झींगा मछली पालन
मत्स्यपालन देश में आर्थिक रूप से पिछड़े अंतर्देशीय एवं समुद्री आबादी के एक बड़े वर्ग के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत है। यह उपलब्ध जल स्रोतों के उपयोग के लिए प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता के माध्यम से संभव हो सका है और यही कारण है कि यह वर्तमान में आय और रोजगार निर्माण का एक शक्तिशाली जरिया बन गया है।
लाभकारी है यह मछली
अभी तक मुख्य रूप से कार्प मछलियों (भारतीय मेजर कार्प उदाहरणार्थ कतला, रोहू व नैन तथा विदेशी कार्प उदाहरणार्थ सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प व कामन कार्प) के पालन की ओर ध्यान केन्द्रित रहा है। लेकिन, वर्तमान में मत्स्य विभाग द्वारा झींगा पालन पर भी बल दिया जा रहा है। मत्स्य पालक झींगा पालन के माध्यम से पर्याप्त रूप से लाभान्वित हो सकते हैं।
बाजार में ऐसी है मांग
1- जायन्ट फ्रेश वाटर प्रान यूं तो भार में 400 ग्राम तक हो जाता है किन्तु लगभग 50 ग्राम का झींगा बाजार में विक्रय योग्य माना गया है।
2- 6-7 माह में तैयार होने वाली यह नगदी फसल है तथा भार के अनुसार झींगों का मूल्य 200 से 300 प्रति किग्रा प्राप्त हो सकता है।
झींगा पालन हेतु तालाब :
झींगा पालन के लिए 0.1 से 1.0 हेक्टेयर क्षेत्रफल के आयताकार ऐसे तालाब जिनमें पानी भरने व बाहर निकालने की उचित व्यवस्था हो, उपयुक्त होते हैं ताकि पानी बाहर निकालकर झींगों को आसानी से पकड़ा जा सके।
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तालाब की मिट्टी :
1- तालाब की मिट्टी की पी-एच 6.5-7.5, रेत 40 प्रतिशत, क्ले की मात्रा 40 प्रतिशत व सिल्ट 20 प्रतिशत उपयुक्त होती है।
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तालाब का जल :
तालाब के जल का रंग हल्का हरा अथवा भूरा तथा गहराई 1.0 मीटर होनी चाहिए। पारदर्शिता 35-40 सेंमी., पी-एच 7.5, जलीय तापमान 18.34 डिग्री सेल्सियस, घुलित आक्सीजन 5 मिली ग्राम प्रति लीटर तथा कठोरता 50-150 मिली ग्राम प्रति लीटर उपयुक्त होती है। घुलित आक्सीजन को बढ़ाने के लिये तालाब में ताजा पानी मिलाया जाना चाहिये अथवा एरेटर की व्यवस्था की जानी चाहिये। मत्स्य पालक अपने तालाब की मिट्टी व पानी का परीक्षण मत्स्य विभाग की प्रयोगशालाओं द्वारा करा सकते हैं।
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चूने का प्रयोग व उर्वरकीकरण
तालाब में पानी भरने के बाद पी-एच को दृष्टिगत रखते हुए 250-500 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से चूने का प्रयोग एवं मिट्टी में उपलब्ध नाइट्रोजन व फास्फोरस को देखते हुए क्रमश: 250 किग्रा प्रति हेक्टेयर यूरिया व 200 किग्रा प्रति हेक्टेयर सिंगिल सुपर फास्फेट का प्रयोग विभागीय प्रयोगशालाओं की संस्तुतियों के अनुसार किश्तों में करना चाहिए ताकि तालाब में छोटे-छोटे कीड़े उत्पन्न हो सकें और प्राकृतिक आहार के रूप में उनका भक्षण झींगों द्वारा किया जा सके।
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झींगा बीज संचय
1.0 हेक्टेयर जलक्षेत्र के ऐसे तालाब जिसमें पानी बदलने और वायुकरण की सुविधा न हो, में 20-35 हजार तथा ऐसे तालाब जिसमें जल बदलाव, ऑक्सीजन देने की सुविधायें उपलब्ध हों, में 70-80 हजार तक झींगा बीज संचय किया जा सकता है।
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झींगा बीज की उपलब्धता
जायन्ट फ्रेश वाटन प्रान के प्रजनन के लिए खारे जल की आवश्यकता होती। झींगा बीज उत्तर प्रदेश में तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उड़ीस आदि प्रदेशों से मंगाया जा सकता है। इसके लिए मत्स्य पालक उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग से सम्पर्क कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश की जलवायु को देखते हुए प्रदेश में मार्च/अप्रैल में झींगा बीज संचित किया जाना तथा नवम्बर माह तक हारवेस्टिंग किया जाना उपयुक्त व लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
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झींगा हेतु कृत्रिम आहार
झींगा हेतु कृत्रिम आहार में 28-30 प्रतिशत प्रोटीन (50 प्रतिशत जन्तु और 50 प्रतिशत वनस्पति साधन में) उपलब्ध होनी चाहिए। आहार ऐसा दिया जाना चाहिए जो झींगा के लिए संतुलित भोजन हो, पानी में स्थिर रहे तथा जल को कम प्रदूषित करे।
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उत्पादन व विपणन :
मादा झींगों की अपेक्षा नद झींगे आकार में बड़े होते हैं। सभी झींगे तालाब को खाली करके निकाले जा सकते हैं। 6-7 माह की पालन अवधि में लगभग 1000 किग्रा प्रति हेक्टेयर झींगा उत्पादन हो सकता है, जिसे यदि 250 रुपये प्रति किग्रा की दर से बेचा जाय तो रू० 2,50,000/- की आय सम्भव है। तालाब प्रबन्ध व्यवस्था, उर्वरक, झींगा बीज, कृत्रिम आहार, विटामिन, मिनरल एवं दवाईयां, अन्य विविध व्यय आदि पर लगभग एक लाख 25 हजार का व्यय सम्भावित है। मीठे जल का महाझींगा (जायन्ट फ्रेश वाटर प्रान) जिसका वैज्ञानिक नाम मैक्रोब्रेकियम रोजनबर्गाई है। जल में नीचे अथवा किनारों पर रेंगने वाला आलसी प्रवृत्ति का सर्वभक्षी जीव है। जलीय कीड़े-मकोड़े, क्रस्टेनिशयन लार्वा तथा छोटे घोंघे आदि इसका प्राकृतिक भोजन हैं और रात्रिचर होने के कारण यह रात्रि काल में अधिक सक्रिय होता है। मीठे जल के महाझींगा में स्वजातिभोजी प्रवृत्ति होती है। खाद्य पदार्थ की उपलब्धता के अभाव अथवा भूख की अवस्था में बड़े झींगे छोटे झींगों को अपना आहार बना लेते हैं।