जायद में दलहन की फसल लाभकारी सौदा
जायद में दलहन की फसल लाभकारी सौदा
दलहनी का उत्पादन लगातार घटने से इनकी कीमतोे में आग लगी है। दाल गरीबों की थाली से दूर हो चुकी है। एसे में जायद की फसल उगाकर इस आग को बुझाया जा सकता है। रबी फसलों की कटाई फरवरी माह से शुरू होकर अप्रैल तक चलती रहती है और सभी खेत खाली पड़े रहते हैं। जायद ऋतु में दिन 12-13 घंटे का होने से दलहनी फसलों में ज्यादा भोजन बनता है जिससे फसल अवधि 70 से 80 दिन मात्र ही होती है। कम अवधि होने से उत्पादन लागत कम होने के साथ कीट व्याधि व जानवरों से नुकसान की संभावना भी कम हो जाती है और भरपूर उत्पादन मिलता है।
खेत की तैयारी
इसमें जमाव हेतु नमी सुनिश्चित करने के लिए पलेवा के बाद ओट आने पर कल्टीवेटर डिस्क हैरो से जुताई करके खेत को भुरभुरा, समतल व खरपतवार रहित कर लेते हैं।
प्रजातियों का चुनाव
उत्पादन तकनीक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय उपयुक्त प्रजातियों का चयन है क्यों कि अनुशंसित प्रजातियों के बोने का प्रभाव तुरंत एवं विश्वविद्यालयों के अथक एवं समन्वित प्रयासों से जायद मूंग में पूर्वोत्तर मैदानी क्षेत्र हेतु प्रजातियों जैसे नेहा, सम्राट, पूसा विशाल, एसयूएम 1, नरेंद्र मूंग-1 व उर्द हेतु उत्तरा, आजाद उर्द 1,2 पन्त उर्द 35,19 व नरेंद्र उर्द-1 आदि विकसित किये है।
बुवाई का समय
जायद दलहन उत्पादन बढ़ाने में बुवाई के समय का बहुत महत्व है। यदि बुवाई समय पर की जाये तो न केवल पैदावार अधिक मिलती है। बल्कि रोग और कीटों की संभावना भी काफी कम हो जाती है। फलियां पकते समय वर्षा का होना काफी नुकसानदायक होता है। उर्द की बुवाई मार्च के प्रथम पखवारे तक करना लाभप्रद होता है। तो वहीं मूंग को मार्च के प्रथम सप्ताह से लेकर अप्रैल के प्रथम सप्ताह के मध्य करना चाहिए।
बीज शोधन
दलहन बीजों को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए गौ मूत्र में शोधित कर लेना चाहिए। इस प्रक्रिया को राइजोबियम कल्चर से उपचार करने के 2-3 दिन पूर्व कर लेना चाहिए।
बीजोपचार
राइजोवियम कल्चर का एक पैकेट 250 ग्राम दस किलो बीज के लिए पर्याप्त होता है। इसके लिए आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ घोलकर इसमें एक पैकेट कल्चर मिला दिया जाता है। अब इसे 10 किग्रा बीज पर डालकर अच्छी तरह से मिला ले जिससे सभी बीज पर कल्चर का लेप अच्छी प्रकार से चिपक जाय। उपचारित बीजों को 2-3 घंटे छाया में सुखाकर तुरंत बुवाई करें। इससे पैदावार में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
बुवाई की विधि
बुवाई सदैव लाइन से होनी चाहिए इसके लिए मल्टीक्राप सीड ड्रिल या देशी हल का प्रयोग करना चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 25 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखना लाभप्रद पाया गया है।
बीज की मात्रा
जायद में उचित पौध संख्या रखने के लिए 25 से 30 किग्रा बीज प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहिए। सधन पौधे होने पर उत्पादन में कमी आ जाती है तथा फसल अवधि बढ़ जाती है।
उर्वरक प्रयोग
उर्वरक प्रयोग मृदा परीक्षण के अनुसार क चाहिए। जायद दलहन में 60 किग्रा गोबर की खाद ट्राईकोडरमा के साथ मिला कर बुवाई के 10 दिन पहले करना चाहिए। २ किग्रा नीम की खली और अरंडी की खली मिला कर बुवाई के समय कूड़ों में बीज से 2-3 सेमी नीचे देना चाहिए। 200 किग्रा जिप्सम के अतिरिक्त प्रयोग से कैल्शियम व गंधक की पूर्ति हो जाती है। तथा पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है।
सिंचाई
जायद दलहन में कुल 3से4 सिचाईयों की आवश्यकता पड़ती है। प्रथम बुवाई के 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिए, जल्दी कर देने पर जमाव व राइजोवियम गाठों की संख्या पर प्रतिकूल असर पड़ता है। शेष सिंचाई 12-15 दिन के अन्तराल पर करते रहना चाहिए। फूल आने से पहले तथा फलियों में दाना बनते समय सिंचाई अत्यन्त आवश्यक है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवारों की रोकथाम अच्छे उत्पादन के लिए अति आवश्यक है। शोध परिणामों के अनुसार पेन्डिमेथलीन 3.5 लीटर प्रति हेक्टर छिड़काव बुवाई के 48 घंटे के अंदर करने के साथ 25-30 दिन पर एक गुड़ाई कर देने पर भूमि में वायुसंचार व जड़ों का विकास अच्छा होने से उपज में बढ़ोत्तरी होती है।
फसल सुरक्षा
पीला चित्तेरी रोग- इस रोग के अधिक प्रकोप होने पर पूरी फसल पीली दिखाई पडऩे लगती है। यह विषाणुओं द्वारा उत्पन्न रोग है तथा सफेद मक्खी द्वारा फैलाया जाता है। रोग को फैलाने वाली मक्खी के नियंत्रण हेतु नीम का काड़ा 5 लीटर प्रति लीटर दर से 60 लीटर पानी में घोलकर एक एकड़ फसल पर छिड़काव करें। प्रभावित पौधों को उखाड़कर जमीन में दबा दें। बालदार सूंडी, पत्ती छेदक सूंडी, थ्रिप्स व सफेद मक्खी तथा जंगली पशु फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम हेतु 5 किलो नीम का पत्ता 2 किलो आँक का पत्ता 250 लहसुन तथा 500 तम्बाकू का पत्ता या धतुरा का पत्ता को 15 लीटर पानी में उबाल कर जब पानी 8 लीटर पानी रह जाये तो ठंडा करके उसे 15 लीटर पानी में 1 लीटर काड़ा मिलकर छिड़काव कर देना चाहिए। किसान भाई यदि उपरोक्त तकनीकि बिन्दुओं को अपने जायद की खेती में अमल करते हैं तो 10-12 कुंटल प्रति हेक्टर उपज के साथ वायु द्वारा होने वाला मृदा क्षरण की रोकथाम भूमि की उपरी उपजाऊ सतह की रक्षा व फली तुड़ाई उपरान्त हरी खाद में प्रयुक्त करके टिकाउ खेती को भी बढ़वा मिलता है।