जल ,जंगल और जमीन को लेकर हो सकता है तीसरा विश्व युद्ध
जल ,जंगल और जमीन को लेकर हो सकता है तीसरा विश्व युद्ध ऐसे कयास बहुत ही दिनों से लगाये जा रहे हैं लेकिन कब होगा ऐसा निश्चित रूप में कह पाना मुश्किल है।केपटाउन में पानी खत्म हो ने के बाद यह सत्य होता नजर आ रहा है कि 2040 के लगभग जब दुनिया के अधिकतर बड़े शहरों में पानी खत्म हो जाएगा और इस दौड़ में भारत के भी बहुत से शहर गिनती में हैं।
पाकिस्तान का सीमा विवाद या चीन द्वारा बार बार भारत की सीमा पर कब्जा करने के पीछे कई दिनों से मैने मनन किया कि क्या वजह हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? भारत का उत्तरी क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों और पानी से परिपूर्ण है।देश की सबसे ज्यादा जल प्रवाह वाली नदियां उत्तर भारत में ही हैं । देश के बड़े हिस्से में इस समय सूखे का कहर है. खेती की बात छोड़िये पीने के पानी की भी भारी किल्लत देश के कई हिस्सों में इस समय बनी हुई है ।
आज़ादी मिले 70 वर्ष होने के बाद भी हम सूखे और बाड़ जैसी समस्याओं से स्थायी निजात नहीं पा सके है। इसके पीछे बड़ा कारण हमारे राजनेताओं की संकुचित सोच और अक्षमता तथा नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार है। तीसरे विश्व युद्ध से पहले गृह युद्ध आपने नासिक में गोदावरी तट पर मौजूद पवित्र रामकुंड के बारे में तो जरूर सुना होगा। ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान राम और सीता ने यहीं स्नान किया था । हर साल यहां गुड़ी पड़वा पर्व के मौके पर हजारों श्रद्धालु पवित्र डुबकी के लिए यहां जुटते हैं । गोदावरी तट पर स्थित होने के कारण कभी ऐसा नहीं हुआ कि इस कुंड में पानी न हो.इस साल यह कुंड पूरी तरह सूख गया । हालात यह हुए कि नासिक नगर पालिका ने टैंकर्स से पानी मंगवाकर रामकुंड को लबालब भरा, ताकि श्रद्धालुओं की भक्ति में कोई कमी न रहे। इस वक्त महाराष्ट्र का एक बड़ा इलाका पानी के लिए त्राहिमाम कर रहा है.ऐसे में तो अच्छा होता कि रामकुंड को खाली ही छोड़ दिया जाता, ताकि हजारों लोगों के पास यह मैसेज तो जरूर पहुंचता कि आज नहीं संभले तो आने वाला वक्त और भी बुरा गुजरेगा । आज डुबकी लगाने को टैंकर से पानी भरने की नौबत आ गई कल हो सकता है यह टैंकर भी न हो। मंथन का वक्त है कि हम पानी के लिए कितना गंभीर हैं।
इस वक्त देश के करीब 12 राज्य सूखे की मार झेल रहे हैं । इनमें से दस राज्य तो ऐसे हैं जहां किसानों की हालत सबसे अधिक खराब है.आजाद भारत में ऐसा पहली बार है कि गर्मी की शुरुआत से ही एक साथ इतने राज्यों की हालत खराब है.धीरे-धीरे यह बद से बदतर ही होती जाएगी.ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जो फटकार लगाई है उसके कई मायने हैं.कोर्ट ने केंद्र की गंभीरता पर सवाल उठाए हैं । केंद्र के साथ-साथ कई राज्यों ने जो रवैया अपनाया है वह भी अपने आप में काफी गंभीर सवाल पैदा करता है।
बिहार, हरियाणा और गुजरात सरकार ने तो हद ही कर दी। वे सूखे के हालात पर सही तथ्य भी पेश नहीं कर सके, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि क्या आप यहां पिकनिक मनाने आते हैं। मौसम विभाग ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि सामान्य से कम बारिश होने की स्थिति में इस बार स्थिति गंभीर रहेगी.सूखे से सबसे अधिक प्रभावित गरीब वर्ग और किसान है.पूरे देश से खबरें आ रही हैं.सूखे की सबसे अधिक मार महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बुंदेलखंड, कर्नाटक आदि राज्यों में है.कर्नाटक में तो स्थिति यह है कि कृष्ण सागर बांध ही सूख गया है.कई राज्यों में पहली बार पानी का गंभीर संकट सामने आया है, जबकि मराठवाड़ा में तो यह स्थिति पिछले करीब पांच सालों से है.यहां पानी बंटने के कई प्वाइंट्स निर्धारित हैं, जहां लंबे समय से धारा-144 लगी हुई है. हाल ही में केंद्रीय जल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश भर के जलाशयों में पानी की भारी कमी रिकॉर्ड की गई है.ऐसे में गंभीर संकट की तरफ इशारा है.आंकड़ों के अनुसार देश के 91 प्रमुख जलाशयों में मार्च के अंत तक उनकी कुल क्षमता के 25 फीसदी के बराबर ही पानी बचा था. महाराष्ट्र में तो यह आंकड़ा सिर्फ 21 फीसदी ही है.अदालतें लगातार अपनी सख्त टिप्पणियों से सरकारों का ध्यान पानी की गंभीर समस्याओं की तरफ दिला रही हैं.एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सहित कई राज्यों को फटकार लगाई है, वहीं दूसरी तरफ बांबे हाईकोर्ट ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के लिए पानी की बर्बादी को आपराधिक बर्बादी माना है.वहां एक जनहित याचिका में बताया गया है कि महाराष्ट्र में तीन जगहों मुंबई, नागपुर और पुणे में आईपीएएल के बीस मैच प्रस्तावित हैं.ऐसे में पिच और मैदान की देखरेख में करीब 65 लाख लीटर पानी खर्च होगा.सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि जो राज्य लगातार तीन साल से सूखे की मार झेल रहा है वहां पानी की इस तरह की बर्बादी कहां तक जायज है. आज की जल प्रबंधन व्यवस्था से केवल उद्योगपति ही खुश हैं। सरकारें समस्या से वाकिफ होने के बावजूद कॉर्पोरेट दबाव के आगे नतमस्तक हैं। ज्यादा नहीं, अगले 10 साल बाद ही भारत व्यापक जल संकट के मुहाने पर खड़ा होगा।
इसमें पानी की कमी, मिट्टी का कटाव और कमी, वनों की कटाई, वायु और जल प्रदूषण ने और इजाफा ही किया है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का अनुमान है कि तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि सालाना गेहूं की पैदावार में 15-20% की कमी कर देगी और पानी को रसातल में पहुंचा देगी।जलसंकट को भांपते हुए कनाडा, इजराइल, जर्मनी, इटली, अमेरिका, चीन और बेल्जियम जैसे देशों की कंपनियां संग्रहण, बचाव और सीमित दोहन के लिए दीर्घकालीन योजनाएं लागू कर चुकी हैं जबकि हम इन्हीं देशों की कंपनियों को हमारे प्राकृतिक जल संसाधनों का दोहन करने का लाइसेंस जारी करते जा रहे हैं। इस सार्वभौमिक सत्य को स्वीकारने में तनिक भी संकोच नहीं होना चाहिए कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए ही लड़ा जाएगा।
देश में औसत तापमान 47 डिग्री सेल्सियस पहुंच चुका है। तेलंगाना, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र के उत्तरी इलाके बीड, नांदेड, परभणी, जालना, औरंगाबाद, नाशिक और सतारा सूखे की स्थिति का सामना कर रहे हैं। दक्षिणी कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में पानी के नाम पर दंगे भी हुए। कम बारिश ने पूरे देश में भूजल स्तर घटा दिया है। आबादी का घनत्व ज्यादा है, खेती के तरीके असंवेदनशील हैं और औद्योगीकरण बड़े स्तर पर हो रहा है। शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, बड़े पैमाने पर कृषि का विस्तार तथा जंगलों के नष्ट होने से सब गड्ड-मड्ड हो गया है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा हम नेपाल, उत्तराखंड, चीन, चिली सहित कई देशों में देख ही रहे हैं। दुनिया के कुल क्षेत्रफल का सिर्फ 2.4% होने के बावजूद भारत में विश्व की 18% जनसंख्या रहती है और जो वर्ष 2016 तक 1.26 अरब हो जाएगी और अगले 35 साल में भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। ऐसे में हर प्यासे के हलकों को तर कर पाना सबसे बड़ी चुनौती होगी।