लौकी ,तोरई टिंडा आदि फसलों की खेती

गर्मियों में बेल वाली सब्जियाँ जैसे लौकी, तरोई, टिंडा आदि की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। यह तीनों ही फसलें हरी तरकारीओं में आती हैं । इस समय क्योंकि बाजार में जाड़े की सब्जियां आना कम हो जाती है और उपभोक्ता नई हरी ताजी सब्जी का स्वाद लेना चाहते हैं तो ऐसे में इन तीनों ही सब्जियों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। गर्मियों में इन सब्जियों की खेती करके प्रति इकाई क्षेत्रफल में अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। लौकी, तरोई, टिंडा को लगाने का उचित समय फरवरी का द्वितीय सप्ताह है। अगेती फसल के रूप में किसान दिसंबर के प्रारंभ में पॉली टनेल में नर्सरी तैयार कर सकते हैं और फरवरी के प्रथम सप्ताह में जब बेले 3 से 4 फीट की हो जाती हैं तब सीधे खेत में रोपित कर दे। ऐसा करने से मार्च के प्रथम सप्ताह में ही प्रथम तोड़ाई प्राप्त होने लगती है और अच्छा लाभ प्राप्त होता है।तीनों ही सब्जियां एल्कलाइन (कसैले ) प्रकृति की होती है, इसलिए कैंसर रोधी मानी जाती है। साथ ही शरीर की अनेकों व्याधियों को दूर करने में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। यदि इन सब्जियों की खेती में कुछ प्रमुख बातों का ध्यान दिया जाए तो प्रति इकाई क्षेत्रफल से कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

1. बेलों की नियमित रूप से थांवला विधि से सिंचाई करते रहे।ड्रिप (टपक) विधि से सिचाई करना ज्यादा लाभप्रद रहता है तथा इससे पानी की भी बचत होती है।

2. बेलों को मचान पर सहारा देखकर चढ़ा देना चाहिए। मचान पर लगी सब्जियों में पर परागण की क्रिया बहुत अच्छी तरह से होती है जिससे उत्पादन बढ़ जाता है। साथ ही फल भी जमीन के संपर्क में ना आने के कारण कम खराब होते हैं व उनका आकार भी अच्छा होता है।

3. मचान पर लगी सब्जियों मैं उत्पादन अधिक मिलता है और फलों का रंग एवं गुणवत्ता भी उत्तम रहती है, जिससे बाज़ार में बेहतर मूल्य मिलता है।

4. यदि बेले 1 माह पुरानी हो चुकी हैं तो प्रत्येक थावले में आधा किलो गोबर की खाद के साथ 10-15 ग्राम एनपीके सांयकाल के समय प्रयोग करें।

5. खेत में खरपतवार बिल्कुल ना होने दें, क्योंकि खरपतवार होने से भोजन के लिए प्रतियोगिता होगी और फसल को मिलाने वाला पोषण खरपतवार के हिस्से में चला जायेगा जिससे उपज प्रभावित होगी, साथ ही रोग, कीट और व्याधियों का प्रकोप भी अधिक होगा।

फलों का गिरना:

इन सब्जियों में छोटे फलों का गिरना एक सामान्य समस्या है जो प्रायः परागण क्रिया के पर्याप्त ना होने के कारण, मौसम में अचानक गर्मी आने, हवा में नमी कम होने व हार्मोन के असंतुलन के कारण होती है। फलों के गिरने पर अगर समय से ध्यान नहीं दिया गया तो किसान भाइयों को काफी आर्थिक क्षति हो सकती है। फलों को गिराने से बचाने के लिए कुछ सावधानियां प्रयोग में लानी चाहिए;

जैसे-

1. फसल की भली प्रकार सेवा करें तथा सही समय पर सिंचाई करें और अवशयक पोषण पदार्थ दें। बेलो को सही अवस्था पर मचान पर चढ़ाएं, जिससे एक समान खेत रहे, इससे यह समस्या कम आती है ।

2. फल गिरने से रोकने के लिए 5 ग्राम चिलेटेड बोरान व 1 ग्राम 5% नेपथलीन एसिटिक एसिड (NAA) नामक हार्मोन को 5 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

3. फलो का टेढ़ा होना भी एक मुख्य समस्या है जो जब फूल से फल बनने की प्रक्रिया होती है, तब अंडाशय अत्यधिक गर्मी के कारण एक समान बढ़वार नहीं प्राप्त कर पाता और फल टेढ़े होने लगते हैं। इसके अतिरिक्त फल मक्खी के प्रकोप के कारण भी फल टेढ़े होने लगते हैं

4. अत्यधिक गर्मी में फसल को दबाव (स्ट्रेस) से बचाने के लिए 3 से 4 ग्राम सल्फेट ऑफ पोटाश का स्प्रे करने से फसल गर्मी से भली प्रकार अपने को बचा लेती है तथा फलों का टेढ़ा होना भी कम हो जाता है।

फल मक्खी की रोकथाम के लिए फल- मक्खी- प्रपंच बाजार में उपलब्ध है। 8 प्रपंच प्रति एकड़ की दर से खेत में प्रयोग करने तथा 20 से 25 दिन बाद पुनः इस प्रक्रिया को दोहराने से इस समस्या से काफी हद तक मुक्ति पाई जा सकती है तथा ऐसा करने से फल मक्खी का प्रकोप काफी कम हो जाता है।

इस प्रकार किसान भाई लौकी तरोई टिंडा जैसी बेल वाली फसलों के वैज्ञानिक विधि से प्रबंधन करेंगे, तो निश्चित रूप से उनको अच्छी आय प्राप्त होगी।

डॉ आर के सिंह,

अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बरेली

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