सूत्रकृमि

सूत्रकृमि या गोल कृमि (नेमैटोड) अपृष्ठवंशी, जलीय, स्थलीय या पराश्रयी प्राणी है। ये सूदूर अन्टार्कटिक तथा महासागरों के गर्तों में भी देखें गएं हैं। इनका शरीर अखंडित, लम्बे पतले धागे जैसा तथा बेलनाकार होता है, इसलिए इसे राउण्डवर्म कहा जाता है। इनको प्राणि जगत में एक संघ की मर्यादा प्राप्त हैं। इनकी लगभग 8०,००० जातियाँ हैं जिसमें से 15000 से अधिक परजीवी है। इस जन्तु में नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं जिसमें नर छोटा तथा पीछे का भाग मुड़ा़ हुआ रहता है किन्तु मादा का शरीर सीधा होता है। नर का जनन अंग क्लोयका के पास होता है किन्तु मादा का जनन अंग वल्वा के रुप में बाहर की ओर खुलता है। इनमें रक्त-परिवहन तंत्र और श्वसन तंत्र नहीं पाये जाते हैं इसलिए श्वसन का कार्य विसरण के द्वारा होता है।

सूत्रकृमि फसलों पर अदृश्य खतरा

फसलों में बहुत से ऐसे कीड़े लगते हैं जो उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। जिन्हें हम आंखों से देखने में समर्थ होते हैं उनकी रोकथाम मुमकिन है लेकिन किसान द्वारा मेहनत से उगाई गई फसल के लिए कई ऐसे शत्रु भी हैं जो आंखों से नहीं दिखाई देते हैं, उनसे निपटना ज्यादा मुश्किल होता है।

इन्हें केवल माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है। 95 फीसदी किसानों को इसके विषय में कोई जानकारी नहीं होती है। ऐसे अज्ञात शत्रु बरसों से फसलों को नुकसान पहुंचाते आ रहे हैं। इन्हें सूत्रकृमि कहते हैं। जड़ों को भेदकर उनमें गांठ बनाने वाले सूत्रकृमियों की संख्या कई लाख होती है।