गर्मी में करें नींबू की उत्तम खेती

जलवायु एवं मिट्टी

नींबू जाति के फलों के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है. इन फलों के लिए 6 - 6.5 पी.एच. वाली मिट्टी सबसे अच्छी रहती है. लवणीय या क्षारीय मिट्टियाँ तथा एसे क्षेत्र जहाँ पानी ठहर जाता हो, नींबू जाति के फलों के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते. यह अवश्यक है की बाग़ लगाने से पहले मृदा जाँच अवश्य कराये .

मौसम्बी और चकोतरा

उष्ण कटिबंधीय और सुखी जलवायु में अच्छी उपज देते हैं. मौसम्बी को यदि वर्षा और अधिक नमी वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है तो उसके फल भली प्रकार नहीं पकते, जिसके परिणाम स्वरूप वे फीके रह जाते हैं और उनका छिलका भी हरा ही बना रहता है.

संतरे के लिए उष्ण कटिबंधीय और नमीयुक्त गर्मी का मौसम उपयुक्त है इसके साथ-साथ सर्दी बहुत कम होनी चाहिए और वर्षा काफ़ी होनी चाहिए. बहुत अधिक ठंडा और अधिक गर्म मौसम इसकी फ़सल के लिए उपयुक्त नहीं है. नींबू के लिए हलकी नमी से युक्त और तेज़ हवा से रहित परिस्थितियाँ सबसे उपयुक्त है. यह पाले के लिए भी संवेदनशील है.

प्रवर्धन और मूलवृन्त

मूलवृन्त उगने के लिए फल से निकले हुए ताजे बीज अगस्त-सितम्बर के महीने में बोने चाहिए. यदि बुआई में देरी हो जाये तो ठण्ड के कारण अंकुरण अच्छा नहीं होता है. इन फलों के प्रवर्धन के लिए 'टी' कलिकायन का तरीक़ा सबसे अच्छा है. इसके लिए सितम्बर-अक्तूबर के महीने अति उत्तम पाए गए हैं. हालाँकि स्थान विशेष के लिए तरह-तरह के मुल्वृन्तों का मानकीकरण हुआ है. परन्तु उत्तर भारत में 'जंभीरी' और 'कर्णा खट्टा' उत्तम पाए गए हैं. यदि मिट्टी हल्की लवणीय हो तो संतरे के लिए किल्योपेट्रा क़िस्म का मूलवृन्त अधिक उपयुक्त रहता है.

बाग़ की स्थापना

बाग़ लगाने के लिए उचित दूरी पर 3 x 3 x 3 फीट आकर के गड्ढे खोद लिए जाते हैं. साधारणतः मौसम्बी संतरे के पौधे 5 x 4 मी. चकोतरे के 7 या 8 मी. एवं नींबू के 4-5 मी. दूरी पर लगाये जाते हैं. इन गड्ढों को मिट्टी के साथ 20-25 कि०ग्रा० गोबर की खाद मिलकर भर दिया जाता है. दीमक के प्रकोप से बचने हेतु प्रत्येक गड्ढे में 200 ग्राम क्लोरवीर की धुल डालें.

जो पौधे कलिकायन द्वारा तैयार किये जाते हैं वे लगभग एक साल में रोपाई योग्य हो जाते हैं, पौधे लगाने के लिए बरसात का मौसम अति उत्तम है. परन्तु मार्च एवं अप्रेल में भी पौधे सफलतापूर्वक लगाये जा सकते हैं.

पौधे लगाने से पहले प्रत्येक गड्ढे की मिट्टी में 20 कि०ग्रा० या एक टोकरी गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद और एक किलो सुपर फ़ॉस्फ़ेट मिलाना लें अच्छा रहता है. रोपाई के बाद नीचे लिखे अनुसार उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए.

पूरी तरह विकसित और फल देने वाले वृक्षों के लिए प्रति पेड़ 60 किग्रा गोबर की खाद, 2.5 किग्रा. अमोनियम सल्फ़ेट, 2.5 किग्रा. सुपर फास्फेट और 1.5 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश का प्रयोग करना चाहिए. उर्वरकों की उपरोक्त मात्र का उपयोग दो बराबर खुराकों में करें. पहली खुराक जनवरी से पहले दें, और दूसरी फल आने के बाद. दोनों बार उर्वरक देने के बाद सिंचाई करें. गोबर की खाद नवम्बर - दिसम्बर के महीनों में डालनी चाहिए.

सिंचाई

रोपाई के तुंरत बाद बाग़ की सिंचाई करें. छोटे पौधों 5 साल तक के पौधों की सिंचाई उनके आस-पास घेरा बनाकर की जा सकती है. जब कि पुराने पौधों के आस-पास पानी भरकर या नालियाँ बनाकर सिंचाई की जाती है. गर्मियों के मौसम में हर 10 या 15 दिन के अंतर पर और सर्दियों के मौसम में प्रति 4 सप्ताह बाद सिंचाई करनी चाहिए. बरसात के मौसम में सिंचाई की यदाकदा ही आवश्यकता होती है. इस मौसम में बरसात का अतिरिक्त पानी निकालने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए. सिंचाई करते समय ध्यान रखें कि सिंचाई का पानी पेड़ के मुख्य तने के संपर्क में न आए. इसके लिए मुख्य तने के आसपास मिट्टी की एक छोटी मंद बनायीं जा सकती है. ड्रिप सिचाई विधि सबसे अच्छी रहती है. इसके द्वारा पानी की बचत उर्वरको का उपयोग होता है, साथ बीमीरा कम आती है.

निराई - गुड़ाई

नींबू जाति के फलों वाले बागों को कभी भी गहरा नहीं जोता जान चाहिए. क्योंकि इन पेड़ों की जड़ें ज़मीन की उपरी सतह में रहती हैं और गहरी जुताई करने से उनके नष्ट होने का खतरा रहता है. बागों में खरपतवारों की रोकथाम की जाए तो ज्यादा अच्छा है. प्रति हेक्टेअर 7.5-10 किलो तक सिमेंजिन या 2.5 लीटर ग्रेमेक्सोन को 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़कने से चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार तथा वार्षिक घासें नष्ट की जा सकती हैं.

पौधों की छंटाई

पौधों का अच्छा विकास हो इसके लिए उनकी छंटाई क्यारियों की अवस्था से ही शुरू हो जाती है. पौधे की लगभग सभी उपरी और बाहर निकलने वाली शाखाओं को काट दिया जाना चाहिए और इस प्रकार लगभग 45 से०मी० लम्बाई का साफ़ और सीधा तना ही रहने दिया जाना चाहिए. समय पर सभी रोग-ग्रस्त, टूटी हुई अनेकों शाखाओं वाली और सुखी लकडी वाली टहनियों को निकलते रहना चाहिए. जिस जगह पर कलि जोड़ी है उसके ठीक नीचे से निकलने वाली प्ररोहों को उनकी आरंभिक अवस्था में ही हवा देना चाहिए. जिन स्थानों पर शाखाएँ काटी गयी हों, वहां पर बोरोदोक्स नामक रसायन की लेई बना कर लगा दें. यह लेई एक कि०ग्रा० कॉपर सल्फ़ेट, 1.5 कि०ग्रा० बुझा चुना, और 1.5 लीटर पानी को मिलकर तैयार की जा सकती है.