केले की खेती कर हो रहे मालामाल, दो हजार हेक्टेयर में की बुआई
फसल बर्बादी से हुए नुकसान की भरपाई व बाजार की मांग पर किसानों ने अब परंपरागत खेती से ध्यान हटाकर फलों और सब्जियों की बुआई जोर दिया है। गेहूं, धान की फसलों से अलग हट कर किसान केला, आलू और हरी सब्जियों की खेती कर रहे हैं। प्रगतिशील किसानों ने बताया कि इनकी खेती में गेहूं, धान की अपेक्षा दो तीन गुना ज्यादा फायदा है। साथ ही उपज की बिक्री के लिए भी ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ती है। कृषि वैज्ञानिकों के लगातार प्रयास से केला की खेती में हर वर्ष बढ़ोतरी हो रही है। अब जिले के भिटौरा, हंसवा, तेलियानी और बहुआ विकास खंड क्षेत्र के किसानों ने केला की खेती को प्रमुखता से करके लाभ कमा रहे हैं।
उद्यान विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में दो हजार हेक्टेयर में किसानों ने केला की फसल की बुआई की है। इसमें 70 फीसदी टीशू कल्चर केला लगाया गया है, जो मात्र 13 महीने में तैयार हो जाता है। भारतपुर गांव के किसान मलखान यादव ने बताया कि केला की खेती में गेहूं और धान की फसल से ज्यादा आमदनी होती है। केला तैयार होने के बाद कानपुर और दिल्ली के व्यापारी खेत से ही खरीद लेते हैं। इसमें न तो मंडी जाने का झंझट होता है और न ही माल ढुलाई का खर्च। बिक्री माल की कीमत भी घर बैठे मिल जाती है। टेक्सारी बुजुर्ग केे किसान आरके लोधी ने बताया कि पहले 18 महीने में केला की फसल तैयार होती थी, लेकिन टीशू कल्चर प्रजाति मात्र 13 महीने में फसल पक जाती है। अजईपुर गांव के किसान केपी सिंह ने बताया कि जब से केला की खेती करने लगे हैं, तब से प्रति वर्ष की आमदनी तीन गुना अधिक हो गई है। केला की तैयार धड़ 35-40 किलो की हो जाती है। एक हजार से लेकर दो हजार रुपये तक प्रति क्विंटल की दर से केले की बिक्री खेत से ही हो जाती है। केला की खेती में बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ता है।
साभार अमर उजाला