भारत की जैव विविधता
विश्व के बारह चिन्हित मेगा बायोडाइवर्सिटी केन्द्रों में से भारत एक है। विश्व के 18 चिन्हित बायोलाजिकल हाट स्पाट में से भारत में दो पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट हैं। देश में 45 हजार से अधिक वानस्पतिक प्रजातियाँ अनुमानित हैं, जो समूची दुनियॉ की पादप प्रजातियों का 7 फीसदी हैं। इन्हें 15 हजार पुष्पीय पौधों सहित कई वर्गिकीय प्रभागों में बांटा जाता है। करीब 64 जिम्नोस्पर्म 2843 ब्रायोफाइट, 1012 टेरिडोफाइट, 1040 लाइकेन, 12480 एल्गी तथा 23 हजार फंजाई की प्रजातियाँ लोवर प्लांट के अंतर्गत् अनुमानित हैं। पुष्पीय पौधों की करीब 4900 प्रजाति भारत देश की स्थानिक हैं। करीब 1500 प्रजातियाँ विभिन्न स्तर के खतरों के कारण संकटापन्न हैं।
भारत खेती वाले पौधों के विश्व के 12 उद्भव केन्द्रों में से एक है। भारत में समृध्द जर्म प्लाज्म संसाधनों में खाद्यान्नों की 51 प्रजातियाँ, फलों की 104 प्रजातियाँ, मसालों की व कोन्डीमेंट्स की 27 प्रजातियाँ, दालों एवं सब्जियों की 55 प्रजातियाँ, तिलहनों की 12 प्रजातियाँ तथा चाय, काफी, तम्बाकू एवं गन्ने की विविध जंगली नस्लें शामिल हैं।
देश में प्राणी सम्पदा भी उतनी विविध है। विश्व की 6.4 प्रतिशत प्राणी सम्पदा का प्रतिनिधित्व करती भारतीय प्राणियों की 81 हजार प्रजातियाँ अनुमानित हैं। भारतीय प्राणी विविधता में 5000 से अधिक मोलास्क और 57 हजार इनसेक्ट के अतिरिक्त अन्य इनवार्टिब्रेट्स शामिल हैं। मछलियों की 2546, उभयचरों की 204, सरीसृपों की 428, चिड़ियों की 1228 एवं स्तनधारियों की 327 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारतीय प्राणी प्रजातियों में स्थानिकता या देशज प्रजातियों का प्रतिशत काफी अधिक है, जो लगभग 62 फीसदी है।
जैव विविधता की क्षति
भारत जैव विविधता के मामले में विश्व के समृध्दशाली देशों में से एक है। ऐसी नैसर्गिक सम्पदा पर धनी राष्ट्रों की नजर है। यही कारण है, इनकी तस्करी खुलेआम हो रही है। वनस्पतियाँ और जीव-जंतुओं को बड़े पैमाने पर चोरी-छिपे ले जाया जा रहा है। भारत में जैव विविधता को क्षति पहुँचाने उसे चोरी छिपे ले जाने के पर्याप्त कानून नहीं हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ खाद्यान्नों को ले जाने की कोशिश में लगी हैं। वास्तविकता है कि जैव विविधता आमजन की नैसर्गिक सम्पदा है, जिसका अधिकार सरकारें किसी को नहीं दे सकती।
जैव विविधता जीवन की सहजता के लिए जरूरी है। प्रकृति का नियामक चक्र जैव विविधता की बदौलत दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वनस्पति, खाद्यान्न, जीव-जंतुओं की अनुपस्थिति से कितना नुकसान हो सकता है। वैज्ञानिक भी इसका आंकलन नहीं कर सकते। धरती अगिनत, अमूल्य धरोहर संजोए हुए, जीवन को जीवन्त बनाए हुए हैं।
गीता का एक श्लोक है- ‘जीव जीवनस्य भोजनम।
यह प्राकृतिक और जीवन क्रम के लिए जरूरी है। हवा, जल, मिट्टी जीवन के आधारभूत तत्व हैं। प्राकृतिक रूप से इनका सामंजस्य सतत् जीवन का द्योतक है। एक संक्षिप्त उध्दरण से देखें- मिट्टी से फसलें और कीट-पतंगे उन पर आश्रित हैं। शाकाहारी व मांसाहारी जीवों का भोजन यही है। मेढक और चूहे जिन पर आश्रित हैं साथ ही सांप, पक्षीगण आदि। इनको खाने वाले नेवले और मोर हैं। इन्हीं के बीच अनेक कीट, जीव व पशु-पक्षी हैं। इनका सम्बन्ध जितना जटिल होगा, जैव विविधता उतनी ही समृध्द होगी।
रेबीज और गिद्ध
पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस प्रमुख देशों में आता है। भारतीय उप महाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। दुनिया भर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के पक्षियों का 14 प्रतिशत है। गंदगी साफ करने में कौआ और गिध्द प्रमुख हैं। गिध्द शहरों ही नहीं, जंगलों से खत्म हो गए। 99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिध्दों के न रहने से हमने क्या खोया।
1997 में रेबीज से पूरी दुनिया के 50 हजार लोग मर गए। भारत में सबसे ज्यादा 30 हजार मरे। आखिर क्यों मरे रेबीज से, एक प्रश्न उठा। स्टेनफोर्ट विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि ऐसा गिद्धों की संख्या में अचानक कमी के कारण हुआ। वहीं दूसरी तरफ चूहों और कुत्तों की संख्या में एकाएक वृद्धि हुई। अध्ययन में बताया गया कि पक्षियों के खत्म होने से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का प्रकीण्र् ान और परागण भी काफी हद तक प्रभावित हुआ। अमेरिका जैसा देश अपने यहाँ के चमगादड़ों को संरक्षित करने में जुटा पड़ा है। अब हम सोचते हैं कि चमगादड़ तो पूरी तरह बेकार हैं। मगर वैज्ञानिक जागरूक करा रहे हैं। चमगादड़ मच्छरों के लार्वा खाता है। यह रात्रिचर परागण करने वाला प्रमुख पक्षी है। उल्लू से क्या फायदा, मगर किसान जानते हैं कि वह खेती का मित्र है, जिसका मुख्य भोजन चूहा है।
भारतीय संस्कृति में पक्षियों के संरक्षण, संवर्धन की बात है। देवी-देवताओं के वाहन पक्षियों को बनाया गया है। उल्लू धन की देवी लक्ष्मी का वाहन है। उल्लू का भोजन चूहों का मंदिर माँ करणी माता मंदिर राजस्थान में है।
जैव विविधता बचाने प्रयास
जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक विकास के साथ मानवीय गतिविधियों के चलते जैव विविधता का ह्रास हो रहा है। पेड़, पौधों, जीव-जंतुओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास चल रहे हैं। इन्हें बचाना मानवता को बचाना ही है। सन् 2000 में लंदन में अंतरराष्ट्रीय बीज बैंक की स्थापना की गई। बीज बैंक में अब तक 10 फीसदी जंगली पौधों के बीज संग्रहित हो चुके हैं। नार्वे में ‘स्वाल बार्ड ग्लोबल सीड वाल्ट’ की स्थापना की गई है, जिसमें विभिन्न फसलों के 11 लाख बीजों का संरक्षण किया जा रहा है।
द एलायंस फॉर जीरो एक्सटिंशन में पर्यावरण एवं वन्य जीवों के क्षेत्र के 13 जाने-माने संगठन हैं। इसके तहत किए गए अध्ययन में 395 ऐसे स्थानों का विवरण तैयार किया गया है, जहाँ कोई न कोई प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में 800 से ज्यादा प्रजातियाँ सिर्फ एक ही स्थान पर पाई जाती हैं। अगर इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो कई विलुप्त हो जाएंगी।
धरती की जैव विविधता वसुधैव कुटुम्बकम, जिओ और जीने दो, जैसी लीक पर चलकर संरक्षित किया जा सकता है। प्रकृति, जीव-जंतु और मनुष्य के बीच सामंजस्य कायम रहेगा, तब तक विविधता रंग बने रहेंगे और मानव जीवन में बहारे आती रहेंगी।