लिलियम फूल की जैविक खेती
खेत की तैयारी एवं बुआई
भूमि तैयारी रोपाई से पहले गोबर की गली-सडीं खाद या कम्पोस्ट 6 किग्रा0 प्रति वर्ग मी0 नारियल का बुरादा 6 किग्रा0 प्रति वर्ग मी0 माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट खाद 50 ग्राम प्रति वर्ग मी0, माइक्रो भू पावर 30 ग्राम प्रति वर्ग मी0 व सुपर गोल्ड कैल्सिफर्ट 30 ग्राम प्रति वर्ग मी0 क्षेत्र के हिसाब से मिट्टी मे मिलाए।
बिजाई का समय मैदानी क्षेत्रों के लिए इसकी बुवाई का समय अक्टूबर-नवम्बर माह के बीच व पहाडी क्षेत्रो के लिए अप्रैल-मई के बीच है। लिली मे फूल मैदानी क्षेत्रों मे जनवरी-फरवरी तथा पहाडी क्षेत्रों मे जुलाई-अगस्त मे आते है।
दूरी
कन्दो से कन्दो की दूरी 15 सेमी0 व कतार से कतार की दूरी 25 सेमी0 रखी जाती है। रोपाई के समय कन्दो को 15 सेमी0 की गहराई पर बोना चाहिए।
जलवायु
लिली की खेती के लिए मृदु जलवायु की आवश्यकता होती है। इसको प्लास्टिक घरो या शीशे के घरों में उगाया जाता है। जहां पर इसकी खेती के लिए उचित जलवायु हो वहां इसकी खेती खुले क्षेत्रो मे की जा सकती है। खुले क्षेत्रों मे खेती करने से तेज हवा आंधी, कुहरा पाला तथा रोगों आदि से हानि हाने का खतरा बना रहता है। कम प्रकाश की तीव्रता मे लिली की वृद्धि अच्छी होती है। लिली मे जड़ तन्त्र के विकास के समय 12-13 डिग्री सेल्च्चियस के तापमान की आवश्यकता होती है। अधिक तापमान होने से तने की लम्बाई कम हो जाती है तथा प्रति तना बहुत कम कलियां मिलती है। उत्तम फूलो के उत्पादन के लिए मृदा का तापमान गर्मियों मे 9-13 डिग्री सेल्शियस व जाडों में 10 डिग्री सेल्शियस उपयुक्त माना गया है। ग्रीन हाउस के अन्दर 80-85 प्रतिशत आर्द्रता का होना पौधे की वृद्धि के लिए उचित रहता है।
किस्मेंहै |
एशियाटिक प्रजातियांसफेद- अलास्का, नवोना, सेनकेयर
नारंगी- इलिट, एपलडून, कम्पास
पीला- कनेक्टीकट किंग, ड्रीमलैंड, पोलीआना, सनरेज
लाल- एनचेंटमैट
गुलाबी- मोन्टै रोजा, टोस्काना,
सफेद- ओनी, मोन्ट ब्लैंक पोमा
ओरियंटल
सफेद- कासा ब्लान्का, व्हाइट मांउटेन,
गुलाबी- कैसकैड, ओलम्पिक स्टार, स्टार गेजर मोना लीसा
सफेद/गुलाबी- मार्को पोलो
भूमि
मृदा लिलियम को कई प्रकार की भूमि मे उगाया जा सकता है लेकिन अच्छे जल निकास वाली जिसमे कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अच्छी हो इसकी खेती के लिए उचित मानी जाती है। ज्यादातर 6.5-7.5 पी0 एच0 मान वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है।
परिचय
लिलियम
वैज्ञानिक नाम : लिलियमस्पीसीज
स्थानीय नाम : लिली
हिन्दी नाम : लिली
बुआई का समय : वर्ष भर
उत्पत्ति तथा इतिहास लिलि की उत्पत्ति उत्तरी गोलार्द्ध है। एशिया का पूर्वी समुद्रतट, उत्तरी अमेरिका का पश्चिमी समुद्रतट तथा भूमध्य सागरीय भाग लिली का अत्यधिक सामृद्धि वाले क्षेत्र है। लिली के बारे मे पहला प्रमाणित लेख 1000 वर्ष पहले का एशियान आन्दोलन से मिलता है। प्रैग-ऐतिहासिक काल मे लिली का धार्मिक महत्व था। जिसमे लिली को कला, साहित्य और उद्यान सभी जगह प्रयोग किया गया है।
उपयोग एवं पोषक मान्य लिली के फूलों का प्रयोग मुख्य रूप से कर्तित पुष्पों के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त इनको क्यारियों में बार्डर व गमलों मे लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इनकी कुछ प्रजातिया भोजन मे भी प्रयोग लाई जाती है। लिलियम कैन्डीडम के पुष्पों में लिलेलिन नाम का एल्केलॉयड पाया जाता है। इनके कंदो से चिपचिपा पदार्थ निकलता है जिसका प्रयोग दवाई के रूप में कार्न को मुलायम करने के, गरम पानी से और अन्य जले को ठीक करने में किया जाता है।
वानस्पतिकविवरण लिली (लिलियम) लिलिऐसी कुल का महत्वपूर्ण कंदीय पुष्प है। लिली के कन्द का आधार सख्त होता है जो कि ऊपर की ओर शाकीय पत्तियों से ढका रहता है। ज्यादातर लिली एकल शाखीय होते है जिस पर कि पतली नुकीलीदार पत्ती होती है। छतरीदार फूल शाखा के शीर्ष पर लगते है। फूल पूर्ण विकसित तथा छः पंखुडी लिए होते है जिसके आधार पर शहद पैदा करने वाली ग्रंथियाँ होती है। इसमे 6 पुंकेसर व वर्तिकाग्र बडा़ होता है। फल तीन कोष्ठीय होते है जिसमे बहुत सारे बीज होते है।
वर्गीकरण
लिली को मुख्यतः आठ भागों मे बांटा गया है। ये वर्गीकरण मुख्यतः पुष्प प्रति डंडी, पुष्प आकार व पुष्प स्थिति के आधार पर किया गया है। इनमे से केवल दो वर्गीकरण, एशियाटिक प्रजातियाँ व ओरियंटल प्रजातियों का औद्योगिक स्तर पर कर्तित पुष्पों के रूप में प्रयोग किया जाता है।
1) एशियाटिकः प्रजातियां ये 30-150 सेमी0 लम्बे होते है। पुष्पों को व्यास 15-20 सेमी0 के बीच होता है। कटे हुए फूलों की आयु 7-14 दिन होती है।
2) ओरियंटलः इस प्रजाति मे बडे़ आकार के आर्कषक व खुशबूदार पुष्प होते है। ये 60-180 सेमी0 लम्बे तश्तरीनुमा फूल पाये जाते है। इनमे कटे हुए फूलों की आयु 10-15 दिन होती है |
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