बैंगन की व्यावसायिक खेती

भारत में उगाई जाने वाली सब्जियों में बैगन एक प्रमुख सब्जी है।इस क्षेत्र से बैंगन पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान आदि जैसे सुदूर क्षेत्रों को बिक्री हेतु भेजा जाता है। जनपद बरेली में ही बैंगन की खेती के अंतर्गत लगभग 2300 हेक्टेयर क्षेत्र है। कुछ वर्षों पहले बैगन को केवल गरीबों की सब्जी माना जाता था। लेकिन अब बैंगन के विभिन्न व्यंजन बऩने लगे हैं व इसके विभिन्न रंगों के फलों वाली प्रजातियां उपलब्ध होने के कारण, बाजार में बैंगन की मांग बहुत बढ़ गई है। बैगन हमारे मुख्य भोजन के रूप में होटलों रेस्टोरेंटो, ढाबों व विभिन्न शादी-ब्याह, पार्टी आदि में बैगन का भरता, भरमा बैंगन व सांभर का मुख्य घटक होने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने के काम आता है। बैगन एक ऐसी सब्जी फसल है जिसको वर्षभर उगाया जा सकता है । जो भी किसान पहली बार सब्जी की खेती करना चाह रहे हैं, उनके लिए बैंगन की खेती करना सबसे आसान है। इसकी खेती इसलिए भी अधिक लाभप्रद है क्योंकि इसको सभी तरह की मिट्टियों में आसानी से उगा सकते हैं । साथ ही इसका उत्पादन प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक होने के कारण एवं उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों के प्रयोग से इसकी पेढ़ी (द्वितीय) लेने के कारण 2 वर्षों तक सफलतापूर्वक उत्पादन लिया जा सकता है। इस प्रकार बैंगन की खेती अब एक नकदी फसल के रूप में तेजी से उभर रही है। बैगन वैसे तो सभी प्रकार की भूमियों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है लेकिन अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मृदा इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। खेती के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करें, जहां वर्षा का पानी एकत्र न होता हो ।

खेत व नर्सरी की तैयारी

बैगन के खेत की तैयारी के लिए दो या तीन जुताई खेत की भली प्रकार करके, खेत को चौरस कर देना चाहिए। एक हेक्टर क्षेत्र में बैंगन उगाने के लिए लगभग 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। जबकि संकर किस्मों के 250 से 300 ग्राम बीज ही पर्याप्त रहते हैं। बुबाई से पूर्व बीज का शोधन कार्बेंडाजिम नामक रसायन के 2 ग्राम, प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से करना चाहिए। उसके बाद स्ट्राइप्टो-साइक्लिन नामक जीवाणु नाशक के 0.50 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर बीज को 5 मिनट तक शोधित करना चाहिए। इसके उपरांत किसी अखबार के ऊपर बीज को फैला कर, एक-दो घंटे के लिए छांव में सुखा ले तदुपरांत बीज की बुवाई करनी चाहिए ।
बैगन के अच्छे उत्पादन के लिए स्वस्थ पौध का उत्पादन करना अति आवश्यक है। इसके लिए 90 सेंटीमीटर चौड़ी वह 5 से 6 मीटर लंबी अथवा आवश्यकतानुसार लंबी पौधशाला की क्यारी तैयार करें । पौधशाला की तैयारी 2 भाग दोमट मिट्टी + एक भाग बालू + एक भाग वर्मी कंपोस्ट मिलाकर करना चाहिए। क्यारियों में बीज को लाइनों में बुबाई करें। लगभग 30 से 35 दिन में पौध तैयार हो जाती है। बुवाई के 15 दिन बाद पौधशाला में पानी रोक दें। इससे पौधे पानी की तलाश में अपनी जड़ें गहरे में ले जाएंगे व पौधो का तना मजबूत होगा। जब पौध तीन पत्ती की हो इस अवस्था पर एक स्प्रे इमीडाक्लोप्रिड एक टंकी में 5 मिलीलीटर दवा का स्प्रे करें। इसी प्रकार जब पौध 20 - 25 दिन की हो तो भी तीन-चार दिन के लिए पानी लगाना बंद कर दें। जब पौधे मुरझाने लगे तब हल्का पानी दें। इससे पौधे के तने मजबूत होंगे और ऐसी पौध खेत में लगाने के बाद मरती कम है। इस प्रक्रिया को पौध का कठौरीकरण कहते हैं।
खेत की तैयारी के समय संकर किस्मों के लिए 300 से 400 कुंटल गोबर की खाद, 70 किलो डीएपी 50 किलो पोटाश व 40 किलो यूरिया बेसल डोज के रूप में मिट्टी में मिला दे । 50 किलो जिप्सम का प्रयोग भी बहुत लाभदायक होता है। तराई क्षेत्रों में जिंक की कमी भी देखी गई है इसके लिए लगभग 10 किलोग्राम खेत की तैयारी करते समय मिट्टी में मिला देना चाहिए।
रोपण हेतु खेत समतल करके 5 गुने 10 मीटर की क्यारियां तैयार करें। या पूरब-पश्चिम दिशा में जमीन से 6 सेंटीमीटर ऊंची उठी हुई, लगभग 60 सेंटीमीटर चौड़ी उथली मेढ़े तैयार करें और मेढ़ के दोनों साइडों में 45 से 60 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए पौधों को रोपित करें।ध्यान रखें जो पौधे मजबूत हो वह एक स्थान पर एक ही लगाएं और कमजोर पौधों को एक साथ दो पौधे रोपित करें । रोपित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जड़े सीधी रहे। जिससे पौधा और अधिक गहराई में अपनी जड़ें भेज कर जल एवं पोषक तत्वों का अवशोषण करते रहे।

रोपाई के तत्काल बाद पौधों की जड़ों में चोईया (हल्का पानी) दें। इस प्रकार रोपाई के 15 दिन तक पौधों की देखभाल रखते रहे। जब फसल को पानी की आवश्यकता हो इसी प्रकार पौधे की जड़ों में पानी देते रहे।

रोपाई के एक हफ्ते बाद पौधों के ऊपर एक स्प्रे 2 ग्राम कार्बेंडाजिम + मैन्कोज़ेब एवं साथ में 0. 5 ग्राम स्ट्रिपोसाइक्लिन के घोल का छिड़काव अवश्य कर दें। साथ ही साथ पौधे की जड़ों में ड्रेंचिंग भी कर दें। इससे पौधे पूर्णतया स्वस्थ होकर तेजी से बढ़वार पकड़ेंगे। बैंगन की फसल में रोपाई के लगभग 30 से 35 दिन बाद फसल की नियमित निगरानी करते रहिए । इस अवधि में पौधों पर फूल आने शुरू हो जाते हैं । जब पूरे खेत में लगभग 20 से 25% फूल आ जाएं, तब एक स्प्रे सूक्ष्म पोषक तत्व साथ में कोई मल्टीविटामिन का अवश्य दे दें। जिससे पौधों के अंदर मजबूती आ जाएगी और फल तेजी से तैयार होने लगेंगे एवं फूल आने की प्रक्रिया लगातार जारी रहेगी। यह प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। यही किसान का लाभ और हानि निर्धारित करती है। अक्सर ऐसा देखा गया है की फल तोड़ने की चाहत में किसान फसल की सेवा करना भूल जाते हैं और अगली फसल के फूल (फ्लश) देर में आने से फलों की दूसरी तीसरी तुड़ाई काफी दिन बाद व कम मात्रा में मिलती है।
मेढ़ो पर लगी हुई फसल के फल सामान्यतः जमीन को नहीं छूते । फलो को जमीन पर छूने नहीं देना चाहिए । जमीन छूने से इनमें बीमारी का खतरा बना रहता है। अगर पौधे जमीन की तरफ झुक रहे हो तो उनको सहारा अवश्य दे दें। रोपाई के 40 से 45 दिन बाद मेढ़ो के मध्य में 50 किग्रा डीएपी व 25 किग्रा पोटाश प्रति एकड़ की दर से अवश्य लगाएँ तथा गुड़ाई करने के उपरांत मिट्टी में मिला दें। फसल को समय-समय पर पानी की आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहें। मेढ़ो पर लगी हुई फसल में सिंचाई के पानी की 35 से 50 प्रतिशत तक बचत होती है व खरपतवार भी उगते हैं ।

बैंगन की फसल के सफल उत्पादन के लिए आवश्यक है कि वैज्ञानिक विधि से एकीकृत कीट-बीमारी प्रबंधन किया जाए। इसके लिए 2 से 3 वर्ष का फसल चक्र, गर्मियों में गहरी जुताई, भूमि का सौर्यीकरण आदि परंपरागत खेती की क्रियाएं सम्मिलित हैं। बैंगन की फसल में सबसे ज्यादा नुकसान पहुचाने वाले कीट कलगी बेधक, फल बेधक, पत्ता छेदक व माइट आदि है। उक्त कीटों के नियंत्रण के लिए प्रारंभिक उपचार पौधशाला में इमिडाक्लोप्रिड का स्प्रे है जिससे रोपाई के 35 दिन तक कीटों के प्रति सहनशीलता बनी रहती है ।
कलगी बेधक कीट की पहचान खेत में पौधो की सबसे ऊपर की शीर्ष कलिका नीचे की तरफ मुड़ी हुई दिखाई देती हैं।बाद में धीरे-धीरे सूखने लगती हैं। इसके लिए किसी भी प्रकार की दवा का छिड़काव ना करें। केवल कैची की सहायता से जहां से कलगी मुड़ी हुई है, उससे 1 इंच नीचे सभी प्रभावित कलगियों को काटकर व उन्हें एकत्र करके जमीन में दफना दें। माइट कीट भी बैंगन की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है। यह बहुत छोटे आकार का होता है। आंख से दिखाई नहीं देता। पत्ती की निचली सतह पर रखस चूसता है। इसकी पहचान पत्तों के ऊपर पर बहुत छोटे हल्के पीले धब्बे बनते हैं। जो धीरे-धीरे करके पूरी पत्ती मैं फैल जाते हैं। जिससे पत्ती पीली होने लगती है व पौधे मुरझाने लगते हैं। प्रभावित पौधे छोटे रह जाते हैं। इस कीट की पहचान करके ठंडे मौसम में सल्फर 5 से 8 किलो धूल प्रति हेक्टेयर पत्तों के ऊपर भुरकावव करें। अन्य मौसम में डायको फोल नामक रसायन को फल तोड़ने के उपरांत, 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर स्प्रे मशीन से इस प्रकार छिड़काव करें कि, पत्ती की निचली सतह पर स्प्रे का घोल अवश्य पहुंच जाएं।

बैगन का फल छेदक कीट भी फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाता है। फल छेदक कीट का नियंत्रण एकीकृत विधियों से बहुत प्रभावी पाया गया है । इसके लिए प्रति हेक्टेयर 10 से 12 फेरोमेन ट्रैप जब पौधों में फूल से फल बनने लगे , खेत में लगा देना चाहिए और एक ट्रैप में जब 5 से अधिक व्यस्क मौथ( तितलियां) फंसने लगे तब, ट्राईको ग्रामा कार्ड के 80000 अंडे प्रति हेक्टेयर खेत में विधि अनुसार लगाएं। इसी प्रकार इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर एनपीवी वायरस का स्प्रे, 250 ग्राम नील पाउडर मिलाकर सायं के समय करना चाहिए । उपरोक्त के अतिरिक्त 1 किलो बीटी बैक्टीरिया का पाउडर भी प्रति हेक्टेयर कीट की अवस्था (सूंडी) को ध्यान में रखते हुए प्रयोग करने से इस कीट पर प्रभावी नियंत्रण हो जाता है। फल छेदक कीट से प्रभावित जितने भी फल हो उनको जमीन के नीचे दफन करते रहना चाहिए। जिससे कीट की विभिन्न अवस्थाएं वहां पर पुनः तैयार होकर नुकसान ना पहुंचाएं।
इसी प्रकार रोग प्रकोप के अंतर्गत, बैंगन में फॉमोप्सिस ब्लाइट का सबसे ज्यादा असर देखा गया है। जब हवा में नमी अधिक हो और दिन में धूप रात में ठंडा को तब यह रोग तेजी से फैलता है। ऐसे फल जो जमीन को छूते हैं, उनमें इस रोग का प्रकोप अधिक देखा गया है। निदान हेतु संकर व रोगप्रतिरोधी किस्मों को लगाएं। फसल को पूर्व-पश्चिम दिशा में बनी मेढ़ो पर लगाएं। ऐसा करने से मेढ़ों के बीच से तेजी से हवाएं गुजरती हैं और फलों पर फफूंदी का असर कम होता है। प्रभावित फलों को प्रारंभिक अवस्था में ही तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए । नियंत्रण हेतु खेत में कार्बेंडाजिम + मैनकोज़ेब के मिश्रित रसायन का 2 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
मेढ़ो पर लगी हुई फसल में उकठा नामक बीमारी का प्रकोप कम देखा गया है। फिर भी यदि कहीं पर उकठा के लक्षण जैसे पौधों का पीला पड़ना, धीरे-धीरे करके पत्तियों का मुरझाना विशेषकर ऊपर की पत्तियां पीली पढ़कर नीचे की तरफ झुकना और पूरा पेड़ सूखना जैसे लक्षण दिखें तो कार्बेंडाजिम का 1 ग्राम व इसके साथ स्ट्रेप्टोसाइकिलिन का आधा ग्राम के मिश्रण को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर, पौधों की जड़ों में ड्रेंचिंग करें।

इसी प्रकार मेढ़ों पर लगी फसल में निमेटोड का असर भी कम देखा गया है। जहां निमेटोड ज्यादा होगा वहां उकठा रोग भी ज्यादा होता है। निमेटोड से प्रभावित खेत में खेत की तैयारी करते समय 5 से 6 कुंटल नीम की खली का प्रयोग करना चाहिए। कभी-कभी पौधों में ब्लाइट का असर भी देखा जाता है इसके उपचार के लिए उकठा बीमारी हेतु बताई गई दवा के मिश्रण का स्प्रे करें।
रोग वृद्धि होने पर हेक्साकोनाजोल नामक रसायन का 1.5 मिलीलीटर 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। कभी-कभी यह रोग बहुत व्यापक रूप से फैलता है इसके लिए उच्च रसायन जैसे डाई फैनकोनाजोल का 1.5 मिलीलीटर + थायोसायनेट मिथाइल 1 मिलीलीटर/लीटर के घोल का स्प्रे करना चाहिए । स्प्रे के दो दिन बाद कोई भी मल्टीविटामिन व मल्टीमिनरल का स्प्रे अवश्य कर दें। जिससे बीमारी द्वारा आई हुई पौधों में कमजोरी दूर हो जाए और पौधे फिर से पुनर्जीवित होकर पुष्पन और फलन क्रिया प्रारंभ कर दें। इस प्रकार किसान भाइयों यदि उक्त सुझायी गई वैज्ञानिक व व्यवहारिक विधियों का आप अनुपालन करेंगे तो आप पाएंगे कि कम खर्च में अधिक लाभ की स्थिति में है। बैंगन की फसल से आप पेड़ी भी प्राप्त कर सकते हैं। पेड़ी के लिए नवंबर के प्रथम- द्वितीय सप्ताह में पौधों की 2-3 टहनियों को छोड़ शेष टहनियों की छंटाई कर दें। जब इन टहनियों में नए कल्ले आ जाएं तो उन्हीं पेड़ों की शेष बची टहनियों की भी जमीन से 1-2 फीट ऊंचाई से छंटाई कर दें। इस प्रकार पेड़ी के लिये तैयार पौधे मरेंगे भी कम व कुछ ही दिनो में पुनर्जीवित होकर सामान्य फसल की तरह पैदावार देते रहेंगे। पेड़ी की फसल में भी खाद उर्वरक, खेत की अंतिम तैयारी करते समय प्रयोग की गई गई मात्रा की आधी मात्रा, फसल की कूड़ों में प्रयोग करें।

एक हेक्टर बैंगन से लगभग 300 से 400 कुंटल सामान्य किस्मों में 400 से 600 कुंटल में पैदावार प्राप्त होती है। यदि फसल की सही देखभाल की जाए तो यह पैदावार और अधिक बढ़ सकती है। इस प्रकार एक हेक्टेयर बैंगन करने पर किसान की कुल लागत 40 से 45 हजार आती है। जबकि उसका शुद्ध मुनाफा डेढ़ लाख से 2 लाख तक हो सकता है। फसल तुड़ाई के पश्चात एक बात अवश्य करें। कीट, बीमारी या चोट ग्रस्त फलों को छांटकर अलग कर दें। स्वस्थ फलों को ही बिक्री के लिए मंडी या बाजार भेजें । यदि आप वैज्ञानिक विधि से व एकीकृत विधियों का प्रयोग करते हुए अपनी फसल का उत्पादन कर रहे हैं और उसमें जहरीले रसायनों का कम से कम प्रयोग कर रहे हैं तो ऐसी स्थिति में अपने उत्पाद की बिक्री के लिए आसपास के शहर में सब्जी की नेट मार्केटिंग या डोर टू डोर बिक्री करने वाले व्यवसायियों से संपर्क करें अथवा सरकारी संस्थानों के हॉस्टलों में, शहर के होटलों, माल, रेस्टोरेंटो व शादी विवाह जैसे आयोजन करने वाले ठेकेदारों से संपर्क कर अपने उत्पाद की सीधे बिक्री करें। इससे आपको अधिक और अच्छे दाम मिलेंगे एवं आपकी बिक्री की व्यवस्था भी सुनिश्चित होगी।
किसान साथियों आज सब्जी उगाना बहुत आसान है लेकिन उसका अच्छे दाम पर बिक्री करना काफी कठिन होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में ऊपर बताए गए सुझावों का पूर्णता पालन करें।

रंजीत सिंह विषय वस्तु विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केंद्र बरेली उत्तर प्रदेश
डॉ आर के सिंह, अध्यक्ष कृषि विज्ञान केंद्र बरेली
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