मत्स्य रोग, लक्षण एवं उनका निदान

मत्स्य रोग

सैपरोलगनियोसिस
लक्षण :- 
शरीर पर रूई के गोल की भांति सफेदी लिए भूरे रंग के गुच्छे उग जाते हैं।
उपचार :- 3 प्रतिशत साधारण नमक घोल या कॉपर सल्फेट के 1:2000 सान्द्रता वाले घोल में 1:1000 पोटेशियम के घोल में 1-5 मिनट तक डुबाना छोटे तालाबों को एक ग्राम मैलाकाइट ग्रीन को 5-10 मी० पानी की दर प्रभावकारी है।
 

बैंकियोमाइकोसिस
लक्षण :-
 गलफड़ों का सड़ना, दम घुटने के कारण रोगग्रस्त मछली ऊपरी सतह पर हवा पीने का प्रयत्न करती है। बार-बार मुंह खोलती और बंद करती है।
उपचार :- प्रदूषण की रोकथाम, मीठे पानी से तालाब में पानी के स्तर को बढ़ाकर या 50-100 कि०ग्रा०/हे० चूने का प्रयोग या 3-5 प्रतिशत नमक के घोल में स्नान या 0.5 मीटर गहराई वाले तालाबों में 8 कि०ग्रा०/हे० की दर से कॉपर सल्फेट का प्रयोग करना।
 

फिश तथा टेलरोग
लक्षण :- आरम्भिक अवस्था में पंखों के किनारों पर सफेदी आना, बाद में पंखों तथा पूंछ का सड़ना।
उपचार :- पानी की स्वच्छता फोलिक एसिड को भोजन के साथ मिलाकर इमेक्विल दवा 10 मि०ली० प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर रोगग्रस्त मछली को 24 घंटे के लिए घोल में (2-3 बार)  
एक्रिप्लेविन 1 प्रतिशत को एक हजार ली० पानी में 100 मि०ली० की दर से मिलाकर मछली को घोल में 30 मिनट तक रखना चाहिए।
 

अल्सर (घाव)
लक्षण :-
 सिर, शरीर तथा पूंछ पर घावों का पाया जाना।
उपचार :- 5 मि०ग्रा०/ली० की दर से तालाब में पोटाश का प्रयोग, चूना 600 कि०ग्रा०/हे०मी० (3 बार सात-सात दिनों के अन्तराल में), सीफेक्स 1 लीटर पानी में घोल बनाकर तालाब में डाले,
 

ड्राप्सी (जलोदर)
लक्षण :-
 आन्तरिक अंगो तथा उदर में पानी का जमाव
उपचार :- मछलियों को स्वच्छ जल व भोजन की उचित व्यवस्था, चूना 100 कि०ग्रा०/हे० की दर से 15 दिन के उपरान्त (2-3 बार)
 

प्रोटोजोन रोग "कोस्टिएसिस"
लक्षण :- 
शरीर एवं गलफड़ों पर छोटे-छोटे धब्बेदार विकार
उपचार :- 50 पी०पी०एम० फोर्मीलिन के घोल में 10 मिनट या 1:500 ग्लेशियल एसिटिक एसिड के घोल में 10 मिनट
 

कतला का नेत्र रोग
लक्षण :- 
नेत्रों में कॉरनिया का लाल होना प्रथम लक्षण, अन्त में आंखों का गिर जाना, गलफड़ों का फीका रंग इत्यादि
उपचार :- पोटाश 2-3 पी०पी०एम०, टेरामाइसिन को भोजन 70-80 मि०ग्रा० प्रतिकिलो मछली के भार के (10 दिनों तक), स्टेप्टोमाईसिन 25 मि०ग्रा० प्रति कि०ग्रा० वजन के अनुसार इन्जेक्शन का प्रयोग
 

इकथियोपथिरिऑसिस (खुजली का सफेददाग)
लक्षण :- 
अधिक श्लेष्मा का स्त्राव, शरीर पर छोटे-छोटे अनेक सफेद दाने दिखाई देना 
उपचार :- 7-10 दिनों तक हर दिन, 200 पी०पी०एम० फारगीलन के घोल का प्रयोग स्नान घंटे, 7 दिनों से अधिक दिनों तक 2 प्रतिशत साधारण घोल का प्रयोग,
 

ट्राइकोडिनिओसिस तथा शाइफिडिऑसिस
लक्षण :- 
श्वसन में कठिनाई, बेचैन होकर तालाब के किनारे शरीर को रगड़ना, त्वचा तथा गलफड़ों पर अत्याधिक श्लेष स्त्राव, शरीर के ऊपर
उपचार :- 2-3 प्रतिशत साधारण नमक के घोल में (5-10 मिनट तक), 10 पी०पी०एम० कापर सल्फेट घोल का प्रयोग, 20-25 पी०पी०एम० फार्मोलिन का प्रयोग
 

मिक्सोस्पोरोडिऑसिस
लक्षण :- 
त्वचा, मोनपक्ष, गलफड़ा और अपरकुलम पर सरसों के दाने 
उपचार :- 0.1 पी०पी०एम० फार्मोलिन में, 50 पी०पी०एम० फार्मोलिन में 1-2 बराबर सफेद कोष्ट मिनट डुबोए, तालाब में 15-25 पी०पी०एम० फार्मानिल हर दूसरे दिन, रोग समाप्त होने तक उपयोग करें, अधिक रोगी मछली को मार देना चाहिए तथा मछली को दूसरे तालाब में स्थानान्तरित कर देना चाहिए।
 

कोसटिओसिस 
लक्षण :- 
अत्याधिक श्लेषा, स्त्राव, श्वसन में कठिनाई और उत्तेजना
उपचार :- 2-3 प्रतिशत साधारण नमक 50 पी०पी०एम० फार्मोलिन के घोल में 5-10 मिनट तक या 1:500 ग्लेशियस एसिटिक अम्ल के घोल में स्नान देना (10 मिनट तक)
 

डेक्टायलोगारोलोसिस तथा गायरडैक्टायलोसिक (ट्रेमैटोड्स)
लक्षण :- 
प्रकोप गलफड़ों तथा त्वचा पर होता है तथा शरीर में काले रंग के कोष्ट
उपचार :- 500 पी०पी०एम० पोटाश ओ (ज्ञक्दवद) के घोल में 5 मिनट बारी-बारी से 1:2000, एसिटिक अम्ल तथा सोडियम क्लोराइड 2 प्रतिशत के घोल में स्नान देना।
 

डिपलोस्टोमियेसिस या ब्लैक स्पाट रोग
लक्षण :- 
शरीर पर काले धब्बे
उपचार :- परजीवी के जीवन चक्र को तोड़ना चाहिए। घोंघों या पक्षियों से रोक
 

लिगुलेसिस (फीताकृमि)
लक्षण :- कृमियों के जमाव के कारण उदर फूल जाता है।
उपचार :- परजीवी के जीवन चक्र को तोड़ना चाहिए इसके लिए जीवन चक्र से जुड़े जीवों घोंघे या पक्षियों का तालाब में प्रवेश वर्जित, 10 मिनट तक 1:500 फाइमलीन घोल में डुबोना, 1-3 प्रतिशत नमक के घोल का प्रयोग।
 

आरगुलेसिस
लक्षण :- कमजोर विकृत रूप, शरीर पर लाल छोटे-छोटे ध्ब्बे इत्यादि
उपचार :- 24 घण्टों तक तालाब का पानी निष्कासित करने के पश्चात 0.1-0.2 ग्रा०/लीटर की दर से चूने का छिड़काव गौमोक्सिन पखवाड़े में दो से तीन बार प्रयोग करना उत्तम है। 
35 एम०एल० साइपरमेथिन दवा 100 लीटर पानी में घोलकर 1 हे० की दर से तालाब में 5-5 दिन के अन्तर में तीन बार प्रयोग करे
 

लरनिएसिस (एंकर वर्म रोग)  मत्स्य 
लक्षण :- 
मछलियों में रक्तवाहिनता, कमजोरी तथा शरीर पर धब्बे
उपचार :- हल्का रोग संक्रमण होने से 1 पी०पी०एम० गैमेक्सीन का प्रयोग या तालाब में ब्रोमोस 50 को 0.12 पी०पी०एम० की दर से उपयोग
 

अन्य बीमारियां ई०यू०एस० (ऐपिजुऑटिव) अल्सरेटिव सिन्ड्रोम
लक्षण :- 
प्रारम्भिक अवस्था में लाल दागमछली के शरीर पर पाये जाते हैं जो धीरे-धीरे गहरे होकर सड़ने लगते हैं। मछलियों के पेट सिर तथा पूंछ पर भी अल्सर पाए जाते हैं। अन्त में मछली की मृत्यु हो जाती है।
उपचार :- 600 कि०ग्रा० चूना प्रति हे० प्रभावकारी उपचार। सीफेक्स 1 लीटर प्रति हेक्टेयर भी प्रभावकारी है।

स्रोत  http://fisheries.up.nic.in/