वर्मीवाश : एक तरल जैविक खाद

ताजा वर्मीकम्पोस्ट व केंचुए के शरीर को धोकर जो पदार्थ तैयार होता है उसे वर्मीवाश कहते हैं। यह भिन्न-भिन्न स्थानों पर विभिन्न संस्थाओं/व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग विधियां अपनायी जाती हैं, मगर सबका मूल सिद्धान्त लगभग एक ही है। विभिन्न विधियों से तैयार वर्मीवाश में तत्वों की मात्रा व वर्मीवाश की सांद्रता में अन्तर हो सकता है।

बनाने की प्रक्रिया:-

वर्मीवाश इकाई बड़े बैरल/ड्रम, बड़ी बाल्टी या मिट्टी के घड़े का प्रयोग करके स्थापित की जा सकती है। प्लास्टिक, लोहे या सीमेन्ट के बैरल प्रयोग किये जा सकते हैं जिसका एक सिरा बन्द हो और एक सिरा खुला हो। सीमेंट का बड़ा पाईप भी प्रयोग किया जा सकता है। इस पाईप को एक ऊँचे आधार पर खड़ा रखकर नीचे की तरफ से बंद करें। नीचे की तरफ आधार के पास साईड में छेद (1 इंच चैड़ा) करें । इस छेद में T पाईप डालकर वाशर की मदद से सील करें। अंदर की ओर आधा इंच पाईप रखें तथा बाहर इतना कि नीचे बर्तन आसानी से रखा जा सके। बाहर T पाईप के छेद में नल फिट करें तथा दूसरे छेद में नट लगायें जोकि पाईप की समय-समय पर सफाई के काम आएगा। यह नल सुविधानुसार बैरल की पेंदी में भी लगाया जा सकता है।

 इस्माइल (1997) द्वारा प्रयुक्त वर्मीवाश इकाई की कार्यप्रणाली इस प्रकार है। नल को खुला छोड़ कर बैरल में 2-4 इंच मोटे ईंट के टुकड़े या रोड़ी की 10-12 इंच मोटी परत बिछायें। इस पर पानी डालें जोकि नीचे से निकल जाए। इसके ऊपर मोटे रेत की 8-12 इंच परत बिछायें। फिर पानी डालें तथा नीचे नल से निकालें। इसके ऊपर 1-1.5 फुट दोमट मिट्टी की परत बिछायें। इसे गीला करें तथा 50-50 एपिजेइक व एनिजेइक केंचुए डालें। अगर सिर्फ एपिजेइक केंचुओं का प्रयोग करना हो तो मिट्टी की आवश्यकता नहीं है। केवल 2-4 इंच मिट्टी की परत डाल सकते हैं। इसके ऊपर गोबर की परत डाल दें। धीरे-धीरे पानी डालें तथा अतिरिक्त पानी निकल जाने के बाद नल बन्द कर दें। 20-25 मिनट नल को खुला रखते हुए रोजाना इकाई को नम करें। इस दौरान केंचुए वर्मीकम्पोस्ट बनाना शुरू कर देंगे।

 

ताजा वर्मीकम्पोस्ट व केंचुए के शरीर को धोकर जो पदार्थ तैयार होता है उसे वर्मीवाश कहते हैं। यह भिन्न-भिन्न स्थानों पर विभिन्न संस्थाओं/व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग विधियां अपनायी जाती हैं, मगर सबका मूल सिद्धान्त लगभग एक ही है। विभिन्न विधियों से तैयार वर्मीवाश में तत्वों की मात्रा व वर्मीवाश की सांद्रता में अन्तर हो सकता है।

बनाने की प्रक्रिया:-

वर्मीवाश इकाई बड़े बैरल/ड्रम, बड़ी बाल्टी या मिट्टी के घड़े का प्रयोग करके स्थापित की जा सकती है। प्लास्टिक, लोहे या सीमेन्ट के बैरल प्रयोग किये जा सकते हैं जिसका एक सिरा बन्द हो और एक सिरा खुला हो। सीमेंट का बड़ा पाईप भी प्रयोग किया जा सकता है। इस पाईप को एक ऊँचे आधार पर खड़ा रखकर नीचे की तरफ से बंद करें। नीचे की तरफ आधार के पास साईड में छेद (1 इंच चैड़ा) करें । इस छेद में T पाईप डालकर वाशर की मदद से सील करें। अंदर की ओर आधा इंच पाईप रखें तथा बाहर इतना कि नीचे बर्तन आसानी से रखा जा सके। बाहर T पाईप के छेद में नल फिट करें तथा दूसरे छेद में नट लगायें जोकि पाईप की समय-समय पर सफाई के काम आएगा। यह नल सुविधानुसार बैरल की पेंदी में भी लगाया जा सकता है।

 इस्माइल (1997) द्वारा प्रयुक्त वर्मीवाश इकाई की कार्यप्रणाली इस प्रकार है। नल को खुला छोड़ कर बैरल में 2-4 इंच मोटे ईंट के टुकड़े या रोड़ी की 10-12 इंच मोटी परत बिछायें। इस पर पानी डालें जोकि नीचे से निकल जाए। इसके ऊपर मोटे रेत की 8-12 इंच परत बिछायें। फिर पानी डालें तथा नीचे नल से निकालें। इसके ऊपर 1-1.5 फुट दोमट मिट्टी की परत बिछायें। इसे गीला करें तथा 50-50 एपिजेइक व एनिजेइक केंचुए डालें। अगर सिर्फ एपिजेइक केंचुओं का प्रयोग करना हो तो मिट्टी की आवश्यकता नहीं है। केवल 2-4 इंच मिट्टी की परत डाल सकते हैं। इसके ऊपर गोबर की परत डाल दें। धीरे-धीरे पानी डालें तथा अतिरिक्त पानी निकल जाने के बाद नल बन्द कर दें। 20-25 मिनट नल को खुला रखते हुए रोजाना इकाई को नम करें। इस दौरान केंचुए वर्मीकम्पोस्ट बनाना शुरू कर देंगे।

 

इकरीसेट, हैदराबाद में डाॅ. ओ.पी. रूपेला द्वारा अपनायी जा रही वर्मीवाश विधि उपरोक्त विधि का ही एक प्रारूप है। इसमें फिल्टर के रूप में एक बदलाव किया गया है। एक गोलाकार चोड़ा सीमेंट का पाईप एक प्लेटफार्म पर रखकर सीमेंट से जोड़ें। इसके ऊपर एक और सीमेंट का पाईप रखें। दोनों के बीच एक मोटी लोहे की जाली रखें तथा सीमेंट से जोड़ें। नीचे वाले पाईप के साईड में नीचे एक नल लगायें। लोहे की जाली के ऊपर प्लास्टिक की जाली रूपी फिल्टर बिछायें जिसके किनारे बैरल से बाहर निकले हों। फिल्टर के ऊपर गोबर डालें व केंचुए (ईसीनिया फीटिडा) डाल दें। इसके ऊपर फसल अवशेष/पत्तियों आदि की 3-4 इंच मोटी परत बिछायें। यह अवशेष उसी रूप में या 2% गोबर की स्लरी से भिगोकर डाल सकते हैं। प्रति सप्ताह इसी प्रकार अवशेष की परत बिछाते रहें। समय-समय पर पानी छिड़कते रहें। उचित तापमान बनाकर रखें। ऊपर से पाईप को एक पोटली, जिसमें पत्ते/पराली वगैरह भरे हों, से ढ़क देना चाहिए ताकि नमी बरकरार रहे तथा अंधेरा भी रहे।

लगभग 1 माह बाद जब अच्छी वर्मीकम्पोस्ट बनने लग जाए तो वर्मीवाश लेना शुरू कर सकते हैं। ऊपर फव्वारे के रूप में धीरे-धीरे पानी डालें जोकि इकाई से गुजरता हुआ नीचे निकलेगा। चूंकि इकाई का निचला आधा हिस्सा खाली है अतः फिल्टर के माध्यम से पानी नीचे चला जाएगा। दिन में लगभग 10 लीटर पानी यूनिट से बाहर निकालें। इस वर्मीवाश की सांद्रता बढ़ाने के लिए इसे दोबारा से इकाई के माध्यम से गुजारें। इस प्रकार 4-5 चक्रों के बाद सुनहरे रंग का वर्मीवाश तैयार हो जाता है

organic farming: