मुर्गीपालन में संतुलित आहार की भूमिका
जैसा कि सर्वविदित है कि वर्तमान युग में मुर्गीपालन का मुख्य उद्देश्य प्रोटीनयुक्त आहार प्राप्त करना है। मुर्गी का अण्डा एवं मांस सस्ता प्रोटीन आहार तो है ही, इनके उत्पादन में कम पूंजी व कम समय को आवश्यकता होती है। मानव के लिए बेकार अनाज, हरा चारा, विटामिन्स एवं पोषक तत्वों मुर्गी को खिलाकर एक उत्तम, सुपाच्य पौष्टिक पदार्थ मानव के लिए मुर्गी के अण्डे के रूप में उपलब्ध हो जाता है इसलिए अनेक वैज्ञानिक मुर्गी को अद्भूत प्रवर्तक यंत्र की संज्ञा देते हैं। मानव हेतु तैयार किए पक्षियों को पौष्टिक एवं संतुलित आहार ही मिलना चाहिए। मुर्गी पालन व्यवसाय में 60 प्रतिशत व्यय तो केवल मुर्गी आहार पर होता है। अतः यह कहने में अतिश्यक्ति नहीं होगी कि मुर्गीपालन में संतुलित आहार अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है। अतः मुर्गीपालन हेतु अति आवश्यकता है कि उसे आहार विज्ञान के प्रत्येक चरण का एवं मुर्गी खाने के पक्षियों की आवश्यकताओं का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए एवं उसे व्यवहार में लाने का समुचित ध्यान रखना चाहिए। इस लेख में आहार के पोषक तत्वों एवं उनके कार्यो, संतुलित आहार तैयार की विधि, आहार व्यवस्था का उल्लेख किया गया है, ताकि मुर्गीपालन लाभान्वित हो सकें।
आहार के तत्व एवं उनके कार्य
मुर्गी पालन व्यवसाय में मुर्गीपालकों को आहार के तत्व एवं उनके कार्य की जानकारी होना निवान्त आवश्यक है ताकि वे स्वयं संतुलित आहार तैयार कर सकें। जिसकी जानकारी नीचे दी गई है –
प्रोटीन – प्रोटीन आहार का प्रमुख एवं महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, क्योंकि यह शारीरिक विकास, प्रजजन और टिशु की मरम्मत के लिए उपयोगी होता है। प्रोटीन, जल, एल्कोहल एवं नमक के घोल में घुलने वाला घुलनशील पदार्थ है, जिसका निर्माण कार्बन, हाईड्रोजन, ऑक्सीजन व नाईट्रोजन से होता है। चूंजे का 15 प्रतिशत, मुर्गी का 25 प्रतिशत और अण्डे का 12 प्रतिशत भाग में प्रोटीन होता है।
कार्बोहाइड्रेट – यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रमुख तत्व है। इसका निर्माण कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन से होता है। मुर्गी आहार में कार्बोहाइड्रेट का बहुत बड़ा भाग होता है, क्योंकि सभी पौधों एवं अनाजो के सुखे भाग में लगभग ¾ कार्बोहाईड्रेट होता है, जो मुर्गियों को ऊर्जा प्रदान करता है।
वसा – वसा का निर्माण भी कार्बोहाइड्रेट की भाति कार्बन, हाइड्रोजन नाइट्रोजन के संयोग से होता है। परन्तु इनके अनुपात में भिन्नता पाई जाती है। वसा शरीर में ऊर्जा एवं ऊष्मा प्रदान करती है। मुर्गी के मांस का 17 प्रतिशत भाग वसा का होता है और अण्डे का लगभग 10 प्रतिशत भाग वसा का होता है। यह भी सत्य है कि शरीर में पचने के बाद प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट भी किसी सीमा तक वसा में परिवर्तित हो जाते हैं।
विटामिन – यद्पि पशु-पक्षियों के आहार मे इनकी आवश्यकता अधिक नहां होती है, फिर भी ये आहार के अनिवार्य अंग है, क्योंकि शारीरिक विकास, वृद्धि एवं प्रजनन हेतु आहार में इन का समावेश नित्यन्त आवश्यक है।
मुर्गियों के लिए आवश्यक पोषक तत्व, उन के कार्य एवं उपलब्धि स्रोत –
सारणी 1
आहार तत्व
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प्रमुख कार्य
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उपलब्धि स्रोत
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प्रोटीन
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शारीरिक विकास, टिशु-मरम्मत, ऊष्मा, ऊर्जा, अंडा निर्माण व उत्पादन
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मीट स्क्रैप, फिश मील, सोयाबीन मील, मेज मील आदि
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कार्बोहाइड्रेट
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ऊष्मा, ऊर्जा व वसा उत्पादन
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अनाज व अनेक उप उत्पाद
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वसा
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ऊष्मा एवं ऊर्जा
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अनाज व उनके उप उत्पाद
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खनिज पदार्थ
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अंडा उत्पादन, हडिडयों की बनावट व शारीरिक प्रक्रियाओं में सहायक
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मीट स्कैप, फिश मील, बोन मील, चना व नमक
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विटामिन्स
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शारीरिक विकास, पाचन क्रिया स्वस्थ स्नायु, रिकेट से बचाव, प्रजनन
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हरी घास, एल्फा-एल्फा, मछली का तेल, गेहूं का चोकर, दूब घास, फिश ऑयल, सोयाबीन आदि
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पानी
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शरीर में विभिन्न द्रव्यों का प्रमुख स्रोत, तापमान, नियंत्रक, पाचन क्रियाओं में सहायक
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पानी, हरी घास
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मुर्गियों के लिए विभिन्न प्रकार के संतुलित आहार तैयार किए जाते हैं, जिनमें कार्बोहाइड्रेट आहार 70-80 प्रतिशत भाग होता है। खनिज आहार की मात्रा 10 प्रतिशत और विटामिन्स की मात्रा 5 प्रतिशत होती है, वसा आहार 2-5 प्रतिशत तक मिलाए जाते है, लेकिन मुर्गी को स्वस्थ निरोग रखने के लिए व्यवसाय मे आर्थिक लाभ प्राप्ति के लिए आव्शयक है कि मुर्गी के लिए संतुलित, किन्तु सस्ता आहार मिश्रण तैयार किया जाना चाहिए, यहां प्रश्न उठता है कि संतुलित आहार क्या हैं? और कैसे बनाएं?
मुर्गी की आयु के अनुसार संतुलित आहार
स्टार्टर राशन- यह राशन 1 दिन से 8 सप्ताह तक की आयु के चूजों के लिए बनाया गया है।
ग्रोवर्स राशन- यह राशन 8 से 20 सप्ताह तक की मुर्गियों के लिए बनाया जाता है।
लेअर्स राशन- यह राशन 20 सप्ताह से अधिक आयु की मुर्गियों के लिए बनाया जाता है।
संतुलित आहार कैसे बनाएं?
मुर्गियों के लिए संतुलित आहार निम्न दो प्रकार से बनाया जा सकता है –
आहार वजन की इकाई में आहार सामग्री का प्रतिशत प्रति 1000 किलो कैलोरीज में आहार सामग्री की आवश्यकता यहां जो सारणीयां दी जा रही है उनमें प्रथम विधि को अपनाया गया है। सारणीयों में दो आहारों का नमूने दिए गए हैं। यही अथवा इनमें उपलब्ध वस्तुओं द्वारा इसी हिसाब को ध्यान में रखते हुए सम्भावित आहार भी तैयार किया जा सकता है।
स्टार्टर राशन 1 दिन से 8 सप्ताह के चूजों का आहार
वस्तु
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आहार – 1
|
आहार – 2
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चावल पालिश प्रतिशत
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25.0
|
20.0
|
खल मूंगफली
|
20.0
|
20.0
|
पीली मक्का
|
20.0
|
15.0
|
ज्वार
|
10.0
|
20.0
|
गेहूं की चापड
|
15.0
|
15.0
|
मछली चूरा
|
0.5
|
6.5
|
लाइम स्टोन
|
1.0
|
1.0
|
हड्डी चूरा
|
1.0
|
1.0
|
प्रिमिक्स
|
1.0
|
1.0
|
नमक
|
0.5
|
0.5
|
योग
|
100 ग्राम
|
100 ग्राम
|
वस्तु
|
आहार – 1
|
आहार – 2
|
चावल पालिश प्रतिशत
|
22.0
|
30.0
|
खल मूंगफली
|
20.5
|
12.5
|
पीली मक्का
|
10.0
|
10.0
|
ज्वार
|
20.0
|
20.0
|
गेहूं का चापड
|
10.0
|
20.0
|
मछली चूरा
|
7.5
|
7.5
|
लाइम स्टोन
|
3.0
|
3.0
|
हड्डी चूरा
|
1.0
|
1.0
|
प्रिमिक्स
|
1.0
|
1.0
|
लपटी
|
4.5
|
4.5
|
नमक
|
0.5
|
0.5
|
योग
|
100 ग्राम
|
100 ग्राम
|
वस्तु
|
आहार – 1
|
आहार – 2
|
चावल पालिश प्रतिशत
|
22.0
|
24.0
|
खल मूंगफली
|
10.0
|
10.0
|
पीली मक्का
|
10.0
|
20.0
|
ज्वार
|
27.0
|
12.0
|
गेहूं का चापड
|
15.0
|
16.0
|
मछली चूरा
|
4.0
|
5.0
|
लाइम स्टोन
|
2.0
|
1.0
|
हड्डी चूरा
|
2.0
|
1.0
|
प्रिमिक्स
|
1.0
|
1.0
|
लपटी
|
5.0
|
5.0
|
नमक
|
1.0
|
1.0
|
योग
|
100 ग्राम
|
100 ग्राम
|
आहार व्यवस्था
मुर्गी की आयु, उत्पादन क्षमता व स्थानीय जलवायु के अनुसार संतुलित आहार का ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात मुर्गी पालक को यह भी सोचना है कि स्थानीय उपलब्ध आहार सामग्री का चयन कर उसकी व्यवस्था किन-किन बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कुछ आवश्यकता बातें निम्नवत है –
- अधिक समय के लिए आहार बनाकर नहीं रखना चाहिए।
- आहार सामग्री के मिक्चर से मिलाना चाहिए, ताकि कम मात्रा वाली सामग्री (विटामिन, एन्टीबायोटिक्स) का सम निर्माण हो पाए।
- आहार निर्माण कक्ष में चूहे, जंगली पक्षी व कीड़े नहीं होने चाहिए।
- आहार निर्माण कक्ष में सीलन नहीं होनी चाहिए।
मुर्गी संख्या के अनुसार आहार तोलकर देना चाहिए।
- यदि गर्मी अधिक हो तो मेश कुछ गीला करके देना चाहिए।
- आहार निर्माण कक्ष में समय-समय कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए।
- आहार उपयोगी की जांच निरन्तर होनी चाहिए।
डॉ रामपाल सिंह
कृषि वैज्ञानिक