दोगुनी उपज वाली तुअर की रोगमुक्त प्रजाति विकसित
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) कानपुर के वैज्ञानिकों ने करीब 7 साल रिसर्च के बाद तुअर की एक नई प्रजाति आईपीए 203 विकसित की है। इसके पौधे किसी भी तरह की बीमारी से मुक्त होंगे। आईआईपीआर ने तुअर के ये खास बीज नेशनल सीड कॉर्पोरेशन और स्टेट सीड कॉर्पोरेशन के साथ बिहार और झारखंड को भी भेजे हैं, ताकि वे अपने यहां किसानो को इस नई प्रजाति आईपीए 203 के बीज उपलब्ध करा सकें। आईआईपीआर के निदेशक डॉ. एनपी सिंह ने शुक्रवार को बताया कि उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम तक में जून के आखिर में तुअर बोई जाती है और करीब 260 दिन बाद अप्रैल माह में काटी जाती है। लेकिन, अब तक तुअर के पेड़ों में दो तरह की बीमारियां होती रही हैं। पहली बीमारी को बांझपन या स्टरलिटी कहते है, इसमें बारिश के दौरान उमस के कारण इसका वायरस फैलता है। इसके असर से पेड़ में पत्तिया तो होती हैं, लेकिन फूल और फल नहीं होते। दूसरी बीमारी उकठा (वील्ट डब्ल्यूआईईएलटी) है। इसकी चपेट में आने पर वायरस पेड़ की जड़ में चला जाता है और उस तक खाद और पानी नहीं पहुंच पाता है। ऐसे में पेड़ सूख जाता है। यह रोग नवंबर से जनवरी माह के बीच फैलता है। इन बीमारियों के कारण किसानों को हर साल हजारों टन तुअर का नुकसान होता है।