वर्मी कम्पोस्ट से बढ़ाएं खेत की उर्वरता

केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव ऊर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है।

वर्मी कम्पोस्ट में न तो बदबू आती है और न ही मक्खी एवं मच्छर बढ़ते हैं, साथ ही वातावरण भी प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3 फीसदी नत्रजन, 1.5 से 2 फीसदी फॉस्फोरस और 1.5 से 2 फीसदी पोटाश पाया जाता है। केचुआ द्वारा जैव विघटनशील व्यर्थ पदार्थों के भक्षण तथा उत्सर्जन से उत्कृष्ट कोटि की कम्पोस्ट खाद बनाने को वर्मीकम्पोस्टिंग कहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति तो बढ़ती ही है, साथ ही साथ फसलों की पैदावार व गुणवत्ता में भी बढ़ोत्तरी होती है। एक किग्रा भार में 1000 से 1500 केंचुए होते हैं। यानिएक केंचुआ दो से तीन कोकून प्रति सप्ताह पैदा करता है, जिसके बाद हर कोकून से तीन-चार सप्ताह में एक से तीन केंचुए निकलते हैं।

एक केंचुआ अपने जीवन में करीब 250 केंचुए पैदा करने की क्षमता रखता है। नवजात केंचुआ लगभग 6-8 सप्ताह पर युवा अवस्था में आ जाता है। एक केंचुआ प्रतिदिन लगभग अपने भार के बराबर मिट्टी खाकर कम्पोस्ट में परिवर्तित कर देता है।

वर्मी कम्पोस्ट के लाभ

वर्मी कम्पोस्ट सामान्य कम्पोस्टिंग विधि से एक तिहाई समय (दो से तीन माह) में ही तैयार हो जाता है।

वर्मी कम्पोस्ट में गोबर की खाद (एफ वाईएम) की अपेक्षा नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश तथा अन्य सूक्ष्म तत्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।

वर्मी कम्पोस्ट के सूक्ष्म जीव, एन्जाइम्स, विटामिन तथा वृद्विवर्धक हार्मोन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।

केंचुआ द्वारा निर्मित खाद को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की उपजाऊ एवं उर्वरा शक्ति बढ़ती है।

वर्मी कम्पोस्ट वाली मिट्टी में भू-क्षरण कम होता है तथा मिट्टी की जलधारण क्षमता में सुधार होता है।

खेतों में केंचुओं द्वारा निर्मित खाद के उपयोग से खरपतवार व कीड़ों का प्रकोप कम होता है और पौधों की रोग रोधक क्षमता भी बढ़ती है।

वर्मी कम्पास्ट के उपयोग से फ सलों पर रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों की मांग कम होती है जिससे किसानों का इन पर व्यय कम होता है।

वर्मी कम्पोस्ट से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है, साथ ही भूमि, पौधों या अन्य जीवों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।

वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि

 केचुओं का चयन
वर्मी कम्पोस्टिंग में केंचुओं की उन प्रजातियों का चयन किया जाता है, जिनमें प्रजनन व वृद्धि दर तीव्र हो। प्राकृतिक तापमान के उतार चढ़ाव सहने की क्षमता हो और कार्बनिक पदार्थों को शीघ्रता से कम्पोस्ट में परिवर्तित करने की क्षमता हो।

वर्मी कम्पोस्टिंग योग्य पदार्थ
इस प्रक्रिया के लिए समस्त प्रकार के जैव-क्षतिशील कार्बनिक पदार्थ जैसे गाय, भैंस, भेड़, गधा, सुअर और मुर्गियों आदि का मल, बायोगैस स्लरी, शहरी कूड़ा, प्रौद्योगिक खाद्यान्न व्यर्थ पदार्थ, फसल अवशेष, घास-फूस व पत्तियां, रसोई घर का कचरा आदि का उपयोग किया जा सकता है।

कम्पोस्टिंग
कम्पोस्टिंग किसी भी प्रकार के पात्र जैसे मिट्टी या चीनी के बर्तन, वाश वेसिन, लकड़ी के बक्से, सीमेन्ट के टैंक आदि में किया जा सकता है। गड्ढ़ों या बेड की लम्बाई-चौड़ाई उपलब्ध स्थान के अनुसार निर्धारित करें इनकी गहराई या ऊंचाई 50 सेमी से अधिक न रखें। कम्पोस्टिंग के लिए सबसे नीचे की सतह पांच सेमी मोटे कचरे (घास-फूस, केले के पत्ते, नारियल के पत्ते, फसलों के डंठल आदि) की तह बिछायें। इसे तह पर सड़े हुए गोबर की पांच सेमी की तह बनायें तथा पानी छिड़क 1000-1500 केंचुए प्रति मीटर की दर से छोड़ें। इसके ऊपर सड़ा गोबर और विभिन्न व्यर्थ पदार्थ जिनसे खाद बनाना चाहते हों (10:3 के अनुपात में) आंशिक रूप से सड़ाने के बाद डालें तथा टाट या बोरी से ढक दें। इस पर पानी का प्रतिदिन आवश्यकतानुसार छिड़काव करें ताकि नमी का स्तर 40 प्रतिशत से ज्यादा रहे। कम्पोस्टिंग हेतु छायादार स्थान का चुनाव करें जहां पानी न ठहरता हों।

कम्पोट एकत्रीकरण
साधारणतया 60 से 70 दिन में कम्पोस्ट बन कर तैयार हो जाती है। इस अवस्था में पानी देना बन्द कर दें जिससे केंचुए नीचे चले जायें तब कम्पोस्ट को एकत्र कराएं फिर छान कर केंचुए अलग करें तथा छाया में सुखाकर प्लास्टिक की थैलियों मे भरकर सील कर दें।

वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग

वर्मी कम्पोस्ट को खेत तैयार करते समय मिट्टी में मिलाएं।

खाद्यान्न फसलों में वर्मी कम्पोस्ट पांच टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें।

सब्जी वाली फसलों में वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग 10-12 टन प्रति हेक्टेयर करें।

फलदार वृक्षों में एक से दस किग्रा आयु व आवश्यकतानुसार तने के चारों तरफ  घेरा बनाकर डालें।

गमलों में 100 ग्राम प्रति गमले की दर से उपयोग करें।

वर्मी कम्पोस्टिंग में विशेष सावधानियां

आंशिक रूप से सड़े कार्बनिक व्यर्थ पदार्थों का उपयोग ही करें क्योंकि इस कम्पोस्टिंग प्रकिया में तेजी आती है।

कम्पोस्टिंग बेड में मौसम के अनुसार नमी का स्तर बनाए रखें।

कम्पोस्टिंग बेड या गड्ढे को धूप व वर्षा से बचायें।

कल्चर बेड को जूट की बोरी या पुआल से ढककर रखें।

डॉ. उमेश कुमार एवं राजीव कुमार