चिकित्सा- विज्ञान

चिकित्सा
संकीर्ण अर्थ में, रोगों से आक्रांत होने पर रोगों से मुक्त होने के लिये जो उपचार किया जाता है वह चिकित्सा (Therapy) कहलाता है। पर व्यापक अर्थ में वे सभी उपचार 'चिकित्सा' के अंतर्गत आ जाते हैं जिनसे स्वास्थ्य की रक्षा और रोगों का निवारण होता है।चिकित्सा, रोगनिवारण और रोगहरण की एक विधि एवं कला तथा वैद्यक के महत्व की एक शाखा है। इसके उद्देश्य स्वास्थ्यरक्षण, रोगनिवारण, रोगउन्मूलन, रोगों के उपद्रवों और दुष्परिणामों के निराकरण और यदि निराकरण न हो तो यथाशक्ति शमन है।

प्राचीन ग्रीक चिकित्सकों का कथन है ""चिकित्सक चिकित्सा करता है और प्रकृति रोगहरण करती है""। रोगों से बचने की रोगियों में शक्ति होती है, जिससे दवा न करने पर भी असंख्य रोगी नीरोग हो जाते है। चिकित्सा ऐसी होनी चाहिए कि वह रोगहरण की शक्तियों में कोई बाधा न डाले, वरन् उसमें सहयोग दे। इसके लिये चिकित्साकर्म में अत्यंत व्यग्रता न दिखानी चाहिए और न रोगियों को नैसर्गिक शक्ति के भरोसे ही छोड़ना, या उत्साहहीन चिकित्सा करनी, चाहिए।

स्वास्थ्य को बनाए रखना और रोग तथा महामारियों को उत्पन्न न होने देना रोग निवारक चिकित्सा (preventive therapy)के अंतर्गत आता है। रोग हो जाने पर उसके नाश के लिये की जानेवाली चिकित्सा को रोगहारक चिकित्सा (curative therapy) कहते हैं। जब रोगविज्ञान, विकृतिविज्ञान, द्रव्यगुण विज्ञान इत्यादि विषयों के सम्यक् ज्ञान पर चिकित्सा अधिष्ठित होती है तब उसे युक्तिमूलक चिकित्सा (rational therapy) कहते हैं। परंपरागत अनुभव चिकित्सा का आनुभाविक (empirical) चिकित्सा कहते हैं। चिकित्सा रोगहारक (radical), लाक्षणिक (nonspecific) हो सकती है।चिकित्सा विज्ञान फलसमन्वित ऐसा शास्त्र है, जिसमें ऐसे उपायों के उपयोगों का वर्णन है जो लोकस्वास्थ्य तथा वैयक्तिक स्वास्थ्य की दृष्टि से, शरीर संबंधी सभी अवस्थाओं में आवश्यक होता है, जैसे

(1) रोगोन्मूलक तथा निवारक,
(2) घटना नियंत्रक तथा सुधारक,
(3) अभावपूरक,
(4) विकारक तथा विकृत अंगों के निष्कासक,
(5) कुरूपता तथा असमर्थता के निवारक,
(6) क्षतांगों के प्रतिस्थापक एवं विकलांगों के पुनर्वासक और विभिन्न प्रकार की आंत्र यक्ष्मा तथा फुफ्फुस यक्ष्मा की चिकित्सा तथा अन्य नैदानिक कार्यों में उपयोगी,
(7) सुजनन, सुपोषण सुसंतान तथा परिवारनियोजन
चिकित्सा शिक्षण में भौतिकी, सांख्यिकी, रसायन, वनस्पति, प्राणि तथा सूक्ष्मजीव विज्ञान, मानवीय शरीररचना, कायिकी-विकृतिविज्ञान, प्रतिरक्षण विज्ञान, इत्यादि प्रत्यक्ष:, तथा अन्य सभी विज्ञान परोक्षत:, सहायक होते हैं।

मूलत: सिद्धांत पर आधारित चिकित्सा के तीन प्रकार हैं : यौक्तिक चिकित्सा (रेशनल थिरैपी), मनोदैहिक चिकित्सा (psychophysical therapy) तथा आनुभविक चिकित्सा (Empiric therapy)। यौक्तिक चिकित्सा में रोग के कारणों एवं रोगी के कायिक तथा मानसिक परिवर्तनों को समझकर, ज्ञात प्रभाव की ओषधियों अथवा साधनों का उपयोग किया जाता है। मनोदैहिक चिकित्सा में विशिष्ट मन:चिकित्सा और विश्वासमूलक चिकित्सा दोनों संमिलित हैं। प्रथम के विस्तारों में नाना प्रकार के मनोविश्लेषण वैविध्य है तथा दूसरे में प्लैसेबो (Placebo) सदृश निष्प्रभाव ओषधियाँ और झाड़-फूँक प्रभृति प्रयोग आते हैं। आनुभविक चिकित्सा में ज्ञात लाक्षणिक प्रभावों के बल पर ओषधियों का प्रयोग करते हैं, किन्तु शरीर में दवा किस प्रकार काम करती है, इसक पता नहीं होता। चिकित्सा शब्द के साथ विशेष साधनों के नाम लगाने से विशेष ओषधीय प्रयोगों का बोध होता है, जैसे जलचिकित्सा, विद्युच्चिकित्सा, डायथर्मी (Diathermy) चिकित्सा आदि।

21 जून 2016 को अन्तराष्ट्रीय योग दिवस योगभारती के साथ मनाएगी किसान हैल्प

21 जून 2016 को अन्तराष्ट्रीय योग दिवस योगभारती के साथ मनाएगी किसान हैल्प

माननीय प्रधान मंत्री द्वारा घोषित अंतर्राष्टीय योग दिवस प्रत्येक वर्ष 21जून को मनाया जाता है I इस वर्ष किसन्हेल्प योग दिवस योग भारती के साथ मनाएगी I यह फैसला कार्यकरणी समिति में लिया गया I योग-भारती संस्था का उद्देश्य प्राचीन भारतीय योग व नेचुरोपैथी को आधुनिक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन-शिक्षण, एवम् गहन शोध हेतु विश्वस्तरीय शिक्षण स्थापित करना है तथा योग को विज्ञान, चिकित्सा- विज्ञान, कला, एवम् खेलों  के रूप में विकसित करना है साथ ही संस्था का उद्देश्य योग-साधना, ध्यान, संयम, सदाचार, शाकाहार, संस्कृति एवम् संस्कार