औषधीय खेती यानी मुनाफ़े ही मुनाफ़ा
खेती को फायदे का व्यवसाय बनाने के लिए किसान खेती के तरीके में बदलाव कर रहे हैं। धान-गेहूं की जगह कम लागत में तैयार होने वाली औषधीय फसलों पर जोर दे रहे हैं। सीतापुर, बाराबंकी औैर राजधानी के आस-पास के जिलों के किसान मेंथा, भूमि आंवला, आर्टीमीशिया एनुआ, सतावर जैसी औषधीय फसलें उगा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश और ओडीशा समेत कई राज्यों में व्यवासायिक स्तर पर औषधीय खेती के लिए गैर सरकारी संस्था आशा ग्रामउद्योग संस्थान किसानों को प्रेरित कर रही है। संस्था के निदेशक (प्रोडक्शन और मार्केटिंग) दिलीप राय बताते हैं, ”हमारी संस्था व्यवसायिक स्तर पर औषधीय फसलों का उत्पदान करवा रही है, इसके लिए हम किसानों को समूह बनाकर उन्हें ट्रेंड करते हैं, मुफ्त में बीज और तकनीकी सहायता देते हैं। फिर घर से फसल खरीद लेते हैं।” दिलीप आगे बताते, ”सीतापुर और बाराबंकी के आसपास करीब 500 एकड़ में जड़ी-बूटी की फसलें लगाई गई हैं। किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिले इसके लिए हमने डाबर इंडिया समेत कई बड़ी कंपनियों से करार भी किया है।” आशा ग्रामा उद्योग के लखनऊ के भिठौली स्थित गोदाम में भूमि आंवले का तैयार माल दिखाते हुए दिलीप बताते हैं, ”भूमि आंवला लीवर रोगों में रामबाण है इस बार 150 एकड़ में रोपाई हुई है, मंडूकपर्णी (ब्राह्मी) का रबका प्रदेश में 1520 एकड़ है।”
जड़ी-बूटी की खेती को फायदे का व्यवसाय बताते हुए दिलीप बताते हैं, ”भूमि आंवला 60.70 दिन में तैयार हो जाती है। गेहूं और धान के बीच किसान इसे आसानी से उगा सकते हैं। इसमें प्रति एकड़ औसतन आठ से दस हजार की लागत आती है जबकि मुनाफा 30,000-35,000 तक हो सकता है।”
आंवले के पेड़ जैसी पत्तियों के चलते इस पौधे को भूमि आंवला कहा जाता है।
भूमि आंवला
मार्च-अप्रैल में भूमि आंवला की एक माह पहले से तैयार पौध लगाई जाती है। फिर 60-70 दिन में पूरे पौधे को काटकर चारा काटने वाली मशीन में काटकर सुखाया जाता है। दो-तीन दिन बार बोरियों में भर दिया जाता है। इसकी एक फसल बरसात के सीजन में भी उगाई जा सकती है।