कृषि को लाभदायक कैंसे बनाया जाये

प्रस्तावना :-

कृषि को उत्तम कैंसे बनाया जाये यह जानने से पहले हमें यह जानना होगा के कृषि की समस्याए क्या हैं | कृषि भारत में तबसे चली आ रही है जबसे सभ्यता का विकास हुआ है जैसे की आर्य सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता और प्राचीन समय की एक कहावत है की “उत्तम खेती मध्यम बान करत चाकरी कुकर निदान ” इसका अर्थ है के, भारत में सबसे बेहतर खेती को माना गया है, फिर व्यापार को और अंत में कहा गया है नौकरी तो कुत्ते के सामान है | मगर आज यह क्या हो गया है के लोग खेती को छोड़ कर नौकरी की ओर जा रहे हैं, जिस काम को प्राचीन भारतीय कुत्ते के सामान मानते थे आज उसे करना गर्व का विषय हो गया है और खेती से सब ऐसे दूर भागते हैं जैंसे अछूत हो , आज किसान खेती की जमीन बेच कर बच्चों को पड़ा कर नौकरी करवा कर शहर में जाकर रहना पसंद कर रहा है , गाँव समाप्त होते जा रहे हैं और ये तथाकथित विकास का भूत पूरी भारतीय सभ्यता को खाता जा रहा है |

भारत में खेती का इतिहास :-

वैसे तो हम सभी जानते हैं के भारत हजारों सालों से सोने की चिड़िया रहा है अपनी खेती और व्यापर की बदौलत मगर अगर हम सिर्फ १००-१५० साल पहले की भी अगर बात करें तो प्रो धर्मपाल की किताबों में अंग्रेजो के जो दस्तावेज मिलते हैं उनसे पता चलता है के भारत की खेती कितनी उन्नत थी १८३५ तक सारी दुनिया का ३०% व्यापार भारत से होता था , किसान पूरी तरह आत्मनिर्भर था और पूर्ण रूप से जैविक खेती होती थी | दूध , दही , फल इत्यादि तो मुफ्त में गाँव में बाँट दिए जाते थे | लेकिन आज भारत का किसान आत्महत्या कर रहा है या खेती छोड़ने पर मजबूर है इसके क्या कारण हैं यह जानना होगा तभी भारत में खेती का विकास हो सकता है |

प्राचीन भारत में खेती किस तरह से होती थी :-

भारत के किसान जैविक बीज डाला करते थे , क्योंकि कोई नकली बीज जिनसे आज कैंसर होता है तब नहीं थे न पूंजीवादी सोच थी |
जहरीली खाद की जगह गाय का गोबर और पत्तियां आदि प्रयोग में लायी जाती थीं जिससे खेत में और अनाज में विष नहीं मिलता था |
जहरीले कीटनाशकों की जगह गाय के गौमूत्र में नीम की पत्तियों को मिलकर प्रयोग होता था जिससे की नीम के औषधिक गुण भी फसल में मिल जाते थे एवं मित्र कीट नहीं मरते थे |
किसान ट्रेक्टर की जगह बैलों से एवं हल से खेती करता था जिससे उसका डीजल व् पेट्रोल का खर्चा बचता था इससे उसकी फसल की आमदनी का ज्यादा पैसा किसान तक पहुचता था |
किसान की फसल का बचा हुआ हिस्सा गाय, बैल आदि जानवर खाया करते थे तथा का दूध , दही, मक्खन इत्यादी किसान को मिलता था |

आज की खेती के नुकसान :-

आज किसान खेती में ट्रेक्टर आदि का प्रयोग करता है जिससे उसकी आमदनी का मोटा हिस्सा पेट्रोल,डीजल एवं किराये के ट्रेक्टर या इसे खरीदने में जाता है , तथा ट्रेक्टर से जुताई करने पर मित्र कीट जिनसे केंचुए सांप इत्यादि भी मारे जाते हैं जिससे फसल को नुकसान होता है |
आज मोनसेंटो कम्पनी की जहरीली खाद डालने से फसल में तथा गाँव के नदी नालो में यहाँ तक के जानवरों तथा इंसानों के शरीर तक में जहर पहुच रहा है , इससे हजारों तरह की बीमारियां बड रही हैं |
आज जहरीले कीटनाशक प्रयोग में लाये जा रहे हैं जिनसे मित्र कीट भी मारे जाते हैं खेत में , तथा इनसे जमीन बंजर होती जा रही है और हर इंसान के पेट में जहर भरा रहा है |
आज गाय बचाने की जगह काटी जा रही है जिसके ऊपर भारत की पूरी कृषि व्यवस्था निर्भर है |
लाखों किसान पंजाब ,हरयाणा , विदर्भ में आत्महत्या कर रहे हैं |
भटिंडा से जैसलमेर एक कैंसर एक्सप्रेस(तुलसी) चलती है क्योंकि वहां के अधिकतर किसानो को जहरीली खाद डालने से कैंसर हो गया है तथा वो इलाज कराने राजस्थान जाते हैं |
केरल के कासरगौड़ इलाके में सारे लोगो को कैंसर हो गया जहरीले कीटनाशक प्रयोग करने से |
आज विदेशी कंपनियां और बिल्डर्स किसानो की जमीनों पर कब्ज़ा कर रही हैं |
किसान की कुल आमदनी का ६०-७० प्रतिशत पैसा इन ट्रेक्टर के पेट्रोल, डीजल एवं खाद और कीटनाशक खरीदने में जाता है |
आज बीज भी प्रयोगशाला में बनाये जाते हैं जैंसे बीटी बैगन या टर्मिनेटेड सीड जो एक तो जहरीले हैं और साथ ही साथ दोबारा नहीं उग सकते उन्हें हमें विदेशी कंपनी से खरीदना ही होगा हर बार जब जरुरत हो |
आज मलेशिया से मूँग की दाल आती है , अमेरिका से सेब इत्यादि कई जगहों से केले, पमोलिव तेल आदि आते हैं जो इतने सस्ते हैं के हमारा किसान भूखा मर जाता है क्योंकि उसकी सब्जियां नहीं बिकती यह सब डब्लूटीओ अग्रीमेंट (गेट करार) के कारण हुआ |
किसानो की जमीने भूमि अधिग्रहण कानून के तहत जबरन छीन कर अमीर पूंजीपतियों को व् विदेशी कंपनियों को दी जा रही है इससे देश पर भूखे मरने का संकट आने का खतरा पैदा हो गया है |

खेती को कैंसे उपयोगी बनाया जाये एवं उद्योगों से जोड़ा जाये :-

शुन्य तकनीकी वस्तुएँ जैसे की टमाटर की चटनी (टोमेटो केचप), चिप्स (आलू के ) इन सब को विदेशों से मंगाने की जगह भारत के किसानो से बनवाकर इनका स्वदेशी विकल्प तैयार करना चाहिए क्योंकि किसान टमाटर बेचेगा तो १०-१५ के बहुत सारे बेचने पड़ेगे पर उतने ही टमाटर का सोस (केचप) बनाकर बेचा जाये तो १०० रुपये किलो बिकता है, यही हालत और कीमत का अंतर आलू बेचने और चिप्स बेचने में है, तो वैल्यू एडिशन करके बेचना चाहिए |
गेहू का आटा पेक करके डायरेक्ट बेचना चाहिए जिससे की विदेशी अन्नापुरना या पिल्सबरी आटा बेचने वाली कंपनियां किसानो का हक न छीन सकें |
अमूल (आनंद-गुजरात) जैंसे मॉडल पर दूध की डेयरियाँ बनानी चाहिए जिससे दूध, दही, छाछ, लस्सी ,मक्कखन, आइसक्रीम , श्रीखंड इत्यादि बेचे जा सकें |
लिज्जत पापड़ जैंसे पापड़ या कुछ उर चीज जैसे गजक, गुड-पट्टी आदि को बनाकर बेचा या एक्सपोर्ट किया जा सकता है |
बांस की डलिया, सोफे, खिलौने, मोबाइल स्टैंड आदि बना कर बेचा जाये |
झाड़ू बनाने के उद्योग लगाये जाएँ |
मटका, मिटटी कूल फ्रिज जैसे मिटटी के सामान को बनाने वालों को संगठित करके टूरिस्ट को बेचा जाये |
एक वेबसाइट बनायीं जाये जिसपर हमारे गाँव के लोगो की बनायीं गयी चीज़ों के फोटोज व् वीडियोस हों उन्हें एक्सपोर्ट भी किया जा सके |
जैसे विदेशी कंपनियों के शौपिंग मौल होते हैं वैसे ही ये सभी गाँव वाले जो भी वस्तुएँ उत्पादित करते हैं उन्हें शहर में एक स्वदेशी मौल बनाकर बेचा जाये और उनका भी एक ब्रांड बना दिया जाये |
ऍफ़.एम्.सी.जी. वस्तुएँ जैसे मंजन , साबुन ,शैम्पू इत्यादि गाँव में बनवानी चाहिए तथा उसे प्रदेश भर में बेचना चाहिए ( एवं इनकी क्वालिटी की जाँच सरकार द्वारा होनी चाहिए )|
कुछ जगहों पर औषधि युक्त खेती करवानी चाहिए तथा उसकी आयुर्वेदिक दवाइयां बनाकर आयुर्वेदिक मार्किट तैयार करना चाहिए दुनिया भर के लिए जैसे अयूर, डाबर , पतंजलि आदि को ही ये चीजे बेचीं जा सकती हैं जिनका औषधियां बनाने का बड़ा कार्य है |

उपसंहार :-

बिल्डर्स , कॉर्पोरेट और विदेशी पूंजीपतियों के हाथों में जमीने न जाएँ इसका ख्याल रखना चाहिए सरकार को, वरना एक दिन हमें इनसे खाना खरीदना होगा जो ये करोडो में बेचेंगे तथा गरीब कभी खाना नहीं खा पाएंगे और अगर अर्जुनसेन गुप्ता जी की पार्लियामेंट की रिपोर्ट की बात करें तो ८४ करोड़ लोग भारत में गरीब है जो २० रुपये प्रति दिन पर जीते हैं ऐसे में अगर अमीर पूंजीवादी सोच वाले लोगो का खेती पर कब्ज़ा हो गया तो देश के और मानवता के लिए बहुत हानिकारक होगा |
अगर हम एक सही मॉडल और किसानो के हित को ध्यान में रखकर कुछ कर पायें तो हमारी १२१ करोड़ की जनसँख्या साडी दुनिया में भारत का दबदबा बना सकती है जरुरत है गरीबों , आदिवासियों तथा किसानो ,बेरोजगारों के बारे में सोचकर स्वदेशी मॉडल तैयार किया जाये |

शुभम वर्मा