सामान्य मेथी की उन्नत उत्पादन तकनीक
सामान्य मेथी का वानस्पतिक नाम ट्राइगोनेला फोइनमग्रेसियम एवं एक और वर्ग कस्तूरी मेथी का है जिसका वानस्पतिक नाम ट्राइगोनेला कार्निकुलाटा है। मेथी की खेती मुख्यत: सब्जियों, दानो (मसालों) एवं कुछ स्थानो पर चारो के लिये किया जाता है। मेथी के सूखे दानो का उपयोग मसाले के रूप मे, सब्जियो के छौकने व बघारने, अचारो मे एवं दवाइयो के निर्माण मे किया जाता है। इसकी भाजी अत्यंत गुणकारी है जिसकी तुलना काड लीवर आयल से की जाती है। इसके बीज में डायोस्जेनिंग नामक स्टेरायड के कारण फार्मास्यूटिकल उधोग में इसकी मांग रहती है। इसका उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में किया जाता है। इस लेख मे सामान्य मेथी की उन्नत उत्पादन तकनीक का वर्णन किया जा रहा है। जलवायु: मेथी शरदकालीन फसल है तथा इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है। इसकी वानस्पतिक वृद्धि के लिए लम्बे ठंडे मौसम, आर्द्र जलवायु तथा कम तापमान उपयुक्त रहता है। फूल बनते समय या दाने बनते समय वायु में अधिक नमी और बादल छाये रहने पर बीमारी तथा कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है। फसल पकने के समय ठण्डा एवं शुष्क मौसम उपज के लिये लाभप्रद होता है। मेथी अन्य फसलो की तुलना मे अधिक पाला सहनशील होता है। भूमि एवं भूमि की तैयारी : दोमट या बलुई दोमट मृदा, जिसमें कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में हो एवं उचित जल निकास क्षमता हो इसकी सफल खेती के लिये उत्तम मानी जाती है। खेत साफ स्वच्छ एवं भुरभुरा तैयार होना चाहिए अन्यथा अंकुरण प्रभावित होता है। खेत की अंतिम जुताई के समय क्लोरपाइरीफास 20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए, जिससे भूमिगत कीड़ों एवं दीमक से बचाव हो सके। जुताई के बाद पाटा अवश्य चलाना चाहिये ताकि नमी संरंक्षित रह सके। उन्नतशील किस्में : इसकी किस्मो मे लाम सेलेक्शन-1, गुजरात मेथी-2, आर.एम.टी.-1, राजेन्द्र क्रांति, हिसार सोनाली, कोयंबटूर-1 आदि प्रमुख उन्नतशील किस्में हैं। बीज दर एवं बीजोपचार : इसकी 20-25 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर लगता है। बीज को बोने के पूर्व फफूँदनाशी दवा (कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज) से उपचारित किया जावे। बीज का उपचार राइजोबियम मेलोलेटी कल्चर 5 ग्राम/किलो बीज के हिसाब से करने से भी लाभ मिलता है। बुवाई का समय एवं तरीका : मैदानी इलाको मे फसल की बुवाई के लिए मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक का समय एवं पर्वतीय क्षेत्रो मे मार्च-अप्रेल सर्वोत्तम रहता है। देरी से बुंवाई करने पर उपज कम प्राप्त होती है। अधिक उत्पादन के लिये इसकी बुंवाई पंकितयो मे 25 से.मी. कतार से कतार दूरी पर 10 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी के हिसाब से करते हैं। बीज की गहराई 5 से.मी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। खाद एवं उर्वरक : मृदा जांच के आधार पर खाद व उर्वरक का उपयोग करना लाभकारी रहता है। यदि किसी कारणवश मृदा जांच ना हो पाया हो तो निम्न मात्रा मे खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करना चाहिये। गोबर या कम्पोस्ट खाद (10-15 टन/हे.) खेत की तैयारी के समय देवें। चूंकि यह दलहनी फसल है इसलिये इसका जड़ नाइट्रोजन सिथरीकरण का कार्य करता है अत: फसल को कम नाइट्रोजन देने की आवश्यकता पड़ती है। रासायनिक खाद के रूप मे 20-25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 20-30 कि.ग्रा. पोटाश/हे. बीज बुंवाई के समय ही कतारों में दिया जाना चाहिये। यदि किसान उर्वरको की इस मात्रा को यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट एवं म्यूरेट आफ पोटाश के माध्यम से देना चाहता है तो 1 बोरी यूरिया, 5 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट एवं 1 बोरी म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है। सिंचाई एवं जल निकास : मेथी के उचित अंकुरण के लिये मृदा मे पर्याप्त नमी का होना बहुत जरूरी है। खेत मे नमी की कमी होने पर हल्की सिंचाई करना चाहिये। भूमि प्रकार के अनुसार 10-15 दिनों के अंतर से सिंचाई करें। खेत में अनावश्यक पानी के जमा होने से फसल पीला होकर मरने लगता है अत: अतिरिक्त पानी की निकासी का प्रबंध करना चाहिये। खरपतवार नियंत्रण : बोनी के 15 एवं 40 दिन बाद हाथ से निंदाई कर खेत खरपतवार रहित रखें। रासायनिक विधि में पेण्डीमेथिलिन 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व बुवाई के पहले खेत में डाल देना चाहिए। रोग एवं कीट नियंत्रण : जड़ गलन रोग के बचाव के लिए जैविक फफूँदनाशी ट्राइकोडर्मा से बीज उपचार एवं मृदा उपचार करना चाहिए। फसल-चक्र अपनाना चाहिए। भभूतिया या चूर्णिल आसिता रोग के लिए कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत एवं घुलनशील गंधक की 0.2 प्रतिशत मात्रा का छिडक़ाव करना चाहिए। माहो कीट का प्रकोप दिखाई देने पर 0.2 प्रतिशत डाइमेथोएट (रोगार) या इमिडाक्लोप्रिड 0.1 प्रतिशत घोल का छिडक़ाव करें एवं खेत में दीमक का प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरपायरीफास 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ खेत में उपयोग करे। कटाई एवं गहाई: मेथी की कटाई इसके किस्मो एवं उपयोग मे लाये जाने वाले भाग पर निर्भर करता है। सब्जियो के लिये पहली कटाई मेथी पत्ती की हरी अवस्था मे बंवाई के लगभग 4 सप्ताह बाद चालू हो जाती है। पौधे को भूमि सतह के पास से काटते है। सामान्यत: 4-5 कटाई नियमित अंतराल पर ली जाती है। दानो के लिये इसकी कटाई जब फसल पीली पडऩे लगे तथा अधिकांश पत्तियाँ ऊपरी पत्तियों को छोडक़र गिर जायें एवं फलियो का रंग पीला पड़ जाये तो फसल की कटाई करनी चाहिए क्योकि सही अवस्था मे कटाई ना करने से फलियो से दानो का झडऩा प्रारंभ हो जाता है। कटाई के बाद पौधो को बंडलो मे बांधकर 1 सप्ताह के लिये छाया मे सुखाया जाता है सूखाने के बाद बंडलो को पक्के फर्श या तिरपाल पर रखकर लकडिय़ो की सहायता से पीटा जाता है जिससे दाने फलियो से बाहर आ जाता है। इस काम के लिये थ्रेसर का उपयोग भी किया जा सकता है। दानो को साफ करने के बाद बोरियो मे भरकर नमी रहित हवादार कमरो मे भंडारित करना चाहिये। उपज : इसकी उपज भी किस्मो एवं उपयोग मे लाये जाने वाले भाग पर निर्भर करता है। यदि उन्नत किस्मो एवं सही समय पर उचित शस्य क्रियाओ को अपनाया जाये तो 50-70 क्विटल हरी पत्तियां सब्जी के लिये एवं 15-20 क्विटल दाने मसालो एवं अन्य उपयोगो के लिये प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाते है।