ककोड़ा की खेती

ककोड़ा या कर्कोट एक सब्जी है। इसका फल छोटे करेले से मिलता-जुलता होता है जिसपर छोटे-छोटे कांटेदार रेशे होते हैं। राजस्थान में इसे किंकोड़ा भी कहते हैं |इस सब्जी में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होने के साथ-साथ ये काफी स्वादिष्ट भी बताया जाता है। यह सब्जी से कैंसर और हार्ट अटैक जैसी घातक बीमारियां भी काफी हद तक कम हो जाती हैं।
ककोड़ा की सब्जी पौष्टिक गुणों से मालामाल होता है। ककोड़ा के हरे रंग वाले फलों की सब्जी बनाई जाती है, जिसमें 9-10 कड़े बीज होते हैं।
जलवायु
ककोड़ा गर्म एवं नम जलवायु की फसल है। ककोड़ा की खेती उन स्थानों पर सफलतापूर्वक होती है, जहां औसत वर्षा 1500-2500 मिली. होती है और तापमान 20-30 डिग्री सेन्टीग्रेड है।
खेख्सा के लिए भूमि
ककोड़ा की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है। परन्तु इसकी खेती रेतीली भूमि जिसमें पर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ हो तथा जल निकास की उचित व्यवस्था हो, अच्छी रहती है। इसके साथ ही मृदा का पी.एच. मान 6-7 के बीच होना चाहिए। ककोड़ा अम्लीय भूमि के प्रति संवेदनशील होती है।
बुवाई समय
ककोड़ा के बीजों की बुवाई का समय जून-जुलाई है। बीज के साथ-साथ ककोड़ा का प्रर्वधन उसके वानस्पतिक अंगों से भी किया जाता है। बीजों के द्वारा प्रवर्धन से 1:1 के अनुपात में नर व मादा पौधे मिलते हैैं। इसलिए ककोड़ा की फसल के लिए बीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ककोड़ा की खेती से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रर्वधन वानस्पतिक भाग अर्थात् जड़ के कन्द द्वारा करना चाहिए।
किस्में
इंदिरा कंकोड़-1, अम्बिका-12-1, अम्बिका-12-2, अम्बिका-12-3
बीज मात्रा
सही बीज जिसमें कम से कम 70-80 प्रतिशत तक अंकुरण की क्षमता हो। ऐसे बीज की 8-10 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।
बुवाई विधि
ककोड़ा की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत में पौधों की संख्या पर्याप्त होना आवश्यक है। इस फसल की बुवाई अच्छी प्रकार तैयार खेत में क्यारी बनाकर अथवा गड्ढों में किया जात है। गड्ढे की आपस में दूरी 2&2 मीटर रखनी चाहिए। तथा प्रत्येक गड्ढे में 2-3 बीज की बुवाई करते हैं। और इस प्रकार 4&4 मीटर के प्लाट में कुल 9 गड्ढे बनते हैं। जिसमें बीच वाले गड्ढे में नर पौधा रखते हैं तथा बाकी 8 गड्ढों में मादा पौधों को रखते हैं। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि एक गड्ढे में एक ही पौधा रखा जाता है।
खाद व उर्वरक
ककोड़ा की खेती से अधिक लाभ लेने के लिए संतुलित पोषण दें। सामान्यतया 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद खेत की अंतिम जुताई के समय खेत में डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसके अलावा 65 किग्रा. यूरिया, 375 किग्रा. एसएसपी तथा 67 किग्रा. एमओपी व 5 किलो से 8 किलो साडावीर प्रति हे. देना चाहिए।
सिंचाई व निंदाई-गुड़ाई
फसल की बुवाई के तुरन्त बाद खेत में हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बरसात में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु दो वर्षा के समय में अधिक अन्तर होने पर सिंचाई करनी चाहिए। खेत में आवश्यकता से अधिक पानी को बाहर निकालने के लिए जल निकास की भी व्यवस्था हो क्योंकि अधिक पानी से बीज या कन्द सड़ सकता है। 2-3 बार निंदाई-गुड़ाई करना आवश्यक है।

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