पूसा हाइड्रोजल से एक बार की सिंचाई से होंगी फसलें
जिन इलाकों में जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है, वहां के किसानों के लिए एक राहतभरी खबर है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च(आईसीएआर) ने पूसा हाइड्रोजैल नाम का एक पदार्थ विकसित किया है, जो दो या तीन बार पानी देने वाली फसलों को सिर्फ एक बार की सिंचाई में तैयार कर देगा।
श्योपुर जिले के बड़ौदा कृषि विज्ञान केन्द्र ने इसका प्रयोग चना व गेहूं की फसलों पर किया है, जहां परिणाम उम्मीद से भी अच्छे आए हैं।
ऐसे काम करता है पूसा हाइड्रोजैल
पूसा हाइड्रोजल बारीक कंकड़ों जैसा है। इसे फसल की बोवनी की समय ही बीज के साथ खेतों में डाला जाता है। जब फसल में पहला पानी दिया जाता है तो पूसा हाइड्रोजैल पानी को सोखकर 10 मिनट में ही फूल जाता है और जैल में बदल जाता हैै। जैल में बदला यह पदार्थ गर्मी या उमस से सूखता नहीं है। चूंकि यह जड़ों से चिपका रहता है, इसलिए पौधा अपनी जरूरत के हिसाब से जड़ों के माध्यम से इस जैल का पानी सोखता रहता है। यह जैल ढाई से तीन महीने तक एक सा रह सकता है।
खेत पर बुरा असर नहीं, अनाज का दाना भी बड़ा
बड़ौदा कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक चंद्रभान सिंह के अनुसार जिस खेत में चने व गेहूं के साथ यह पदार्थ डाला गया, वहां सिर्फ एक पानी में ही फसल तैयार हो गई। इतना ही नहीं पूसा हाइड्रोजैल के सहारे हुए चने का आकार भी दो बार की सिंचाई से हुए चने से बड़ा है। खास बात यह है कि इस पदार्थ से खेत में कोई बुरा असर नहीं हुआ।
एक एकड़ में 12 सौ का खर्च
अभी पूसा हाइड्रोजैल के दाम 1200 रुपए किलो हैं। एक एकड़ में बीज के साथ एक किलो पूसा हाइड्रोजैल बोया जाता है। जबकि बोरों से एक बार की सिंचाई में किसान को एक एकड़ के लिए 500 से 700 रुपए चुकाने पड़ते हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जहां पानी ही नहीं वहां के लिए यह चीज वरदान है।
पूसा हाइड्रोजैल ऐसी जगहों के लिए है जहां फसलों के लिए पानी पर्याप्त नहीं है। हमारे प्रयोग में पूसा हाइड्रोजैल पूरी तरह सफल हुआ है। इससे हर वह फसल की जा सकती है जिसमें दो या तीन बार पानी देना पड़ता है।