करेले एक लाभकारी उत्पादन

सब्जी फसलों में बेल वाली सब्जियों का सबसे बड़ा परिवार है। बेल वाली सब्जियों में करेले का महत्वपूर्ण स्थान है। करेला केवल सब्जी मात्र के लिए नहीं बल्कि आजकल इसका औषधियों में  भी काफी प्रयोग है। इसलिए इसका संकर बीज उत्पादन करना और भी लाभदायक हो गया है।

मध्यम एवं बड़े वर्ग के किसान खासकर युवा एवं महिला किसान सब्जियों का बीज उत्पादन/संकर बीज उत्पादन एक व्यवसाय के रूप में अपनाकर उद्यमी बन सकते हैं और कृषि आय में वृद्वि कर सकते है जिससे संकर बीजों की स्थानीय उपल्बधित्ता में सुधार, कम मूल्य पर किसानों को संकर बीजों की उपलब्धि है सकती है।  

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने सब्जियों की अनेक उन्नत एवं संकर प्रजातियां का विमोचन एवं उनके बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी का विकास किया  है। 

संकर किस्मः-

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा करेले की दो संकर प्रजातियां विकसित हुई हैं, पूसा संकर-1 तथा पूसा संकर-2(चित्र 1)। 

संकर किस्म पूसा संकर - 1 के पैतृकों के लक्षण:

मादा जनक:- पौधे लम्बे, गांठों के बीच की औसत दूरी 10.5 सेमी. पत्तियां मध्यम अण्डाकार, गहरे कटावयुक्त मुलायम हरे रंग की होती है। फूल एकलिंगी पत्तियों के कक्ष में अकेले-अकेले होते हैं। नर फूल के डंठल लम्बे-पतले तथा मादा फूल की डंठल छोटे व मोटे होते हैं। इस किस्म के फले गहरे हरे रंग व आकर्षक तथा धारियां लगातार होती है। फलों की लम्बाई मध्यम तथा फलों का औसत भार 115 ग्राम होता है।

नर जनक:- बेल छोटी, झाडीदार, गांठों के बीच की दूरी औसतन 9.5 सेमी. पत्तियां मध्यम अंडाकार गहरे कटावयुक्त मुलायम गहरे हरे रंग की होती है। फूल एकलिंगी पत्तियों के कक्ष में अकेले-अकेले होते हैं। नर फूल के डंठल लम्बे-पतले जबकि मादा फूल की डंठल मोटे व छोटे होते हैं। इस किस्म के फल अच्छे हरे व आकर्षक तथा धारियां मुलायम बीच-बीच में कटी होती है। फल की सतह उभरी होती है। फल मध्यम लम्बाई वाले तथा फलों का औसत भार 115 ग्राम है। 

संकर बीज उत्पादन

जलवायुः- करेला में बीज उत्पादन गर्मी एवं वर्षा दोनों मौसम में किया जा सकता है। फसल में जमाव के लिए 22-25 डिग्री सेल्सियस और अच्छी पैदावार, पुष्पन एवं फल के लिए 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है। संकर बीज उत्पादन हेतु गर्मी का मौसम अधिक उपयुक्त है।

खेत का चुनावः- संकर बीज उत्पादन करने के लिए खेत उपजाऊ तथा मिट्टी बलुई दोमट या दोमट होनी चाहिए। खेत सममतल तथा जल निकास की व्यवस्था के साथ-साथ सिंचाई जल की समुचित व्यवस्था होना आवश्यक है।

खेत की तैयारीः- खेत की जुताई कर के उसे सममतल कर लेना चाहिए। बीज की बुवाई के लिए आवश्यकतानुसार दूरी पर नालियां बना लें खेत में जल निकास का अच्छा प्रबंध होना अति आवश्यक है।

खाद एवं उर्वरकः- 25 से 30 टन सड़ी हुई गोबर की या कम्पोस्ट खाद खेत में बुवाई से 25-30 दिन पहले तथा बुवाई से पूर्व नालियों में 50 किग्रा. डी.ए.पी., 50 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाशव 6 किलो साडा वीर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से जमीन में मिलाए। बाकी नत्रजन 30 किग्रा. यूरिया बुवाई के 20-25 दिन बाद व इतनी ही मात्रा 50-55 दिन बाद पुष्पन व फलन की अवस्था में डाले।

बीज स्रेातः- संकर बीज उत्पादन के लिए पैतृक जनकों का बीज संबंधित कृषि अनुसंधान संस्थान या कृषि विश्वविद्यालय से प्राप्त कर सकते हैं।

पृथक्करण दूरीः- संकर बीज फसल का खेत अन्य करेले की किस्मों के खेत या जंगली करेले के खेत या पौधों से न्यूनतम 1000 मीटर दूरी पर होनी चाहिए। अगर नर व मादा जनकों की बुवाई अलग-अलग खण्डों में की हैं तो नर व मादा खण्डों के बीच की न्यूनतम दूरी 5 मीटर आवश्यक है। खेत में 1/5 भाग में नर पैतृक तथा 4/5 भाग में मादा पैतृक की बुवाई अलग-अलग खण्डों में करना उचित माना गया है।

बीज दर एवं उपचारः- बीज की मात्रा पैतृक जनकों की बुवाई के अनुपात पर निर्भर करती है। मादा पैतृक की 1.75 किग्रा. तथा नर पैतृक की 0.5 किग्रा. मात्रा प्रति एकड़ पर्याप्त रहती है। बुवाई से पूर्व बीजों (नर व मादा) को बाविस्टीन (2 ग्राम प्रति किग्रा.) के घोल में 18 से 24 घंटे के लिए भिगोए ।

बुवाई का समयः- 15 फरवरी से 30 फरवरी (ग्रीष्म ऋतु) तथा 15 जुलाई से 30 जुलाई (वर्षा ऋतु)

बुवाई की विधि एवं दिशाः- बुवाई 2 प्रकार से की जाती है।

(1) सीधे बीज द्वारा

(2) पौध रोपण द्वारा

करेला बीज उत्पदन के क्षेत्रों में बुवाई सीधे बीजों द्वारा की जाती है। परन्तु उत्तर भारत में सीधी बुवाई मार्च के पहले पखवाड़े में ही संभव है। लेकिन तब बुवाई करने से संकर बीज की मात्रा कम प्राप्त होती है। अतः ग्रीष्म ऋतु में पौधों को पाॅलीथीन या पौध ट्रे में संरक्षित आकृतियों में उगाकर फरवरी के प्रथम सप्ताह में रोपाई करे।  संकर बीज उत्पादन के लिए बुवाई/रोपाई क्यारियों की नालियों में करनी चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी 100 मी. और क्यारियों की चैड़ाई 1 मीटर होनी चाहिए। 

बेलों को सहारा देने के लिए जंग अवरोधी तार या रस्सियों का उपयोग करना चाहिए। बुवाई के एक महीने बाद बेलों को तारों या रस्सियों से बांस पर बांधकर सहारा देकर चढ़ाना चाहिए।  इससे पौधों की कीट तथा बीमारियों से बचाव होता है और संकर फल  भी अच्छे से विकसित हो पाते हैं।

सिंचाई तथा कृषक क्रियाएंः सिंचाई खुले खेत में आवष्यकतानुसार दी जा सकती है यद्यपि ड्रिप सिंचाई का प्रयोग अधिक प्रभावी है, तथा यह अनावष्यक पानी का संरक्षण करता है। सिंचाई 15-20 दिन के अंतराल में दे अन्यथा फल एवं बीज की उपज पर प्रतिकूल असर पड़ता है। खरपतवारों की रोकथाम के लिए 3-4 बार निराई पर्याप्त रहती है। पुष्पण आरम्भ होने पर खेत में नत्रजन उर्वरक मिलाकर पौधों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए।

फसल सुरक्षाः- चूर्णित आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) तथा मृदुल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू) के लिए क्रमशः बेविस्टीन 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर तथा डायथेन एम-45 या रीडोमिल (2.0 ग्राम प्रति लीटर) पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। वायरस की बीमारियों के लिए कोन्फीडोर (2.5-3.8 मिली./लीटर) पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

संकर बीज उत्पादन विधिः-

करेला उभयलिंगी पौधा होने के कारण इसमें संकर बीज उत्पादन हाथ द्वारा परागण करना प्रचलित है। इस विधि में मादा पैतृक पौधों में से नर फूलों को प्रतिदिन खिलने से पहले तोड़ दिया जाता है तथा मादा फूलों को खिलने से एक दिन पूर्व सायं के समय बटर पेपर बैग (7.5 ग 12 सेमी.) में बंद कर देते हैं। हवा के आदान प्रदान हेतु लिफाफे में 5-6 छिद्र अवश्य करने चाहिए। नर पैतृक पौधों में नर फूलों  को भी नर्मी ना सोखने वाली रूई से अच्छी प्रकार ढ़क देते हैं । अगले दिन नर खण्डों से नर फूलों को तोड़कर इकट्ठा कर लें तथा मादा पैतृक में मादा फूलों का लिफाफा हटाकर हाथ द्वारा परागकोष को रगड़कर या परागकणों को एकत्र करके ब्रश द्वारा परागण करें । परागण के तुरन्त बाद बटर पेपर बैग से मादा फूल को दोबारा ढक दें । मादा फूलों से बटर पेपर बैग 8-10 दिन बाद हटाये तथा एक पौधे पर इस प्रकार 10-12 फल तैयार करें अधिक संख्या में फल बनने से फल पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते ।

अवांछनीय पौधों का निकालना तथा निरीक्षण अवस्थाः- संकर बीज उत्पादन के खेत का चार अवस्था में निरीक्षण करना चाहिए।

पुष्पन से पूर्व जिसमें मादा उवं नर पैतृकों की बढ़वार, पत्ते की आकृति, रंग एवं शीर्ष भागों पर रोये के आधार पर पौधों को निकालना चाहिए।

पुष्पीय लक्षणों एवं फलों के आधार पर अवांछनीय पौधों की पहचान कर निकालना चाहिए।

फलों की तुड़ाई एवं पकने पर फल के विकास, रंग, आकार एवं पौधों में रोग आदि की स्थिती को ध्यान में रखते हुए अवांछनीय पौधों एवं फलों को हटा देना चाहिए।

फलों का पकनातुड़ाई एवं बीज निकालनाः- परागण के 28-30 दिन बाद फल पकने लगते हैं । पकने पर फल चमकीले नारंगी रंग के हो जाते हैं (चित्र 3) । फलों की तुड़ाई तभी करें जब पूरा फल नारंगी रंग को हो जाये। कम पके फल में बीज अल्प विकसित रहते हैं। अधिक पकने पर फल फट जाते हैं तथा बीज का नुकसान होता है। पके फलो को दो भागों में फाडकर हाथ द्वारा बीजों को निकालकर रेते या साफ मिट्टी से मसलकर बीजों की चिपचिपी झिल्ली को हटा देना चाहिए। बीजों को साफ बहते हुए पानी से धुलाई करके तेज धूप में सुखाना चाहिए।

बीज उपज एवं 1000 बीजों का भारः- प्रति पौध 12-14 फल मिलते है जिनमें से 15-25 बीज प्रति फल मिल जाते है। दिल्ली परिस्थितियों में 150-200 किग्रा. बीज प्रति एकड़ उपज होती है।

सुखबीर सिंह, संदीप कुमार लाल

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