गाय के गोबर की खाद से धरती का पोषण हो
यूरिया इत्यादि के कई वर्षों के उपयोग से धरती को कितनी हानि हई है और इस हानि को और अधिक न होने देने के लिये क्या-क्या कदम उठाए जायें। यूरिया का अंधाधुंध आयात भी एक बहुत बड़े षडयंत्र के साथ रची एक साजिश है। विदेशी यूरिया बनाने वाली कम्पनियों ने भारतीय अफसरों और ऊँँचे पदों पर राजनीतिज्ञों को इतना चढ़ाया कि सरकारी फाइलों में अफसर लोग लिखने पर बाध्य हो गये कि यूरिया अगर अधिक मात्रा में आयात और प्रयोग किया जाय तो खेतों की उपज बहुत अघिक बढ़ जायेगी। विशेषज्ञों को यह पता ही था कि धरती में यूरिया का अधिक उपयोग आने वाले समय में धरती को बंजर कर देगा। और यही हुआ भी। जहाँ किसानों ने यूरिया के साथ देसी खाद का प्रयोग नहीं किया उनकी धरती बंजर होती चली गई। जिन किसानों की धरती उपज देने के लायक नहीं रही, उनमें से इसी कारण कुछ किसानों ने आत्महत्या तक कर ली। अज जब मोदी सरकार ने शपथ ली है कि वह केवल देश की भलाई के लिये काम करेंगे, यह निर्णय लेना होगा कि रसायनिक खाद के बजाय पूरे देश में किसानों को प्रोत्साहन दिया जाये कि वह गाय के गोबर और गोमूत्र की खाद बनायें और अपने खेतों को यूरिया जैसी जहरीली खाद न देकर परम्परागत और हर समय अजमाई हुई देसी खाद से खेत की उपज बढ़ायें।पत्र-पत्रिकाओं में कितने ही समाचार उन किसानों के छपे हैं जहाँ उन्होंने बताया है कि ठीक देसी खाद के प्रयोग से उन्होंने अपने खेतों से यूरिया के प्रयोग से भी अधिक उपज ली है। एक किसान सदानंद जो कर्नाटक के डोडाबल्लापुर तालुक (फोनः 09342022146) के हैं उन्होंने वर्मी कम्पोस्ट और गोबर गैस प्लांट से बची सलैरी के खाद के प्रयोग से केवल 2.1 एकड़ भूमि से रू. 22 लाख की उपज ली। वैसे हमारे किसान साधारण खाद, जो पूरी उपयोगी है, की विधि भली प्रकार जानते हैं। केवल एक गाय के गोबर और गोमूत्र से 10 एकड़ भूमि के लिये खाद बनाने की यह विधि हैः
(1) तीन दिन का गोबर और दो दिन का गौमूत्र,
(2) किसी भी दाल का आटा – 2 किलो
(3) गुड़ – 2 किलो
(4) जंगल या पेड़ के नीचे की मिट्टी – 2 किलो (लगभग)
(5) थोड़ा जल डालकर चार दिन के पश्चात् खूब हिलाओ, फिर तीन दिन रखो, और उपजाऊ खाद तैयार है।
देसी पेस्टीसाइड्स का प्रयोग भी उपज को जहरीली बनाने से रोकता है। विधि हैः
(1) एक दिन का देसी गाय का गौमूत्र – 7/8 किलो लगभग
(2) पत्ते – नीम या भांग के, या धतूरा या तम्बाकू, या आक, या अनार, या आरन्ड: 5 किलो
(3) लहसुन – 1 किलो
(4) कड़वी हरी मिर्च – 3 किलो
पत्ते, लहसुन और हरी मिर्च को कूट/पीस कर गोमूत्र और थोड़े जल में उबालो। सब से अधिक प्रभावशाली पैस्टीसाइड बन गई। इसे पौधों पर छिंड़कने से कीड़े मरेंगे परन्तु फल य सब्जी जहरीले नहीं होंगे।इस समय समस्या यह रहेगी कि कई किसानों के पास गाय नहीं है। इस समस्या का एक ही हल है कि जिन किसानों के पास गाय हैं वह देसी खाद और पैस्टीसाइड बना कर अपनी धरती को संवारें और जिनके पास गाय नहीं हैं वह स्थान-स्थान पर बनाई गई गौशालाओं से गोबर और गोमूत्र खरीदें और उससे देसी खाद बनाएं। पूरे देश में गौशालाओं का जाल बिछा हुआ है इसलिये किसी किसान को गोबर और गोमूत्र लेने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए। यही समय है कि वह किसान जिनके पास गाय नहीं है वह गौशालाओं से मंहगी या सस्ती गाय खरीदें और अपनी धरती को और अधिक बंजर न होने दें। गौशालाओं को भी चाहिए कि ऐसी परिस्थिति में उन किसानों को जिनके पास गाय नहीं है उनको कम मूल्य पर गाय दें ताकि किसान को यूरिया और पैस्टीसाइड का प्रयोग न करके गाय के गोबर और गोमूत्र की खाद बनाकर अपनी धरती को सींचें।हमारे देश में कृषि संस्थान बहुत हैं, ऐसी और भी संस्थाएं हैं जो किसानों को देसी खाद बनाने में सहायता कर सकती हैं। यह माना जा सकता है कि कई छोटे किसानों के पास देसी खाद बनाने के लिए टैंक इत्यादि नहीं होंगे। मोदी सरकार को चाहिए कि वह बैंकों को आदेश दे कि टैंक इत्यादि बनाने के लिये वह किसानों को कम ब्याज दर पर तुरन्त ऋण दें।ऐसा कहते ही श्री गोपाल गोवर्धन गौशाला, पथमेड़ा का ध्यान आता है जहाँ संस्थापक प.पू. श्री दत्तशरणानन्द जी महाराज ने गौशाला के दूर दराज तक बसे किसानों को देसी गाय की खाद इत्यादि बांटकर और नई बहायी गाय देकर उनको देसी खाद की खेती करने को प्रोत्साहित किया। पथमेड़ा गौशाला की तरफ से किसानों को केचुआ की खाद बहुत कम मूल्य पर देकर उनके खेतों की रसायनिक खाद से नष्ट करने के प्रभाव से बचा लिया। ऐसे ही देश की और सम्पन्न गौशालाएं अगर काम करें तो कोई कारण नहीं कि भारत का किसान फिर से सम्पन्न हो जाये और अपने खेतों में कम-अधिक गाय पालेगा ताकि उसके परिवार को दूध इत्यादि तो मिलेगा ही और उसकी खेती को गोबर की खाद से एक नया जीवन मिले और किसान फिर से आर्थिक रूप से भी सम्पन्न हो।मोदी सरकार को यह भी चाहिए कि संस्थायें जैसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान को इस काम के लिए सक्रिय बनाये। देसी खाद बनाने के तरीके का इस संस्थान के माध्यम से सारे देश में प्रचार हो। इस संस्थान के वैज्ञानिक और दूसरे कार्यकर्ता सारे देश में खाद बनाने की विधि का प्रचार करें और किसानों को आश्वासन दें कि देसी खाद से सींची उनकी खेती अधिक उपज देगी। इस संस्था को और राज्य स्तर पर ऐसी संस्थाओं से मिलकर सक्रिय काम करना होगा ताकि एक ही समय में सारे देश में आने वाले फसलों का केवल देसी खाद से ही पोषण हो और देसी पैस्टीसाइड से रक्षा हो।
- मुलख राज विरमानी