बरबटी की खेती

फल्लीदार सब्जियों में बरबटी का एक प्रमुख स्थान हैं, जो की भारत वर्ष में उगायी जाती हैं। इसे गर्मी और बरसात दानों मौसम में उगाया जाता हैं। इसका प्रयोग दाल और हरी फल्लियों की सब्जी के रूप में किया जाता हैं। यह प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत हैं। तथा इसकी खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि होती हैं।

बरबटी उत्पादन के लिए भूमि का चुनाव

अच्छे जल निकास वाली सभी प्रकार की भूमियों में इसकी खेती की जा सकती हैं परन्तु अधिक उपज प्राप्त करने के लिये दोमट मिट्टी सर्वोत्तम पाई गयी हैं।

बरबटी उत्पादन के लिए भूमि की तैयारी

अच्छी पैदावार लेने के लिये खेत की एक गहरी जुताई कर 2-3 बार बखर चला कर खेत की मिट्टी को अच्छी भुरभुरी बना लें तथा पुरानी फसलों के खूट आदि निकाल कर साफ कर लें अन्त में पाटा चलाकर खेत को समतल बना लें।

बरबटी की जातियों का चुनाव

1.पूसा फालगुनी

यह किस्म मुख्यतः गर्मी के मौसम के लिये उपयुक्त हैं। इसकी बुवाई फरवरी-मार्च में की जाती हैं। इसकी फल्ल्यिाँ गहरे हरे रंग की 12-13 से.मी. लम्बी, जो कि बुआई के 60 दिनों बाद प्राप्त होती है। इसके बीज सफेद रंग के होते हैं, जिसे दाल के रूप में उपयोग किया जाता हैं। इससे औसतन 90-100 क्विंटल हरी फल्ली या 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती हैं।

2. पूसा बरसाती

यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई हैं। इस किस्म की फल्ली 25-30 से.मी. लम्बी, हरी सफेद रंग की होती हैं। इसकी प्रथम तुड़ाई 40-45 दिन में की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावार 65-75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।

3. पूसा दो फसली

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा विकसित यह किस्म तापमान एवं दिन की लम्बाई के प्रति असंवेदनशील हैं। अतः यह दोनों मौसम गर्मी और बरसात में समान रूप से उगाई जाती हैं। इसकी फल्लियाँ हल्के पीले रंग की 18-20 से. मी. लम्बी होती हैं। दाने बड़े आकार के धब्बेदार होते हैं। इसकी पहली तुड़ाई 40-45 दिन में की जाती हैं। इस किस्म से 25-30 क्विंटल गर्मी के मौसम में और 50-60 क्विंटल हरी फल्ली प्रति हेक्टेयर वर्षा ऋतु की फसल से उपज प्राप्त होती हैं।

4.पूसा ऋतुराज

यह किस्म अधिक ताप असंवेदनशील है इसलिये इसको दोनों मौसम में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता हैं। इसकी प्रथम तुड़ाई वर्षा ऋतु में 40-45 दिन और गर्मी वाली फसल की 45-50 दिन में प्राप्त की जा सकती हैं। इसकी फल्लियाँ 22-24 से.मी. लम्बी, पतली तथा कम रेषे वाली होती हैं। उपज 80-85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैं। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि 85 प्रतिशत फल्लियाँ प्रथम तुड़ाई में ही आ जाती है। तथा यह दोनों तरह से सब्जी और दाल के रूप में प्रयोग की जा सकती हैं।

5.पूसा कोमल

यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के कसाल केन्द्र द्वारा विकसित की गई हैं। फल 20-22 से.मी. लम्बे, हल्के हरे रंग के कम रेषे वाले होते हैं। पहली तुड़ाई 50-55 दिन के बाद की जाती हैं। उपज 100-103 प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैं।

6.काशी श्यामल

यह अगेती किस्म हैं। इसके पौधे 70-75 से.मी. लम्बे तथा झाड़ीनुमा होती हैं। बुआई के 35-40 दिन बाद फूल आ जाते है, तथा फलियाँ 45-48 दिनों में आने लगती हैं। फलियाँ हरी, लाल सिरे वाली, मुलायम तथा 30-35 से.मी. लम्बी होती हैं। यह किस्म पीला विषाणु रोग के प्रति सहनशील हैं। इसकी औसत उपज 67-70 क्विं/हे. हैं।

7. काशी कंचन

यह अगेती तथा प्रकाश असंवेदी किस्म है, जो कि अक्टूबर से जनवरी माह को छोडकर पूरे वर्ष सफलता पूर्वक उगाई जा सकती हैं। इसके पौधे 45-50 से.मी. लम्बे झाड़ीनुमा होते हैं। बुआई के 40-45 दिन के बाद फूल आ जाते हैं तथा 50-55 दिनों में फलियाँ मिलने लगती हैं। इसकी फलियाँ गहरे हरे रंग के मुलायम, गूदेदार विषाणु, उकटा रोग, जड़सड़न एवं पर्णदाग रोग के प्रतिरोधी हैं। इसकी औसत उपज 150-200 क्विं/हे. हैं।

बीज एवं बीजोपचार

बरबटी का 12-15 किलोग्राम बीज वर्षा ऋतु की फसल के लिये और गर्मी की फसल के लिये 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं बीज को 3.5 से 4.0 ग्राम थाइरम नामक दवा से प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें।

बरबटी बोने का समय

गर्मी वाली फसल के लिये इसे फरवरी क अन्तिम सप्ताह से मध्य अप्रेल तक तथा वर्षा ऋतु की फसल के लिये 15 जून से जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक बुआई करें।

बरबटी बोने की विधि

खरीफ की फसल के लिये 40 से 60 से.मी. कतार से कतार और 5 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी पर और गर्मी वाली फसल में 23 से 30 से.मी. कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 5 से.मी. ही रखना चाहिये। बीज को सीड ड्रिल से या हाँथ से कतारों में बोकर ढक दें। अंकुरण के पश्चात थिनिंग कर पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 से.मी. कतार में रखें।

बरबटी के खाद एवं उर्वरक

बरबटी की अच्छी फसल के लिये कृषि में 20-25 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद अन्तिम बखरनी के समय खेत में अच्छी तरह मिला दें। चूंकि यह लेग्यूमिनेशियम फसल हैं। अतः इसमें नत्रजन बहुत कम 10-20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के पूर्व देना चाहिये। इस फसल में फास्फोरस का बहुत माहत्व हैं। क्योंकि ये शकीये वृद्धि करते हैं। तथा जड़ो में बनने वाली गाठों की संख्या को बढाते हैं। जिससे वायुमंडलीय नत्रजन के स्थायीकरण में सहायता मिलती हैं। इसलिये 50 से 70 किलो स्फुर और 50 से 70 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिये। बरबटी की फसल जिंक की कमी के प्रति बहुत संवेदनशील हैं। अतः जिंक की कमी होने पर 10 से 15 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना चाहिये। राइजोबियम कल्चर से बीज का उपचार भी अवश्य करें।

वृद्धि नियंत्रकों का उपयोग

मौलिक हाईड्राजाइड का 15 पी.पी.एम. के घोल का फूल आने के पहले छिड़काव करने से 30 से 35 प्रतिशत फल वृद्धि होती हैं। अधिक सांद्रता के घोल का उपयोग करने पर उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं।

सिंचाई

बरबटी उथली जड़ों वाली फसल है अतः हल्की सिंचाई करना चाहिये। वर्षा ऋतु की फसल में सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती परंतु अगर समय पर पानी न गिरे तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। गर्मी वाली फसल में मार्च-अप्रेल के महिने में सप्ताह में एक बार और इसके बाद हर चैथे पांचवे दिन सिंचाई करें। वर्षा ऋतु की अगेती फसल मे मानसून आने के पहले अवश्य ही सिंचाई कर नमी बनाये रखें और जल निकास का भी उचित प्रबंध करें, क्योंकि जल मग्नता की स्थिति का फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं।

निंदाई गुड़ाई

बुवाई के बाद 20 से 25 दिन तक निंदाई गुड़ाई कर खेत को साफ रखें।

पौध संरक्षण

अ) बरबटी के कीट

1.माहू (एफिड)

इसके बच्चे एवं वयस्क पत्तियों का रस चूसकर पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं। इसके रोकथाम के लिये एमिडियाक्लोपिरिड 17.8 प्रतिशत का 1 मि.ली. दवा प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

2.फुदका (जैसिड)

इसके भी बच्चे एवं वयस्क पौधे का रस चूसकर पौधो का रस चूसकर पौधों को नुकसान पहँचाते है इसकी रोकथाम एफिड के समान ही करें।

3.फल छेदक

फल को छेद कर खाते हैं। बीज को भी नुकसान पहुँचाता हैं। इसकी रोकथाम के लिये फोसेलान 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

ब) बरबटी के रोग

1.चूर्णी फफूंद राग

इस रोग में पहले पत्तों पर गहरे दोग प्रकट होते हैं। बाद में सफेद चूर्ण का आवरण संपूर्ण पौधों पर छा जाता हैं। इसकी रोकथाम के लिये 0.5 प्रतिषल केराथियान या 0.5 प्रतिशत घुलनशील सल्फर का 15 दिन के अंतर से छिड़काव करना चाहिये।

2.मोजेक

इस रोग का संक्रमण बीज एवं कीटों से होता है। इससे पत्तियाँ चितकबरी हो जाती है तथा पौधों की बाढ रूक जाती हैं। इसके रोकथाम के लिये रोग निरोधक जातियाँ ही बोना चाहिये।

बरबटी की कटाई

बरबरटी, बुवाई के 40 से 50 दिन बाद तुड़ाई के योग्य हो जाती है। तथा यह शीघ्र विकसित होती है जब फल्ली नरम हो तभी तुड़ाई कर लेना चाहिये ज्यादा देर करने पर फल्ली कड़ी हो जाती है। अतः सही समय पर तुड़ाई कर लेना चाहिये।

बरबटी की उपज

बरबटी की औसतन 50-80 क्विंटल हरी फल्ली प्रति हेक्टयेर उपज मिलती है। या 12 से 15 क्विंटल बीज और 50 से 60 क्विंटल भूसा प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता हैं।

जैविक खेती: