ब्रोकोली की खेती आर्थिक एवं स्वास्थ्य दोनों को लाभकारी
ब्रोकोली की खेती ठीक फूलगोभी की तरह की जाती है. इसके बीज व पौधे देखने में लगभग फूल गोभी की तरह ही होते हैं| ब्रोकोली का खाने वाला भाग छोटी छोटी बहुत सारी हरे फूल कलिकाओं का गुच्छा होता है जो फूल खिलने से पहले पौधों से काट लिया जाता है और यह खाने के काम आता है. फूल गोभी में जहां एक पौधे से एक फूल मिलता है वहां ब्रोकोली के पौधे से एक मुख्य गुच्छा काटने के बाद भी , पौधे से कुछ शाखायें निकलती हैं तथा इन शाखाओं से बाद में ब्रोकोली के छोटे गुच्छे बेचने अथवा खाने के लिये प्राप्त हो जाते है.ब्रोकली फुल गोभी की तरह ही होती है लेकिन इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी भी कहते है उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में जाड़े के दिनों में इन सब्जियों की खेती बड़ी सुगमता पूर्वक की जा सकती है जबकि हिमाचल प्रदेश , उत्तरांचल और जम्मू कश्मीर में में इनके बीज भी बनाए जा सकते है
जलवायु
ब्रोकली के लिए ठंडी और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है यदि दिन अपेक्षाकृत छोटे हों तो फुल की बढ़ोत्तरी अधिक होती है फुल तैयार होने के समय तापमान अधिक होने से फुल छितरेदार ,पत्ते दार और पीले हो जाते है |
मिट्टी
इस फ़सल की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन सफ़ल खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी बहुत उपयुक्त है|जिसमे पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद हो इसकी खेती के लिए अच्छी होती है हल्की रचना वाली भूमि में पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद डालकर इसकी खेती की जा सकती है|
प्रजातियाँ
ब्रोकली की किस्मे मुख्यतया तीन प्रकार की होती है श्वेत , हरी व बैंगनी |
बैंगनी
इनमे हरे रंग की गंठी हुई शीर्ष वाली किस्मे अधिक पसंद की जाती है इनमे नाइन स्टार , पेरिनियल,इटैलियन ग्रीन स्प्राउटिंग,या केलेब्रस,बाथम 29 और ग्रीन हेड प्रमुख किस्मे है |
संकर किस्मों में
पाईरेट पेकमे ,प्रिमिय क्राप ,क्लीपर , क्रुसेर , स्टिक व ग्रीन सर्फ़ मुख्य है |
अभी हाल भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कटराई द्वारा ब्रोकली की के.टी.एस.9 किस्म विकसित की गई है इसके पौधे मध्यम उचाई के ,पत्तियां गहरी हरी ,शीर्ष सख्त और छोटे तने वाला होता है | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने हाल ही में पूसा ब्रोकोली 1 क़िस्म की खेती के लिये सिफ़ारिश की है तथा इसके बीज थोड़ी मात्रा में पूसा संस्थान क्षेत्रीय केन्द्र, कटराइन कुल्लू घाटी , हिमाचल प्रदेश से प्राप्त किये जा सकते हैं|
लगाने का समय
उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में ब्रोकोली उगाने का उपयुक्त समय ठण्ड का मौसम होता है इसके बीज के अंकुरण तथा पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए तापमान 20 -25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए इसकी नर्सरी तैयार करने का समय अक्टूम्बर का दूसरा पखवाडा होता है पर्वतीय क्षेत्रों में क़म उचाई वाले क्षेत्रों में सितम्बर- अक्टूम्बर , मध्यम उचाई वाले क्षेत्रों में अगस्त सितम्बर , और अधिक़ उचाई वाले क्षेत्रों में मार्च- अप्रैल में तैयार की जाती है |
बीज दर
गोभी की भांति ब्रोकली के बीज बहुत छोटे होते हैएक हेक्टेअर की पौध तैयार करने के लिये लगभग 375 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है |
नर्सरी तैयार करना
ब्रोकोली की पत्ता गोभी की तरह पहले नर्सरी तैयार करते है और बाद में रोपण किया जाता है कम संख्या में पौधे उगाने के लिए 3 फिट लम्बी और 1 फिट चौड़ी तथा जमीन की सतह से 1.5 से. मी. उची क्यारी में बीज की बुवाई की जाती है क्यारी की अच्छी प्रकार से तैयारी करके एवं सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर बीज को पंक्तियों में 4-5 से.मी. की दुरी पर 2.5 से.मी. की गहराई पर बुवाई करते है बुवाई के बाद क्यारी को घास - फूस की महीन पर्त से ढक देते है तथा समय-समय पर सिचाई करते रहते है जैसे ही पौधा निकलना शुरू होता है ऊपर से घास - फूस को हटा दिया जाता है नर्सरी में पौधों को कीटों से बचाव के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र का प्रयोग करें |
रोपाई
नर्सरी में जब पौधे 8-10 या 4 सप्ताह के हो जायें तो उनको तैयार खेत में कतार से कतार , पक्ति से पंक्ति में 15 से 60 से. मी. का अन्तर रखकर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 सें०मी० का फ़सला देकर रोपाई कर दें | रोपाई करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए तथा रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें |
खाद और उर्वरक
रोपाई की अंतिम बार तैयारी करते समय प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 50 किलो ग्राम गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद कम्पोस्ट खाद इसके अतिरिक्त 1किलो ग्राम नीम खली 1किलो ग्रामअरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर क्यारी में रोपाई से पूर्व समान मात्रा में बिखेर लें इसके बाद क्यारी की जुताई करके बीज की रोपाई करें |
रासायनिक खाद की दशा में
खाद की मात्रा प्रति हेक्टेअर | खाद मिट्टी परीक्षण के आधार पर दे
गोबर की सड़ी खाद : 50-60 टन
नाइट्रोजन : 100-120 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर
फॉसफोरस : 45-50 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर
गोबर तथा फ़ॉस्फ़रस खादों की मात्रा को खेत की तैयारी में रोपाई से पहले मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें. नाइट्रोजन की खाद को 2 या 3 भागों में बांटकर रोपाई के क्रमशः 25 ,45 तथा 60 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं. नाइट्रोजन की खाद दूसरी बार लगाने के बाद, पौधों पर परत की मिट्टी चढाना लाभदायक रहता है |
निराई-गुड़ाई व सिंचाई
मिट्टी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर,इस फ़सल में लगभग 10-15 दिन के अन्तर पर हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है|
खरपतवार
ब्रोकोली की जड़ एवं पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए के लिए क्यारी में से खरपतवार को बराबर निकालते रहना चाहिए गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है गुड़ाई के उपरांत पौधे के पास मिटटी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है |
कीड़े व बीमारियाँ
काला सडन, तेला, तना सडन ,मृदु रोमिल रोग यह प्रमुख बीमारियाँ हैं
रोकथाम
इसकी रोकथाम के लिए 5ली. देशी गाय के मठ्ठे में 2 किलो नीम की पट्टी 100 ग्राम तम्बाकू की पट्टी 1 किलो धतूरे की पट्टी को 2 ली. पानी के साथ उबालें जब पानी 1 ली . बचे तो ठंडा करके छान के मठ्ठे में मिला ले 140 ली पानी के साथ (यह पूरे घोल का अनुपात है आप लोग एकड़ में जितना पानी लगे उस अनुपात में मिलाएं ) मिश्रण तैयार कर पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
कटाई व उपज
फ़सल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बनकर तैयार हो जाये शीर्ष रोपण के 65-70 दिन बाद तैयार हो जाते हैतो इसको तेज़ चाकू या दरांती से कटाई कर लें. ध्यान रखें कि कटाई के साथ गुच्छा खूब गुंथा हुआ हो तथा उसमें कोई कली खिलने न पाएँ. ब्रोकोली को अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी वह ढीली होकर बिखर जायेगी तथा उसकी कली खिलकर पीला रंग दिखाने लगेगी ऐसी अवस्था में कटाई किये गये गुच्छे बाजार में बहुत कम दाम पर बिक सकेंगे. मुख्य गच्छा काटने के बाद, ब्रोकोली के छोटे गुच्छे ब्रिकी के लिये प्राप्त होगें.
ब्रोकोली की अच्छी फ़सल से ल्रगभग 12 से 15 टन पैदावार प्रति हेक्टेअर मिल जाती है.