फसल में रोग व कीट नियन्त्रण

सामग्री

गौमूत्र                                              10 ली. (देशी गाय)                                                      

गाय का गोबर                                    5 कि. ग्रा.

हल्दी                                               250 ग्राम

लहसुन का पेस्ट                               250 ग्राम

पानी                                             5 लीटर

सभी सामग्री को आपस में मिला दें और 25-30 दिन तक प्लास्टिक पात्र में रखें। इसके बाद 150-200 ली. पानी तथा 1 ली. दूध मिला कर पौध रोपण के 20 दिन बाद व फूल आने से 15 दिन पहले फसल में छिड़काव करें।

1 कि.ग्राम तुलसी की पत्तियों में 1 ली. पानी मिलाकर उबालें। जब आधा पानी रह जाए तो उसमें से तुलसी की पत्तियाँ छान लें व दुबारा गर्म करें। जब पानी 100-150 ग्राम रह जाये तो उबालना बन्द कर दें। झुलसा व फफूँदी रोगों से ग्रस्त फसलों पर इसका छिड़काव करें।

लकड़ी की राख, रेत, धान की भूसी को नीम के तेल या मिट्टी तेल में 5:1 के अनुपात में मिला कर 12 घंटे रखें। इसके बाद खेत में छिड़काव कर दें। इसके छिड़काव से कीट खेतों से भाग जाते हैं।

1 कि.ग्रा. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर 20 कि.ग्रा. लकड़ी की राख के साथ मिला कर बीज बुआई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़काव करें।

1 कि.ग्रा. तम्बाकू की पत्तियों को 10 ली. पानी में गर्म करें। ठण्डा होने के बाद उसमें 250 ग्राम चूना और 500 मि.ली. मिट्टी का तेल मिलायें। इसको 20 ली. पानी में मिला दें तथा उसमें 100 ग्राम साबुन का घोल मिला कर दीमक से फसल के बचाव के लिये छिड़काव करें।

1 ली. दूध में 12 ली. पानी मिलायें। 50 ग्राम तुलसी या बेल का रस मिला कर 15-20 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। यह फफूँदी वाले रोगों में काफी लाभदायक होता है।

धान की भूसी 5 कि.ग्रा., 2 ली. मट्ठा, 2 कि. ग्रा., तिल की पत्तियाँ, 6 ली.गोमूत्र को आपस में मिला कर एक प्लास्टिक पात्र में 7-10 दिन रखें। इसके बाद 40 ली. पानी मिला कर बीज बुआई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़क दें। यह मिर्च व बैंगन में बहुत उपयोगी है।

ज्यादा देर से बुवाई करने पर फसल पर रोग व कीट ज्यादा लगते हैं व उत्पादन कम होता है। खेत में ज्यादा समय तक पानी भरकर नहीं रखना चाहिए। इससे कई रोग व कीट लगने की सम्भावना बढ़ जाती है। समय पर पानी खेत से बाहर निकालते रहना चाहिये जिससे भूमि में हवा का आवागमन सही ढँग से हो सके। इससे पौध अच्छी तरह बढ़ते हैं व उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
    

                                                       

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