सूत्रकृमि फसलों पर अदृश्य खतरा

फसलों में बहुत से ऐसे कीड़े लगते हैं जो उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। जिन्हें हम आंखों से देखने में समर्थ होते हैं उनकी रोकथाम मुमकिन है लेकिन किसान द्वारा मेहनत से उगाई गई फसल के लिए कई ऐसे शत्रु भी हैं जो आंखों से नहीं दिखाई देते हैं, उनसे निपटना ज्यादा मुश्किल होता है।

इन्हें केवल माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है। 95 फीसदी किसानों को इसके विषय में कोई जानकारी नहीं होती है। ऐसे अज्ञात शत्रु बरसों से फसलों को नुकसान पहुंचाते आ रहे हैं। इन्हें सूत्रकृमि कहते हैं। जड़ों को भेदकर उनमें गांठ बनाने वाले सूत्रकृमियों की संख्या कई लाख होती है। 

क्या होते हैं सूत्रकृमि

सूत्रकृमि एक परजीवी होता है। इन्हें ‘गोल कृमि’ या ‘धागा कृमि’ भी कहा जाता है। इनकी अनेक प्रजातियां पौधों की जड़ों व उनके भूमिगत भागों पर पलती हैं जबकि कुछ पौधों के वायवीय भागों पर भी आक्रमण करती हैं। ये स्वयं भरण करके, पौधों में कार्यिकीय विकृतियां उत्पन्न करके पौधों को कमजोर बनाती हैं और उन्हें आर्थिक क्षति पहुंचाती हैं।

दलहन और तिलहन की फसल भी करते हैं बर्बाद

पौधे में सूत्रकृमि जाइलम और फ्लोएम में घर बना लेता है। पौधे को खाना पानी इसी से मिलता है। सूत्रकृमि पौधे में उपस्थित पोषक पदार्थों को शोषित कर लेता है, जिससे पौधा कमजोर पड़ जाता है और फसल सूखने लगती है। जिन पौधों में सूत्रकृमियों का प्रकोप होता है, वहां फफूंदी, जीवाणु और कीटों का आक्रमण भी ज्यादा होता है। फलस्वरूप पौधे के विकास के लिए विकराल स्थिति पैदा हो जाती है। सब्जियों के अलावा ये परजीवी कृमि गेहूं दलहन एवं तिलहन की फसल भी बर्बाद करते हैं।

खेतों में चारा वाली फसलें लगाएं

सूत्रकृमि से बचाव के लिए फसल को काटने के बाद रोग ग्रसित जड़ को उखाड़कर जला देना चाहिए। यदि पौधा पीला दिखायी दे तो उसकी जड़ उखाड़कर गाठ ढूंढने का प्रयास करें। सूत्रकृमि से प्रभावित खेत से दूसरे खेत में पानी नहीं ले जाना चाहिए नहीं तो सूत्रकृमि दूसरे खेतों में भी चले जाते हैं। जिन खेतों में इनका प्रकोप दिखायी दे उसमें एक बार चारा वाली फसलें जरूर लगाएं। इससे बचने का आसान तरीका है कि किसानों को गर्मी के दिनों में खेतों की गहरी जुताई कर खेत को एक माह तक खुला छोड़ देना चाहिए और बुआई से पहले खेत में नीम की खली 250 किग्रा. प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में मिला देना चाहिए।

सूत्रकृमि की वजह से भ्रम में रहते हैं किसान

सूत्रकृमियों के प्रकोप से लगभग 30 से 40 फीसदी उत्पादन प्रभावित हो रहा है। नग्न आंखों से दिखाई न पड़ने वाले इस सूत्रकृमि की खासियत यह है कि यह अपने आश्रयदाता को पूरी तरह नुकसान नही पहुंचाता केवल पौधे से अपनी खुराक भर का पोषक तत्व लेता रहता है, जिससे पौधा जिंदा तो रहता है लेकिन बहुत अधिक कमजोर हो जाता है, जिससे पौधों में अन्य बीमारियां लगने की सम्भावना प्रबल हो जाती हैं। सूत्रकृमियों का प्रकोप अधिक होने पर पौधा ऊपर से पीला दिखाई पड़ता है। किसान यह समझता है कि पौधे को पोषक तत्व की जरूरत है, इसलिए वह खेत में नत्रजन को प्रयोग करता है।फलस्वरूप सूत्रकृमियों की संख्या तीन से चार गुना बढ़ जाती है।

सूत्रकृमि रोग के लक्षण

वृद्धि का रुक जाना, पौधों में प्रबलता की कमी, विकृत पौध, विरुपित तना,विरुपित जड़, फूल विकास मे रुकावट

सूत्रकृमि प्रबंधन

मृदा सौरीकरण, रोपाई का समय, फसल चक्र, विरोधी फसल, कार्बनिक पदार्थ प्रयोग, जल भराव, खरपतवार प्रबन्धन, रासायनिक नियंत्रण

नर्सरी प्रबन्धन

 

रोगरहित बीज का चयन, कार्बेन्डाजिम एक मिलीग्राम/किलो मृदा, नीम सीड पाउडर 50 मिलीग्राम/ किलो मृदा फसल प्रबन्धन: नीम की खली 250-400 किग्रा0/हे0, ट्राइकोडर्मा हरजियानम (मित्र फफूंद) पांच िग्रा,पेसिलोमाइसीज

डॉ. डीएस श्रीवास्तव 

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जैविक खेती: