फसलों के बीज नहीं अब गोली बोएंगे किसान खेती की नई तकनीक
आमतौर पर घाटे का सौदा मानी जाने वाली खेती अब किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी। खाद-बीज की बढ़ती महंगाई की वजह से खेती से विमुख हो रहे किसानों के लिए अच्छी खबर है कि वे फसल के बीज गोली के रूप में बोएंगे और अच्छा उत्पादन लेंगे।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वैज्ञानिक ने एक ऐसी तकनीक ईजाद की है, जिसमें धान, दलहन, तिलहन के बीजों पर कीटनाशक, उर्वरक का आवरण चढ़ाकर न सिर्फ उसकी उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी की जा रही है, बल्कि इससे श्रम व लागत में भी कमी आई है।
फसलों के उत्पादन में होगी बढ़ोतरी
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इससे नई हरित क्रांति की शुरुआत होगी। तकनीक के बड़े पैमाने पर उपयोग से किसानों के साथ देश को भी आर्थिक लाभ होगा। इससे देश के अरबों रुपए बचेंगे, जो उर्वरकों के आयात पर सब्सिडी के रूप में खर्च हो रहे हैं। बीज पर खाद का आवरण (पेलेटिंग) तकनीक को ईजाद करने वाले इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के सस्य वैज्ञानिक डॉ.एसके टांक के मुताबिक इस तकनीक से फसलों के उत्पादन में 20 से 25 फीसदी बढ़ोतरी होगी।
इस तकनीक में बीज के ऊपर पहले फफूंद नाशक का आवरण चढ़ाया जाता है। इसके बाद रसायन व खाद का आवरण चढ़ाया जाता है। इस विधि से तैयार बीज का अंकुरण प्रतिशत अधिक होता है। आमतौर पर साधारण बीज बुआई के समय खेतों में ज्यादा गहराई तक चले जाते हैं। इससे करीब 20-30 फीसदी बीजों का अंकुरण नहीं हो पाता या सड़ जाते हैं। वहीं खाद कोटिंग तकनीक में बोता पद्धति में 30 फीसदी व कतार बोनी में 20 फीसदी बीजों की बचत होती है। इस तकनीक से बोता पद्धति में 30 से 40 फीसदी व कतार बोनी में 20 से 30 फीसदी उर्वरक की बचत होती है।
पेलेटिंग तकनीक के फायदे
- बीज का अंकुरण प्रतिशत अधिक।
- 25 से 30 फीसदी बीज व खाद की बचत
- खेतों में उर्वरक कम डालने से प्रदूषण कम होगा।
- बीज में कीड़े नहीं लगेंगे।
- बड़े पैमाने पर उपयोग से देश की उर्वरक-सब्सिडी का करोड़ों रुपए बचेगा।
बड़े व सब्जी पौधों के लिए टेबलेट
चना-गेंहू के साथ ही लंबी अवधि की सब्जी के पौधों के लिए टेबलेट तकनीक अपनाई जा रही है। इस तकनीक में बीजों पर खाद व कीटनाशक की कोटिंग के साथ ही गोबर खाद का आवरण चढ़ाकर टेबलेट के रूप में तैयार किया जा रहा है, ताकि पौधों को लंबे समय तक उर्वरक भरपूर मात्रा में मिलता रहे।
किसान व देश के लिए वरदान
सस्य वैज्ञानिक डॉ.एसके टांक ने बताया कि इस तकनीक पर वे पिछले सात सालों से काम कर रहे हैं। बीज में खाद का आवरण (पेलेटिंग) चढ़ाने वाली इस तकनीक का सफल परीक्षण अनाज, दलहन, तिलहन व सब्जियों में किया जा चुका है। कृषि विज्ञान केंद्र में पुष्टि के बाद सालभर में यह तकनीक किसानों तक पहुंच जाएगी। इससे किसानों को फायदा तो होगा ही, साथ ही उर्वरक पर खर्च होने वाले देश-प्रदेश के अरबों रुपए की बचत होगी।
समय, श्रम व लागत में कमी
कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ.कृष्ण कुमार साहू का कहना है कि इस तकनीक से किसानों श्रम व लागत में कमी आएगी, समय की भी बचत होगी। साथ ही कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी की भरपूर संभावना है। पौधों में उर्वरक उपभोग दक्षता में भी वृद्धि होगी। यह खेती के भविष्य के लिए अच्छा संकेत है।
साभार नई दुनिया