टिड्डी दल के सम्बंध में जारी चेतावनी एवं सलाह

टिड्डियों की गणना कृषि जगत के सर्वाधिक संहारक कीटों में होती है। ये सर्वाहारी होते हैं तथा छोटे, मध्यम या बड़े झुंडों में रहकर सभी प्रकार की हरी वनस्पतियों को खाकर नष्ट कर देते हैं। ये ओर्थोप्टेरा गण के कीट हैं जिनमें भारत में प्रचलित टिड्डियों के नाम प्रवासी टिड्डी, ट्री टिड्डी, बम्बई टिड्डी, मरुस्थली टिड्डी आदि हैं। इनमें मरुस्थली टिड्डी सर्वाधिक हानिकारक है। इस वर्ष ये टिड्डी दल ईरान से पाकिस्तान होते हुये गुजरात तथा राजस्थान के रास्ते भारत में प्रवेश करके क्षति पहुंचा रहे हैं। वर्तमान में ये उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर आगरा की तरफ बढ़ रहे हैं। इसके पश्चात इसके बरेली मण्डल की तरफ बढ्ने की सम्भावना है जिसके लिये विभिन्न स्तरों पर सतर्कता हेतु दिशा-निर्देश जारी किये जा चुके हैं।
टिड्डी दलों द्वारा क्षति – टिड्डियों के दल विशेष परिस्थितियों में एकत्रित होकर झुण्ड के रूप में दूर देशांतरों में चलकर भोजन और प्रवास करती हैं। इनके निम्फ़ तथा प्रौढ़ दोनों ही अपने काटने-चबाने वाले मुखांगों से पत्तियों को खाकर चट कर जाते हैं। इनके द्वारा पहुंचायी जाने वाली क्षति की भयावहता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि एक प्रौढ़ टिड्डा अपने वजन के बराबर लगभग 2 ग्राम ताजा वनस्पति प्रति दिन खा लेता है। एक छोटा टिड्डी दल लगभग 10 हांथियों, 25 ऊंटों या 35000 मनुष्यों के बराबर भोजन प्रति दिन कर सकता है। एक टिड्डी दल में 4 से 8 करोड़ प्रौढ़ प्रति वर्ग किलोमीटर में हो सकते हैं तथा एक दल का आकार एक वर्ग किलोमीटर से कई सौ वर्ग किलोमीटर तक हो सकता है। टिड्डी दल 80 से 150 किलोमीटर तक कि दूरी प्रति दिन तय कर सकते हैं तथा अच्छी वर्षा व अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर अपनी संख्या को तीन माह में 20 गुना तक बढ़ा सकते हैं। एक मरुस्थली मादा टिड्डी नम तथा बलुई मृदाओं में 10 से 15 सेंटीमीटर की गहराई पर अण्डफली के रूप में अंडे देती है। एक अण्डफली में 80 से 150 तक अंडे होते हैं तथा एक वर्गमीटर में 1000 तक अण्डफली हो सकती हैं।
नियन्त्रण के उपाय – टिड्डियों के नियन्त्रण के लिये 10,000 प्रौढ़ टिड्डी/हेक्टेयर या 5 से 6 प्रौढ़ टिड्डी प्रति झाड़ी आर्थिक क्षति स्तर है इसको पार करते ही इनके नियन्त्रण के गम्भीर प्रयास करने चाहिये।
यांत्रिक उपाय – निम्फ के लिये खाई खोदना, जुताई कर अंडे नष्ट करना, टिड्डियों को पानी और केरोसिन के प्रपंच में गिराना, शोर मचाना, आग लगाना आदि।
चारा रखना - टिड्डियों के लिये कीटनाशक मिश्रित आहार रखना।
कीटनाशी धूल का बुरकाव – क्षेत्र में वनस्पतियों तथा टिड्डी दल पर कीटनाशी धूल का बुरकाव करना। इनमें फेनवेलरेट 0.4 % डी॰पी॰, मैलाथियान 5 % डी॰पी॰ तथा क्यूनालफॉस 1.5 % डी॰पी॰ का कीटनाशी धूल का प्रयोग संस्तुत हैं।
कीटनाशी रसायनों का छिड़काव - क्षेत्र में वनस्पतियों तथा टिड्डी दल पर कीटनाशी
रसायनों का छिड़काव करना। इनमें बेंडियोकार्ब 80 % डब्लू॰पी॰ 125 ग्राम / हेक्टेयर, क्लोरोपायरीफॉस 20 % ई॰सी॰ 1.2 लीटर/हेक्टेयर, क्लोरोपायरीफॉस 50 % ई॰सी॰ 480 मिलीलीटर/हेक्टेयर, डेल्टामेथ्रिन 2.8 % ई॰सी॰ 450 मिलीलीटर, डेल्टामेथ्रिन 1.25 % यू॰एल॰वी॰ 250 मिलीलीटर, डाईफ्लूबेनजूरॉन 25 % डब्लू॰पी॰ 240 ग्राम, फिप्रोनिल 5 % एस॰सी॰ 125 मिलीलीटर, फिप्रोनिल 2.92 % ई॰सी॰ 216 मिलीलीटर, लैम्बडा साइहैलोथ्रिन 5 % ई॰सी॰ 400 मिलीलीटर, लैम्बडा साइहैलोथ्रिन 10 % डब्लू॰पी॰ 200 मिलीलीटर, मैलाथियान 50 % ई॰सी॰ 1.875 लीटर, मैलाथियान 25 % डब्लू॰पी॰ 3.7 किलोग्राम कीटनाशी रसायन प्रति हेक्टेयर का प्रयोग संस्तुत हैं।
जैविक उपाय – मेटारिजियम एक्रिडम फफूँद का प्रयोग किया जा सकता है।
टिड्डी दल की निगरानी – इनका झुण्ड प्रायः सूर्योदय के साथ सुबह भोजन करता हुआ उड़ान भरता है तथा दिनभर उड़ने के बाद शाम को खेतों में खड़ी फसलों, झाड़ियों, पेड़ों में रुककर रात्रि व्यतीत करता है। अतः क्षेत्र में खेतों, झाड़ियों तथा पेड़ों की निरन्तर निगरानी करते रहना चाहिये तथा टिड्डी दल के दिखाई देते ही इसके नियन्त्रण की व्यवस्था करने के साथ-साथ तुरन्त जनपद के कृषि सम्बन्धी विभागों तथा साथी कृषकों को सूचित करना चाहिये जिससे इसके आगे फैलाव को नियंत्रित किया जा सके।
अंडे देने के लिये उपयुक्त स्थान का चयन कर टिड्डी दल उस स्थान पर 3 से 4 दिन के लिये रुकता है तथा यही इसके नियन्त्रण का सर्वोत्तम समय होता है। इस समय दल के उड़ान न भरने के कारण रसायनों आदि के प्रयोग के लिये पर्याप्त समय मिल जाता है अतः इस अवसर का पूर्ण लाभ उठाना चाहिये।
कृषकों के लिये सलाह – कम वर्षा, सूखे एवं गर्म मौसम में टिड्डी दलों की सक्रियता अधिक बढ़ जाती है अतः ऐसे मौसम विशेष रूप से ग्रीष्मकाल में अधिक सावधानी रखनी चाहिये जिससे इसकी संख्या तथा इससे होने वाले नुकसान को नियंत्रित किया जा सके।
1. क्षेत्र में टिड्डी दल के आगमन की निरन्तर निगरानी करते रहना चाहिये तथा इसके लिये गाँव के जागरूक कृषकों के समूह बनाकर आगे की रणनीति पूर्व में ही तय कर लेनी चाहिये।
2. टिड्डियाँ जहाँ रात्रि विश्राम करती हैं या अंडे देती हैं वहाँ संस्तुत रसायनिक उपचार द्वारा उनके अंडों को नष्ट कर देना चाहिये। खाली खेत होने पर खेत की जुताई कर देने से अंडे यांत्रिक गतिविधि से या खुले में आने पर परजीवियों/परभक्षियों द्वारा या तेज धूप में नष्ट हो जाते हैं।
3. टिड्डियों के झुण्ड दिखाई देने पर सफेद कपड़े के झंडे उड़ा-उड़ाकर, ढ़ोल-नगाड़े बजाकर, तेज आवाज में लाउडस्पीकर/ डी॰जे॰ बजाकर, थालियाँ, पीपे, घण्टे बजाकर इतना शोर करना चाहिये की टिड्डी दल फसलों, पेड़ों, जमीन पर बैठ न पाये और परेशान होकर आगे बढ़ जाये।
4. टिड्डी दल को रात्रि विश्राम के समय अथवा प्रातःकाल मुँह अंधेरे में संस्तुत कीटनाशकों का प्रयोग कर नष्ट किया जा सकता है। इसके लिये ट्रैक्टर चालित पॉवर स्प्रेयर का प्रयोग अधिक उपयुक्त रहता है।
5. यदि सभी किसान भाई अपने-अपने खेतों तथा उससे लगे पेड़ों व झाड़ियों में आक्रमण होने से ठीक पहले या टिड्डियों के विश्राम के समय संस्तुत कृषि रसायनों का प्रयोग कर लें तो फसलों को होने वाली क्षति को रोकने के साथ-साथ टिड्डियों के झुण्ड को भी कमजोर किया जा सकता है।
6. क्षेत्र में खेतों, झाड़ियों तथा पेड़ों की निरन्तर निगरानी करके टिड्डी दल के दिखाई देते ही इसके नियन्त्रण की व्यवस्था करने के साथ-साथ तुरन्त साथी कृषकों, जनपद के कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषि विभाग, उद्यान विभाग, फसल सुरक्षा विभाग, कृषि रक्षा इकाई, राजस्व कार्यालय, ग्राम पंचायत एवं चीनी मिल के कार्यालयों को सूचित करना जिससे इसके आगे फैलाव को नियंत्रित किया जा सके।
7. पूर्व सतर्कता उपायों को अपनाकर तथा सभी संबन्धित व्यक्तियों एवं विभागों के सक्रिय योगदान के द्वारा पर्यावरण को न्यूनतम क्षति पहुंचाते हुये इसका प्रबन्धन किया जा सकता है तथा स्थानीय कृषि उत्पादन तथा निवासियों को सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।

डॉ आर के सिंह, अध्यक्ष
कृषि विज्ञान केन्द्र
भाकृअनुप-भारतीय पशु चिकिता अनुसंधान संस्थान
इज्जतनगर, बरेली
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