केला के पर्ण चित्ती रोग(लीफ स्पॉट) का प्रबन्धन कैसे करें ?

केला विश्व के 130 से ज्यादा देशों में उगाया जाता है I भारत, चीन, फिलीपिंस, ब्राजील, इंडोनेशिया , एक्वाडोर ग्वाटामाला, अंगोला बुरुंडी इत्यादि विश्व के प्रमुख केला उत्पादक देश है I विश्व में उत्पादकता के दृष्टिकोण से भारत चौथे स्थान पर है ,इसकी उत्पादकता 34.9 टन /हेक्टेयर है I उत्पादन के दृष्टिकोण से भारत प्रथम स्थान पर है I हमारे देश में तमिलनाडु, आँध्रप्रदेश ,महाराष्ट्र ,गुजरात, कर्नाटक एवं बिहार प्रमुख केला उत्पादक प्रदेश है I भारत में केला की खेती 0.88 मिलीयन हेक्टेयर में होती है , जिससे 30.8 मिलीयन टन उत्पादन प्राप्त होता है I
बिहार में केला की खेती 31.07 हजार हेक्टेयर में होती है , जिससे कुल 1396.39 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है I बिहार में केला की उत्पादकता 44.94 टन/हेक्टेयर है I देश में, बिहार केला के क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से नवे स्थान पर, उत्पादन में सातवें स्थान पर एवं उत्पादकता के मामले में छठवें स्थान पर है I
बिहार में केला उत्पादन की असीम संभावनायें हैं, क्योकि यहाँ की जलवायु ( 13ºसें लेकर 38ºसें के मध्य तापमान एवं 75-85 प्रतिशत की सापेक्षिक आर्द्रता) केला की खेती के लिए उपयुक्त है I बिहार में केला वैशाली क्षेत्र(मुजफ्फरपुर , समस्तीपुर,वैशाली ,हाजीपुर)एवं कोशी क्षेत्र(खगडिया ,पूर्णिया, कटिहार ,भागलपुर ) में उगाया जाता है I वैशाली क्षेत्र में मुख्यतः लम्बी प्रजाति के केलों की खेती होती है, यहाँ का किसान परम्परागत ढंग से बहुवर्षीय खेती (10-30 वर्ष )करता है, इसके विपरीत कोशी क्षेत्र का किसान बौनी प्रजाति के केला की खेती वैज्ञानिक ढंग से करता है I एक जगह पर केवल 3 केला की फसल लेता है I लगाने के लिए रोपण सामग्री सकर ही प्रयुक्त होती है I जिसकी वजह से बिहार की उत्पादकता कम है I यदि हमारे यह का किसान उत्तक संबर्धन द्वारा तैयार पौधों से केला की खेती करना प्रारंभ कर दें तो निश्तित रूप से केला की खेती में उत्पादकता बढ़ेगी I
केला की खेती को तरह तरह की फफूंद जनित बीमारियां प्रभावित करती है,इसमें पर्ण चित्ती रोग एक प्रमुख रोग है। इस रोग को प्रबंधित करने के लिए आवश्यक है की निम्नलिखित उपाय किए जाए...
1. गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियों को हटा दें और इसे जलाकर नष्ट कर दें या मिट्टी में दबा दें।
2. केला के मुख्य तने के पास निकाल रहे सकर को लगातार काट कर हटाते रहे, उसके बगल में निकल रहे सकर को तब तक नहीं छोड़ना चाहिए जब मुख्य पौधे में फूल निकल आए। 3.खेत को हमेशा खरपतवार मुक्त रखना चाहिए।
4.खेत में अच्छे जल निकास की सुविधा होनी चाहिए।
5.केला में हमेशा संस्तुति मात्रा में ही खाद एवम् उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन वाले उर्वरकों के अधिक प्रयोग से बचना चाहिए।
6.यदि रोग की उग्रता अधिक हो तो पेट्रोलियम आधारित खनिज तेल (1%) + प्रोपोकोनाज़ोल (0.1%) या कार्बेन्डाजिम + मेनकोजेब संयोजन (0.1%) या कार्बेन्डाजिम (0.1%) या ट्रिफ्लोक्सिस्ट्रोबिन + टेबुकोनाज़ोल (1.4 ग्रा। / लीटर) 25-30 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करने से पर्ण चित्ती ( लीफ स्पॉट रोग ) रोग को प्रभावी ढंग से प्रबन्धन किया जा सकता है एवम् 15-20 प्रतिशत उपज में भी वृद्धि भी किया जा सकता है।
उपरोक्त उपायअपनाने से रोग की उग्रता/ गंभीरता को कम किया जा सकता है।

डॉ एसके सिंह
प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी)एवं सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा , समस्तीपुर, बिहार

organic farming: 
जैविक खेती: