थोड़ी देख-भाल, अच्छी पैदावार, अमरुद की खेती

अमरुद भारत के उष्ण कटिबंधीय तथा उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के सभी भागों में उगाया जाता है. यह फल बहुत थोड़ी देख भाल करने पर भी अच्छी पैदावार देता है.  अमरुद का फल विटामिन सी से भरपूर होता है.

जलवायु और मिट्टी सम्बन्धी आवश्यकताएं

यह 4.5 - 8.5 पी.एच. वाली विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है.  इसके अलावा उष्ण कटिबंधीय दोनों क्षेत्रों की विविध जलवायु वाली परिस्थितियों में इसकी पैदावार अच्छी रहती है.  अमरुद के वृक्ष अपनी प्रारंभिक अवस्था में पाले के प्रति संवेदनशील होते हैं.

क़िस्में

उत्तर भारत में व्यापारिक स्तर पर अमरुद की फ़सल उगाने के लिए किछ जानी-पहचानी क़िस्मों की सिफारिश की जाती है. ये हैं-इलाहाबादी-सफेदा, चित्तीदार और लखन-49 (सरदार). इलाहाबादी सफेदा क़िस्म के फल गोल, चिकने छिलके, सफ़ेद गूदे तथा उच्च कोटि के होते हैं. इसके अलावा एक बगैर बीज वाली क़िस्म भी है लेकिन इस क़िस्म के पेड़ कम फल देते हैं, और उन फलों का आकार भी सुडौल नहीं होता है. चित्तीदार क़िस्म में फल के उपरी सतह पर लाल रंग के बिन्दु के आकार के धब्बे होते हैं तथा अन्य सभी फल के गुण इलाहाबादी सफेदा जैसे ही होते हैं. सरदार क़िस्म के पौधे छतरीनुमा आकार के होते हैं तथा उकटा रोग के प्रति काफ़ी प्रतिरोधी भी होते हैं. इस क़िस्म के फल मध्यम आकार के चपटे गोल होते हैं. फल का गुदा सफ़ेद, सुवास लिए होता है. इसकी पैदावार भी सफेदा क़िस्म की तुलना में अधिक होती है. इसके अलावा, हिसार , सफेदा एवं हिसार सुराख़:भी उत्तम किस्मे है .

प्रवर्धन ( कलम लगाना)

अमरुद का प्रवर्धन मुख्यतः बीज द्वारा किया जाता है. लेकिन बीजों से बने पौधे अधिक सफल नहीं रहते हैं, इसलिए अमरुद का वानस्पतिक प्रवर्धन आवश्यक हो जाता है. इसके निम्नलिखित तरीके हैं.

वेनियर कलम लगाना

कलम लगाने का यह तरीक़ा आसान और सस्ता है. कलम तैयार करने के लिए एक महीने की आयु वाले इकहरे / आरोह लिए जाते हैं और कली को विकसित करने के लिए इनको पत्ती रहित कर दिया जाता है.

अब मूलवृन्त और कलम दोनों को 4-5 से०मी० की लम्बी तक काट लिया जाता है, और दोनों को जोड़कर अल्काथीन की एक पट्टी से लपेट लिया जाता है, जब कलम से अंकुर निकलने लगता है तो मूलवृन्त का उपरी भाग अलग कर लिया जाता है. ये कलमें जून-जुलाई के महीने में लगाई जाती है. लगाई गई कलमों में से लगभग 80 प्रतिशत कलमें सफल रहती हैं.

स्टूलिंग

यह तरीक़ा अमरुद के एक सामान जड़ वाले पौधों को जल्दी से गुणित करने के लिए अपनाया जाता है. सबसे पहले मूल पौधे को 2 वर्ष तक बढ़ने दिया जाता है. इसके बाद मार्च के महीने में उसको ज़मीन से 10-15 से०मी० ऊँचाई से काट दिया जाता है. जब 20 -35 से०मी० ऊँचाई के नए तने उग आते हैं तो प्रत्येक तने के आधार के पास उसकी छाल 2 सेमी चौड़े छल्ले के रूप में छील दी जाती है. इस छिले हुए भाग पर 5000 प्रति दसलक्षांस वाले इंडाल ब्युटीरिक एसिड का लेनोलिन में पेस्ट बनाकर छाल उतरे हुए भाग पर लेप लगा दिया जाता है. इसेक बाद इन उपचारित प्ररोहों को मिट्टी से ढक दिया जाता है डेढ़ महीने में जड़ें निकल आती हैं. इन जड़ों वाले पौधों को डेढ़ महीने बाद अलग कर दिया जाता है. तथा इन्हें क्यारियों या गमलों में लगा दिया जाता है.

रोपाई

उत्तर भारत में अमरुद के पौधे रोपने का सबसे अच्छा समय वर्षा प्रारंभ होने बाद से जून का अंतिम सप्ताह या जुलाई का महिना है. इस समय पौधे 5 - 6 मीटर के फासले पर लगाये जाते हैं.

उर्वरकों का उपयोग

छोटे पौधों को बरसात की शुरुआत होते ही खाद दे देनी चाहिए. एक साल की आयु वाले पौधों को लगभग 12-15 कि०ग्रा० गोबर की खाद देनी चाहिए. चौथे साल पूरा होने तक गोबर की खाद 15 कि०ग्रा० प्रति वर्ष की दर से बढ़ाते रहना चाहिए. पूरी तरह से विकसित और फल वाले प्रत्येक पौधे 10 वर्ष या इससे अधिक आयु से पौधे को लगभग 60 कि०ग्रा० गोबर की खाद और 2.5 अमोनियम सल्फ़ेट 450 ग्राम पोटेशियम सल्फ़ेट तथा 1.25 कि०ग्रा० सुपर फ़ॉस्फ़ेट देना चाहिए. गोबर की खाद का उपयोग जाड़ों के मौसम के पहले सप्ताह और सितम्बर के महीने में करना चाहिए. कम आयु वाले पौधे की चंटी करके उनका अनुवर्धन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि वे एक निश्चित आकर ग्रहण कर लें. सभी सूखी हुई टहनियों को तोड़कर निकाल देना चाहिए. सिचाई कम आयु वाले पौधों को गर्म मौसम में सप्ताह में एक बार तथा सर्दियों में महीने में दो बार सींचना चाहिए. पुराने पौधौ को मार्च से जून तक कम से कम 4 बार अवश्य सींचना चाहिए.

फलन

अमरुद में मुख्यतः दो फसलें आती हैं. पहली फ़सल बरसात में तथा दूसरी फ़सल सर्दियों में आती है.

बरसात के मौसम के फल फीके और घटिया स्तर के होते हैं, इसलिए उन्हें विकसित नहीं होने देना चाहिए. इसके अलावा इस मौसम में अमरुद की फ़सल देश के उत्तरी भाग में फल वाली मक्खी से भी प्रभावित हो जाती है, जब कि जाड़े के मौसम में फल उच्च कोटि के होते हैं और इन पर फल वाली मक्खी का भी प्रभाव कम होता है. बरसात वाली फ़सल न लेने के लिए फरबरी से मध्य मई तक के महीने में ही फ़सल को पानी देने बंद कर देना चाहिए. पानी तब तक न दिया जाये जब तक कि मार्च में आये हुए फूल पानी की कमी से गिर न जाएँ.

प्रमुख कीड़े - मकोडे

अमरुद की फल मक्खी - ये मक्खी मुख्यतः बरसात वाले फलों में अंडे देती है व इनमें निकली इल्लियाँ गूदा खाती हैं. परिणाम स्वरुप फल सड़ जाते हैं. ऐसे फल पेड़ से टूट कर गिर जाते हैं और मनुष्यों के खाने योग्य नहीं रहते हैं.

रोकथाम के उपाय

गिरे हुए फलों को इकठ्ठा कर के नष्ट कर देने से कीड़ों का प्रभाव आगे नहीं बढ़ पाता है. इसके अलावा इस कीड़े कि रोकथाम के लिए जुलाई के प्रथम सप्ताह में ही 0.1 प्रतिशत वाले मिथाइल पाराथोन को 1 प्रतिशत गुड़ के घोल में मिलकर छिड़का जा सकता है. यह ध्यान रखें कि यह रसायन छिड़काव फल तोड़ने के कम से कम 10 दिन पहले किया जाये. सावधानी के लिए वर्षाकालीन फसल में ले.

पैदावार

कलम लगाये गए 8-10 वर्ष की आयु के पौधों से प्रति पेड़ औसतन 400-800 फल प्राप्त होते हैं, जिन का भार 80-100 किग्रा तक होता है.

 

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