गन्ने में सफेद सुंडी का रोग अब लाइलाज नहीं
गन्ना, मूंगफली और आलू आदि फसलों पर कहर बनकर टूटने वाली सफेद सुंडी (ह्वाइट ग्रब) जिसे सफेद लट और सफेद गिलार के नाम भी जाना जाता है, अब लाइलाज नहीं रह गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के राष्ट्रीय कृषि उपयोगी कीट ब्यूरो के वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसके जरिए इस रोग का सौ फीसदी इलाज संभव हो सका है। इसके तहत मित्र कीटों के जरिए सफेद कीटों का खात्मा किया जाता है। वैज्ञानिकों ने किसानों की सुविधा के लिए इस तकनीक को पाउडर के रूप में भी विकसित किया है। जिसे पौधारोपण के समय ही मिट्टी में मिला दिया जाता है। इसके बाद पाउडर से पैदा होने वाले मित्र कीट स्वयं ही सफेद सुंडी का काम तमाम करते रहते हैं।
संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ एम नागेश ने बताया कि पाउडर को किसान ज्यादा पसंद कर रहे हैं, क्योंकि इस विधि का उपयोग आसान है। इसके तहत खेत की सूखी मिट्टी, सूखी खाद, सूखे गोबर में पाउडर को मिलाकर बुवाई के समय पौधे के साथ जमीन में डाल दिया जाता है। उसके बाद खेत की हल्की सिंचाई कर दी जाती है। मिट्टी के संपर्क में आते ही पाउडर से मित्र कीटों का जन्म होता है और वे स्वत: ही सफेद सुंडी को ढूंढकर नष्ट करते रहते हैं। खास बात यह है कि यह मित्र कीट केंचुओं की नहीं खाते हैं। इससे जमीन की उपजाऊ शक्ति पर असर नहीं पड़ता।
उन्होंने बताया कि एक अन्य तकनीक भी विकसित की गई है। जिसके तहत इन मित्र कीटों को पहले लैब में विकसित किया जाता है। फिर उन्हें खेतों में छोड़ दिया जाता है। लेकिन इस तकनीक को किसान कम पसंद कर रहे हैं। सफेद सुंडी ऐसा रोग है जो 30 से 100 फीसदी तक फसल चट कर जाता है। अभी तक बाजार में मौजूद कीटनाशक इस रोग का जड़ से इलाज करने में कारगर नहीं हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान जगपाल सिंह चौधरी ने बताया कि आईसीएआर के वैज्ञानिकों की विकसित तकनीक से न सिर्फ गन्ने की फसल सुरक्षित हो रही है बल्कि गन्ने की प्रति हेक्टेयर पैदावार और उसमें रस की मात्रा में भी सुधार हुआ है। खास बात यह है कि वैज्ञानिकों ने इस तकनीक के प्रचार-प्रसार के लिए उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में जागरूकता और प्रशिक्षण अभियान भी शुरू किया गया है। इससे न सिर्फ गन्ना बल्कि मूंगफली और आलू आदि फसलों को भी बचाना संभव हो सकेगा।
Amar Ujala