जैव उर्वरक क्या हैं?

 जैव उर्वरक जीवाणु खाद है। खाद में मौजूद लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु वायुमण्डल में पहले से विद्यमान नाइट्रोजन को पकड़कर फसल को उपलब्ध कराते हैं और मिट्टी में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस को पानी में घुलनशील बनाकर पौधों को देते हैं।। इस प्रकार रासायनिक खाद की आवश्यकता सीमित हो जाती है। वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि जैविक खाद के प्रयोग से 30 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर भूमि को प्राप्त हो जाती है तथा उपज 10 से 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसलिए रासायनिक उर्वरकों को थोड़ा कम प्रयोग करके बदले में जैविक खाद का प्रयोग करके फसलों की भरपूर उपज पाई जा सकती है। जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के पूरक तो हैं ही साथ ही ये उनकी क्षमता भी बढ़ाते हैं। फास्फोबैक्टीरिया और माइकोराइजा नामक जैव उर्वरक के प्रयोग से खेत में फास्फोरस की उपलब्धता में 20 से 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है। इसका प्रयोग करने से फसल उत्पादन की लागत घटती है। नाईट्रोजन व घुलनशील फास्फोरस की फसल के लिए उपलब्धता बढ़ती है। भूमि की मृदा संरचना बेहतर रहती है।

 

जैविक खाद का प्रयोग कैसे करें

जैव उर्वरकों का प्रयोग बीजोपचार या जड़ उपचार अथवा मृदा उपचार द्वारा किया जाता है।

i. बीजोपचार- बीजोपचार के लिए 200 ग्राम जैव उर्वरक का आधा लीटर पानी में घोल बनाएँ इस घोल को 10-15 किलो बीज के ढेर पर धीरे-धीरे डालकर हाथों से मिलाएँ जिससे कि जैव उर्वरक अच्छी तरह और समान रूप से बीजों पर चिपक जाएँ। इस प्रकार तैयार उपचारित बीज को छाया में सुखाकर तुरन्त बुआई कर दें।

ii. जड़ उपचार- जैविक खाद का जड़ोपचार द्वारा प्रयोग रोपाई वाली फसलों में करते हैं। चार किलोग्राम जैव उर्वरक का 20-25 लीटर पानी में घोल बनाएँ। एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त पौध की जड़ों को 25-30 मिनट तक उपरोक्त घोल में डुबोकर रखें। उपचारित पौध को छाया में रखें तथा यथाशीघ्र रोपाई कर दें।

iii. मृदा उपचार- एक हेक्टेयर भूमि के लिए, 200 ग्राम वाले 25 पैकेट जैविक खाद की आवश्यकता पड़ती है। 50 किलोग्राम मिट्टी, 50 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद में 5 किलोग्राम जैव उर्वरक को अच्छी तरह मिलाएँ। इस मिश्रण को एक हेकटेयर क्षेत्रफल में बुआई के समय या बुआई से 24 घंटे पहले समान रूप से छिड़कें। इसे बुआई के समय कूंडों या खूंडों में भी डाल सकते हैं।

जाने कैसे तैयार होता है कम्पोस्ट खाद

कम्पोस्टिंग वनस्पति और पशु अपशिष्ट को तुरन्त गलाकर खेत में मौजूद अन्य अपशिष्टों को भी पौधे के भोजन के लिए तैयार करते हैं। इन अपशिष्टों में पत्तियाँ, जड़ें, ठूंठ, फसल के अवशेष, पुआल, बाड़, घास-पात आदि शामिल हैं। तैयार कम्पोस्ट भुरभुरे, भूरा से गहरा भूरा आद्रता वाली सामग्री का मिश्रण जैसी होती है। मूल रूप से कम्पोस्ट दो प्रकार के होते हैं। पहला एरोबिक और दूसरा गैर-एरोबिक।

वर्मी कम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद तैयार करने की विधि

केंचुआ खाद तैयार करने के लिए छायादार स्थान में 10 फीट लम्बा, 3 फीट चौड़ा, 12 इंच गहरा पक्का ईंट सीमेंट का ढाँचा बनाएँ जमीन से 12 इंच ऊँचे चबूतरे पर यह निर्माण करें। इस ढाँचे में आधी या पूरी पची (पकी) गोबर कचरे की खाद बिछा दें। इसमें 100 केंचुए डालें। इसके ऊपर जूट के बोरे डालकर प्रतिदिन सुबह-शाम पानी डालते रहें। इसमें 60 प्रतिशत से ज्यादा नमी ना रहे। दो माह बाद यह खाद बन जाएगी, 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से इस खाद का उपयोग करें। वर्मी कम्पोस्ट के लिए केंचुए की मुख्य किस्में- आइसीनिया फोटिडा, यूड्रिलस यूजीनिया और पेरियोनेक्स एक्जकेटस है। यह मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता को लम्बे समय तक बनाए रखती हैं। मृदा की उर्वराशक्ति बढती है जिससे फसल उत्पादन में स्थिरता के साथ गुणात्मक सुधार होता है। यह नाइट्रोजन के साथ फास्फोरस एवं पोटाश तथा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को भी सक्रिय करता है।

वर्मी कम्पोस्ट के लाभ

जैविक खाद होने के कारण वर्मी कम्पोस्ट में लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रियाशीलता अधिक होती है जो भूमि में रहने वाले सूक्ष्म जीवों के लिए लाभदायक एवं उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। वर्मी कम्पोस्ट में उपस्थित पौध पोषक तत्व पौधों को आसानी से उपलब्ध हो जाते है। मृदा में जीवांश पदार्थ (ह्यूमस) की वृद्धि होती है, जिससे मृदा संरचना, वायु संचार तथा जल धारण क्षमता बढ़ने के साथ-साथ भूमि उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है। अपशिष्ट पदार्थों या जैव उपघटित कूड़े-कचरे का पुनः चक्रण आसानी से हो जाता है।

मटका खाद तैयार करने की विधि

मटका खाद तैयार करने के लिए गौमूत्र 10 लीटर, गोबर 10 किलो, गुड़ 500 ग्राम, बेसन 500 ग्राम- सभी को मिलाकर मटके में भरकर 10 दिन सड़ाएँ। फिर 200 लीटर पानी में घोलकर गीली जमीन पर कतारों के बीच छिड़क दें। 15 दिन बाद दोबारा इसका छिड़काव करें।

हरी खाद तैयार करने की विधि

हरी खाद बनाने में लेगुमिनस पौधे का उत्पादन शामिल होता है। उनका उपयोग उनके सहजीवी नाइट्रोजन या नाइट्रोजन फिक्सिंग क्षमता के कारण किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में गैर लेगुमिनस पौध का भी उपयोग किया जाता है। आमतौर पर मैदानी इलाके में सनई, ढैंचा आदि को हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। पूरी फसल को मिट्टी पलट हल से जोत दिया जाता है। इससे फसल मिट्टी में दब जाती है और सड़ने के बाद खाद बन जाती है।

जैव उर्वरक उर्वरकों का सुरक्षित स्वरूप है यह कृषि के लिए सरल एवं सुरक्षित है आप सभी किसान भाइयों से मेरा निवेदन है की अपने बेहतर कल के लिए इसका प्रयोग करें तथा लोगों को भी प्रेरित करें इसके प्रयोग से खेती उपजाऊ सुरक्षित एवं लाभप्रद होती है देश को तथा किसानों को संकट से उबारनें के लिए जैविक खेती करें इसका प्रसार प्रचार करें कृपा करके भ्रांतियां न फैलाएं 

kisan help (kisanhelp.in) द्वारा किये गए जागरूपता प्रोग्राम में राधाकान्त जी के विचारों के कुछ अंश