पपीता की खेती स्वास्थवर्धक तथा लोकप्रिय बागबानी

जलवायु

पपीते की अच्छी खेती गर्म नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है. इसे अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस से 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है. न्यूनतम पांच डिग्री सेल्सियस से कम नही होना चाहिए. लू तथा पाले से पपीते को बहुत नुकसान होता है. इससे बचने के लिए खेत के उत्तरी पश्चिम में हवा रोधक वृक्ष लगाना चाहिए. पाला पड़ने की आशंका हो तो खेत में रात्रि के अंतिम पहर में धुंआ करके एवं सिंचाई भी करते रहना चाहिए.

भूमि

जमीन उपजाऊ हो तथा जिसमें जल निकास अच्छा हो तो पपीते की खेती उत्तम होती है. जिस खेत में पानी भरा हो उस खेत में पपीता कदापि नही लगाना चाहिए. क्योंकि पानी भरे रहने से पोधे में कॉलर रॉट बीमारी लगने की संभावना रहती है, अधिक गहरी मिट्टी में भी पपीते की खेती नही करना चाहिए.

भूमि की तैयारी

खेत को अच्छी तरह जोत कर समतल बनाना चाहिए तथा भूमि का हल्का ढाल उत्तम है. चार मीटर के अंदर पर लंबा, चौड़ा, गहरा गढ्ढा बनाना चाहिए. इन गढ्ढों में 20 किलो गोबर की खाद, 500 ग्राम सुपर फास्फेट एवं 250 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश को मिट्टी में मिलाकर पौधा लगाने के कम से कम 10 दिन पूर्व भर देना चाहिए.

किस्म

पूसा मेजस्टी एवं पूसा जाइंट, वाशिंगटन, सोलो, कोयम्बटूर, हनीड्यू, कुंगर्हनीड्यू, पूसा ड्वार्फ, पूसा डेलीसियस, सिलोन, पूसा नन्हा आदि प्रमुख किस्में है.

बीज

एक हेक्टेयर के लिए 500 ग्राम से एक किलो बीज की आवश्यकता होती है. पपीते के पौधे बीज द्वारा तैयार किये जाते है, एक हेक्टेयर खेती में प्रति गढ्ढे दो पौधे लगाने पर 5000 हजार पौध संख्या लगेगी.

लगाने का समय एवं तरीका

पपीते के पौधे पहले रोपणी में तैयार किये जाते है, पौधे पहले से तैयार किये गढ्ढे में जून व जुलाई में लगाना चाहिए, जंहा सिंचाई का समूचित प्रबंध हो वहां सितंबर से अक्टूबर तथा फरवरी से मार्च तक पपीते के पौधे लगाये जा सकते है.

नर्सरी में रोपा तैयार करना

इस विधि द्वारा बीज पहले भूमि की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर उंची क्यारियों में कतार से कतार की दूरी 10 सेंटीमीटर, तथा बीज की दूरी तीन से चार सेमी रखते हुए लगाते है. बीज को एक से तीन सेंटीमीटर से अधिक गहराई पर नही बोना चाहिए. जब पौधे करीब 20 से 25 सेमीटर उंचे हो जावें तब प्रति गढ्ढा दो पौधे लगाना चाहिए.

पौधे पालीथिन की थैली में

 तैयार करने की विधि

20 सेंटीमीटर चौड़े मुंह वाली, 25 सेमी लंबी तथा 150 सेंटीमीटर छेद वाले पालीथिन थैलियां लें. इन थैलियों में गोबर की खाद, मिट्टी एवं रेत का समिश्रण करना चाहिए, थैली का उपरी एक सेमी भाग नही भरना चाहिए. प्रति थैली दो से तीन बीज होना चाहिए, मिट्टी में हमेशा पर्याप्त नमी रखना चाहिए, जब पौधे 15 से 20 सेमीटर ऊंचे हो जाए तब थैलियों के नीचे से धारदार ब्लेड द्वारा सावधानी पूर्वक काट कर पहले से तैयार किये गये गढ्ढों में लगाना चाहिए.

खाद एवं उर्वरक

एक पौधे को वर्ष भर में 250 ग्राम नत्रजन, 250 ग्राम स्फुर एवं 500 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है, इसे छह बराबर भाग में बांट कर प्रति दो माह के अंतर से खाद तथा उर्वरक देना चाहिए. खाद तथा उर्वरक को मिट्टी में मिलाकर थैली) में देकर सिंचाई करना चाहिए. इस मिश्रण को नर पौधों को और ऐसे पौधो को नही देना चाहिए, जिसे चार से छह माह बाद निकालकर फेकना है.गौमूत्र  का छिडकाव फल आने से पूर्व करना चाहिए तथा गौमूत्र से बने कित्नाशाको का प्रयोग समय समय पर करना चाहिय 

नर पौधों को अलग करना

पपीते के पौधे 90 से 100 दिन के अंदर फूलने लगते है तथा नर फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लंबे डंठल युक्त होते है. नर पौधों पर पुष्प एक से 1.3 मीटर के लंबे तने पर झूलते हुए तथा छोटे होते है. प्रति 100 मादा पौधों के लिए पांच से 10 नर पौधे छोड़ कर शेष को उखाड़ देना चाहिए. मादा पुष्प पीले रंग के 2.5 सेंटीमीटर लंबे तथा तने के नजदीक होते है.

निराई, गुड़ाई तथा सिंचाई

गर्मी में चार से सात दिन तथा ठंड में 10 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए. पाले की चेतावनी पर तुरंत सिंचाई करें.  तीसरी सिंचाई के बाद निराई गुड़ाई करें ताकि जड़ों तथा तने को नुकसान न हो.

फलों को तोड़ना

पौधे लगाने के नौ से 10 माह बाद फल तोड़ने लायक हो जाते है. फलों का रंग गहरा हरे रंग से बदलकर हल्का पीला होने लगता है तथा फलों पर नाखुन लगने से दूध की जगह पानी तथा तरल निकलता हो तो समझना चाहिए कि फल पक गया होगा. फलों को सावधानी से तोड़ना चाहिए. छोटी अवस्था में फलों की छटाई अवश्य करना चाहिए.

पौध संरक्षण

माइट, एफीड्स तथा फल मक्खी जैसे कीटों का प्रकोप इन पर देखा गया है. इसके नियंत्रण को मेटासिस्टाक्स एक लीटर दवा प्रति हेक्टेयर के दर से तथ दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतर से करना चाहिए. फूट एंड स्टेम राट बीमारी से पौधों को बचाने के लिए तने के पास पानी न जमा होने न दें. जिस भाग में रोग लगा हो वहां चाकू से खुरच कर बोडो पेस्ट भर देना चाहिए. पावडरी मिलड्यू के नियंत्रण के लिए सल्फर डस्ट 30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के हिसाब से 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करें.

पपीता के पौधो में दिए जाने वाली दवाओ की मात्रा एवं सम्बंधित जानकारिया

1. पौधा लगाने के बाद जड़ में डाले, प्रति पम्प 120 से 140 पौधे (नोज़ल निकाल कर) 
नोट:- दवाई पौधे पर न उड़ने दे I
a. ट्रायकोडर्मा - 100 ग्राम 
b.बायोनिकोनिमा - 100 ग्राम 

2. पौधा लगाने के 8 दिन बाद पौधे की जड़ में डाले प्रति पम्प 120 से 140 पौधे I (नोज़ल निकाल कर) 
 नोट:- दवाई पौधे पर न उड़ने दे I
a. ब्लुकापर - 60 ग्राम 

 • पौधो पर स्प्रे 15 से 25 दिन में आवश्यकता अनुसार करे I 
• स्प्रे के लिए उपयोग में लिया जाने वाला पम्प हमेशा अलग रखे I 
• स्प्रे में इल्ली मरने वाले कीटनाशक दवाईयो का उपयोग कभी न करे आवश्यकता पड़ने पर संपर्क करे I
• पौधे पर किये जाने वाले छिडकाव निचे लिखे अनुसार करे I

a. रोगोर - 25 एम्. एल.
b. वायरो वाश - 15 एम्. एल.

2. दूसरा स्प्रे करे I (प्रति पम्प) 
a. नीम का तेल - 60 एम्. एल.
b. वायरो वाश - 15 एम्. एल.

3. तीसरा स्प्रे करे I (प्रति पम्प) 
a. नीम का तेल - 60 एम्. एल 
b. वायरो वाश - 15 एम्. एल.

4. चौथा स्प्रे करे I (प्रति पम्प) 
a. आरियोफंगिन - 3 ग्राम 
b. स्ट्रेपटो सायक्लिन - 2 ग्राम

5. पाचवा स्प्रे करे I (प्रति पम्प) 
a. मेन्कोजेब - 30 ग्राम 
b. एक्टारा - 8 ग्राम (डेढ़ चम्मच)
c. वायरो वाश - 15 एम्. एल.

a. इमिडाक्लोप्रिड - 6 एम्. एल 
b. कापर ओक्सिक्लोराइड - 30 ग्राम 
c. वायरो वाश - 15 एम्. एल.

उपज तथा आर्थिक लाभ

प्रति हेक्टेयर पपीते का उत्पादन 35-40 टन होता है. यदि 1500 रुपये प्रति टन भी कीमत आंकी जायेंं तो किसानों को प्रति हेक्टेयर लगभग 34000 रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त होने की पूरी संभावना है.

organic farming: 
जैविक खेती: