ज्वार की उन्नत खेती

भारत वर्ष में 1970 में 9 मि. टन ज्वार पैदा होती थी जो 1980 में बढ़कर 12 मि. टन पहुँच गई तथा 1990 में इतनी ही पैदावार स्थिर रही जो 2006 तक स्थिर रही लेकिन इसका क्षेत्रफल काफी कम हो गया। क्षेत्रफल कम होने के बावजूद पैदावार में कमी न आने का कारण उन्नत किस्में व तकनीकी रही। भारत में ज्वार 8.7 मि.है. क्षेत्रफल में जिसमें 3.9 मि.है. खरीफ में तथा 4.8 मि.है. रबी मौसम में उगाई जाती है। दुनिया में ज्वार के अन्तर्गत, कुल क्षेत्रफल का 20 प्रतिशत क्षेत्र भारत में आता है। खरीफ के मौसम में उत्पादकता 1345 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा रबी में 480 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर होती है। अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का योगदान 0.7 मि.है. से बढ़कर 6.5 मि.है. हो गया है। इसके बावजूद 80 मि.टन हरे चारे की तथा 660 मि.टन सूखे चारे की कमी प्रति वर्ष रहती है।

ज्वार दुनिया में पाँचवें नम्बर का खाद्यान है तथा करीब तीस देशों के 50 करोड़ से ज्यादा लोग इस पर आश्रित हैं। इसका उत्पादन करीब 98 देशों में 42 मि.है. में किया जाता है। अफ्रीका, एशिया व अमेरिका के देश इसके उत्पादक हैं। ज्वार को 55प्रतिशत रोटी व दलिया के रूप में तथा पौधे को जानवरों के खाने के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। अमेरिका में 33प्रतिशत ज्वार दाने को जानवरों के खाद्यान के रूप में प्रयोग किया जाता है।

विकसित तकनीकि एवं इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है जिससे बीज रिप्लेसमेंट को 15-20 प्रतिशत से आगे बढा़या जा सके। तभी उत्पादन व उत्पादकता दोनों को बढ़ाया जा सकेगा। किसान नई किस्मों का बीज स्वयं के लिये बना सके यही उद्देश्य इस लेख में दिया गया है।

बीज उत्पादन तकनीकि

बीज उत्पादन हेतु, दक्षता, पुष्पज्ञान एवं लक्षण का ज्ञान आवश्यक है। निम्न बातों का ध्यान रखें तो उत्तम बीज का उत्पादन किया जा सकता है।

खेत का चुनाव: ताकि तैयारी समय से हो सके

किस्म का चुनाव: अपने क्षेत्र के अनुसार

बीज की गुणवत्ता : आधार बीज या प्रमाणित बीज

बीजोपचार : कैपटान या कैपटाफ 2 ग्रा. प्रति किग्रा. बीज

बुआई का समय: जून के उत्तरार्ध या जुलाई के आरम्भ मे

बीज की दर: 12 से 15 किग्रा. प्रति हेक्टेयर

खाद: नेत्रजन 75 से 80 किग्रा. आधी मात्रा बुआई से पहले तथा आधी पहले पानी के बाद फास्फोरस 30-40 किग्रा. बुआई पर पोटाश 25-30 किग्रा. बुआई पर 4 किलो साडा वीर 2 किलो बुबाई पर शेष 1 किलो प्रथम सिचाई पर व 1 किलो दूसरी सिचाई पर

अच्छी बढ़वार के लिए प्रथम सिचाई के बाद साडा वीर 4G 500 ml प्रति एकड़ स्प्रे, तथा35 से 45 दिन पर साडावीर फंगस फ़ाइटर का स्प्रे 200 ग्राम प्रति एकड़ करें।

सिंचाई: बुआई के बाद जमाव आने के 20-25 दिन बाद पहला पानी दें तथा दूसरा पानी आवश्यकता पड़ने पर या फूल आने पर दें।

पृथक्करण दूरी प्रजनक बीज हेतु दूसरे खेत से 400 मी. तथा प्रमाणित बीज के लिए 200 मी. की दूरी अवश्य रखें। लाईन से लाईन की दूरी 40-50 से.मी. रखें।

खरपतवार नियन्त्रण: खरपतवार से बचाव करने हेत बुआई से पहले 0.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर एट्राजिन स्प्रे करें। इन्टर कल्चर के द्वारा भी खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है।

मुख्य बीमारियाँ:

मधुमिता (शूगरी डिसीज़): फूल आने की अवस्था से पहले (बूट लीफ स्टेज) पर 0.2 प्रतिशत जीरम का पाँच दिन के अन्तराल पर दो बार स्प्रे करने से इस बीमारी से बचाव हो जाता है।

हनी डयू: बाली में यदि हनी डयू दिखाई दे तो उसे बाहर निकाल कर नष्ट कर दें। 

पत्ती पर धब्बे (लीफ स्पाट): डाइथेन जेड-78 0.2 प्रतिशत का दो बार15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करने से बचाव हो जाता है।

मुख्य कीट

तना छेदक : प्रभावित पौधे को बाहर निकाल दें तथा एण्डोसल्फान या कार्बेरिल का 4 प्रतिशत का घोल बनाकर जमाव के 20 दिन बाद 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।

तना मक्खी : बीज को 5 प्रतिशत कार्बोफ्यूरान से उपचारित कर बोने से यह मक्खी नहीं लगती है। फोरेट दानेदार 1.5 ग्रा. प्रति वर्गमीटर के हिसाब से डालने से भी बचाव हो जाता है।

सिट्टे की मक्खी : कार्बेरिल डस्ट 20 किग्रा. प्रति है. से बचाव किया जा सकता है।

दीमक : यदि खेत लम्बे समय से सूखे से प्रभावित है 25 किग्रा. सल्फर प्रति है. बचाव हेतु डालें।

चेपा : मेलाथियान 50 मिली. 50 ली. पानी प्रति है. स्प्रे करने से चेपा का नियन्त्रण हो जाता है। 

चूहा : फूल आने की अवस्था में जिंक फास्फाईड की गोली अवश्य डालें ताकि चूहों से बचाव किया जा सके।

रोगिंग (अवाँछित पौधे निकालना) 

परागकण झड़ने से पहले किसी भी किस्म के अवाँछित पौधे निकाल देने चाहिए। गुणों के आधार पर उनकी पहचान की जा सकती है। बीमारी ग्रस्त पौधे भी अवश्य निकाल दें। किसी पौधे को शक के आधार पर बिल्कुल न छोड़ें।

कटाई एवं गहाई 

फसल अच्छी तरफ पकने पर ही काटें। बीमारी ग्रस्त पौधे निकल गये हों यह सुनिश्चित कर लें। कटाई के बाद एक सप्ताह तक फसल को फर्श पर सुखायें। उसके बाद थ्रेशर से गहाई करें। स्टोर करने से पहले बीज में नमी ज्यादा न हो।

पैदावार 

18-20 कु. प्रति है.

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जैविक खेती: