आखिर किसान किस पर विश्वास करे ?
आजकल गेहूं, चावल, मक्का, कॉटन आदि अनेक फसलों के ऐसे बीज उपलब्ध हैं जो प्राकृतिक नहीं होते बल्कि प्रयोगशालाओं में तैयार किये जाते हैं. ये बीज Genetically Modified अथवा जी-एम् कहलाते हैं. अप्रैल 3, 2014 एक खबर के अनुसार केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका पर जवाब देते हुए प्रार्थना की है कि उसे जी-एम् बीजों को खेतों में प्रयोग की अनुमति दी जाए. सन 2004 से यह मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है. जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेषज्ञ कमेटी ने कहा था कि जी-एम् बीजों के परीक्षण केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित रखे जाएँ.
इस विषय पर सरकार ने एक संवैधानिक नियंत्रक कमेटी (GEAC) भी बनायी हुई है. विशेषज्ञ कमेटी के अलावा संसद की स्थायी कमेटी ने भी नियंत्रक कमेटी की कार्यविधि पर प्रश्न चिन्ह उठाये हैं. सन 2010 में नियंत्रक कमेटी ने बैंगन के जी-एम् बीजों के उपयोग की अनुमति दी हुई थी, परंतू पर्यावरण मंत्रालय ने फिर भी उनके उपयोग पर प्रतिबन्ध लगाए हुए थे. उस समय कृषि मंत्री तथा विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री ने मिलकर प्रधानमंत्री पर दबाव बना उपरोक्त बीजों पर लगे प्रतिबंधों को हटवाना चाहते थे. साझा सरकारों में इस प्रकार के दबावों की संभावना अधिक होती है.
आज़ादी के बाद से पूरे देश में किसानों को सभी फसलों के उन्नत बीज भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) उपलब्ध कराती रही थी. देश के पेटेंट क़ानून से भी उसे सुरक्षा मिली हुई थी. परंतू अब अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के तहत देश के बीज व्यापार पर अमरीकी कंपनियों का वर्चस्व है, क्योंकि अधिकाँश पेटेंट उन्हीं के हाथ में हैं. देश की अधिकाँश निजी कंपनियाँ MNC’s के लाईसेन्स के अंतर्गत माल बेचती हैं.
इसी विषय पर अभी हाल में केन्द्रीय पर्यावरण एवं जंगलात मंत्री ने कुछ समय पहले इसी पद पर रहे अपने सहयोगी मंत्री के निर्णय को बदला है. पूर्व मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट गठित विशेषज्ञ कमेटी के मना करने पर जी-एम् बीजों के खेतों में परीक्षण को अवैध माना हुआ था. आम चुनावों के कारण बने देश के माहौल में केन्द्रीय मंत्री के उपरोक्त निर्णय पर प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी. सीपीआई (एम्) से जुड़ी किसानों की एक संस्था ने चुनाव आयोग को शिकायत करते हुए आरोप लगाया है कि बहुराष्ट्रवादी कंपनियों (MNC’s) को इस प्रकार जल्दबाजी कर फायदा पंहुचाने में भ्रष्टाचार की गंध आती है.
जी-एम् फसलों पर सरकारी निर्णय से देश के असंख्य किसान तो प्रभावित होते ही हैं, बीजों के दाम बढने से पूरे देश के लिए महंगाई भी बढ़ती है. इसलिए ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय के साथ प्रधानमंत्री का वक्तव्य भी आना चाहिए था.
भारत की एक विशिष्ट सभ्यता है. देश की समस्त जनता को रामराज्य जैसी राजनीतिक व्यवस्था पर हमेशा से विश्वास रहा है. इसलिए वह प्रधानमंत्री को राजा के रूप में देखती है, और विश्वास करती है कि प्रधानमंत्री सभी दबावों को झेल उनके हित की रक्षा करेंगे. प्रधानमंत्री के वक्तव्य से उनके विश्वास को पुष्टि मिलती है