसे पेड़ पौधे अपना आहार जल्द ग्रहण कर लेते हैं. उसके अभाव में पेड़-पौधे अच्छे फलते-फूलते नहीं हैं. मिट्टी के खनिज अंश में भी कुछ ह्यूमस रह सकता है पर वह सदा ही ऐसे रूप में नहीं रहता कि पौधे उससे लाभ उठा सकें. ह्यूमस से मिट्टी की भौतिक दशा अच्छी रहती है ताकि वायु और जल उसमें सरलता से प्रवेश कर जाते हैं इससे मिट्टी भुरभुरी रहती है. एक ओर जहाँ ऐसी मिट्टी नमी का अवशोषण कर उसको रोके रखती है वहाँ दूसरी ओर आवश्यकता से अधिक जल को निकाल देने में भी समर्थ होती है. ह्यूमस से मिट्टी में बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म जीवाणुओं के बढ़ने और सक्रिय होने की अनुकूल स्थिति उत्पन्न हो जाती है और इस प्रकार पौधों के पोषक तत्व की प्राप्ति में सहायता मिलती है. वस्तुत: पौधों के आहार प्रस्तुत करने का ह्यूमस एक प्रभावकारी माध्यम होता है. बलुआर मिट्टी में इसके रहने से पानी रोक रखने की क्षमता बढ़ जाती है जिससे बलुआर मिट्टी का सुधार हो जाता है और मटियार मिट्टी में इसके रहने से उसका कड़ापन कम होकर उसे भुरभुरी होने में इससे सहायता मिलती है.
ह्यूमस की प्राप्ति के दो स्रोत हैं, एक प्राकृतिक और दूसरा कृत्रिम. प्राकृतिक स्रोत में वायु और वर्षा के जल से कुछ ह्यूमस मिट्टी को प्राप्त हो सकती है. कृत्रिम स्रोत है मिट्टी में हरी खाद, गोबर खाद, कंपोस्ट आदि डालना. खनिज उर्वरकों से ह्यूमस नहीं प्राप्त होता. अत: केवल कृत्रिम उर्वरक डालकर खेतों को उपजाऊ नहीं बनाया जा सकता. उर्वरकों के साथ-साथ ऐसी खाद भी कुछ अवश्य रहनी चाहिए जिससे मिट्टी में ह्यूमस आ जाए. ह्यूमसवाली मिट्टी काले या भूरे रंग की, भुरभुरी एवं सछिद्र होती है और उसमें जल अवशोषण की क्षमता अधिक रहती है.
उत्तर प्रदेश के 74 जिलों किए गए अध्ययन से पता चला है कि प्रदेश की भूमि में काली ह्यूमस मिट्टी की लगातार कमी हो रही है. गौरतलब है कि काली मिट्टी में महत्वपूर्ण कार्बन कंपाउड पाया जाता है. जो कि फसलों की उपज के लिए आवश्यक होता है. वहीं कृषि अधिकारियों का भी मानना है कि मिट्टी की ऊपरी परत से ह्यूमस गायब हो रही है. पौधे की वृद्धि के लिए जरूरी न्यूनतम काली मिट्टी भी भूमि में मौजूद नही है.
जबकि काली मिट्टी में पाए जाने वाले कार्बन और नाइट्रोजन मिलकर नाइट्रेट बनाते हैं, जो कि पौधों के लिए जरूरी होता है. राज्य के सरकारी रिकार्ड के मुताबिक 2009 से 2010 के दौरान ललितपुर जिले के साथ ही 71 और जिलों में बहुत ही कम मात्रा में काली ह्यूमस मिट्टी की मात्रा दर्ज की गयी है. मिट्टी में कम से कम एक फीसदी काली ह्यूमस मिट्टी का होना जरूरी है. लेकिन पिछले कुछ समय में इसकी मात्रा गिरकर 0.75 फीसदी रह गयी है.
ये मसला हाल ही में प्रदेश असेंबली में दलबीर सिंह ने मिट्टी में लगातार कम हो रही काली ह्यूमस के लिए सरकार से सवाल किया था. जवाब में सरकार ने कहा था कि रासायनिक उत्पादों पर ज्यादा निर्भरता ने हमें इस हालात में ला दिया है. लेकिन इस सब के बावजूद सराकर की तरफ ने अब तक इसको लेकर कोई योजना नही बनायी है. वहीं अधिकारियों का दावा है कि वो किसानो को पारंपरिक गोबर की खाद प्रयोग करने की सलाह दे रहे हैं. सरकार की तरफ से भी ऐसा कहा जा रहा है की 10 करोड़ रूपये का फंड पारंपरिक कृषि योजना के तहत खर्च किया जाएगा.
ह्यूमस मिट्टी मिट्टी की कमी के कारण उत्पादन भी गिर रहा है. किसानों के लिए आवश्यक है की वह जैविक खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करें खेत की उर्वरकता को बढाए जिससे खेतों में ह्यूमस मिट्टी बनी रहे और खेत बंजर होने से बचे रहे. खेतों में फसल होने से भी खेत की मिट्टी का कटान कम होता है. इसके अतिरिक्त खेतों की मेडबंदी करें और पेड़ों की संख्या में वृद्धि करें जिससे बारिश में भी मिट्टी की ऊपरी परत का क्षरण न हो