पर्यावरण के लिए बेहतरीन जैविक खेती

आज भारत में 5.38 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती हो रही है. उम्मीद है कि साल 2012 तक जैविक खेती का फसल क्षेत्र 20 लाख हैक्टेयर को पार कर जाएगा.

वर्ष 2003 में देश में सिर्फ 73 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती हो रही थी, जो 2007 में बढ़कर 2.27 लाख हैक्टेयर तक पहुंच गई.

इस तरह जैविक उत्पाद का बाजार अगले पांच साल में 6.7 गुना बढ़ने की उम्मीद है. तब दुनिया के कुल जैविक उत्पाद में भारत की भागीदारी करीब 2.5 फीसदी की हो जाएगी.

हरित क्रांति

वर्ष 2003 में भारत 73 करोड़ रुपयों के जैविक उत्पादों का निर्यात कर रहा था, जो साल 2007 में बढ़कर तीन अरब पर पहुंच गया. अगले पाँच सालों में जैविक उत्पादों का निर्यात 25 अरब रुपये तक पहुंच सकता है जबकि जैविक का घरेलू बाज़ार करीब 15 अरब करोड़ तक पहुँचने की उम्मीद है.

 

साठ के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति के बाद देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया था. हरित क्रांति के माध्यम से किसानों को उन्नत तकनीक, बीज और रासायनिक खाद उपलब्ध कराई गई. फिर देखते ही देखते हरित क्रांति ने खाद्य उत्पादन के मामले में भारत को अग्रणी देश बना दिया.

लेकिन देश को इस हरित क्रांति की बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी. हरित क्रांति के नाम पर खेती में कीटनाशकों और खाद के रूप में रसायनों का जमकर प्रयोग किया गया.

इन रसायनों ने हमारे किसानों का उत्पादन तो बढ़ाया ही लेकिन साथ ही हमारी प्राकृतिक संपदा का भरपूर दोहन भी किया.

इससे मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्म जीव और सूक्ष्म पादप कम होते गए. परिणामस्वरूप जमीन बंजर बनती चली गई और उत्पादन निम्न गुणवत्ता वाला और कम होने लगा.

वैसे भी कीटनाशक हवा के साथ-साथ मीलों तक अपना दुष्प्रभाव छोड़ते हैं इसलिए इनका असर क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य पर भी साफ़ नज़र आने लगा.

जैविक कृषि परियोजना

मिट्टी, पानी, पौधों, पालतू जानवरों और मानव शरीर में मौजूद रसायन न सिर्फ़ बीमारियों की वजह होते हैं बल्कि ज़मीन और पानी में प्रदूषण बढ़ाकर पर्यावरण की गर्मी को भी बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं.

 

इसके बाद लोगों और सरकार का ध्यान फिर भारत की पुरानी परंपरा यानी जैविक खेती की ओर गया.

किसानों की सहकारी संस्था नैफ़ेड ने राष्ट्रीय बागवानी मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत जैविक कृषि परियोजना पर काम शुरू किया. इसके माध्यम से किसानों और उनके खेतों को अपनाकर उन्हें जैविक के रूप में परिवर्तित कराया जाता है. फिर इन खेतों का जैविक के रूप में प्रमाणीकरण कराया जाता है.

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के मुख्य सलाहकार डॉ आरके पाठक कहते हैं, "हमारे यहाँ जो रसायनों पर आधारित खेती हो रही थी उससे धीऱे धीरे उत्पादकता कम हो रही थी, उत्पादन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा था. इस वजह से हमारे नीति निर्धारकों ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के बारे में सोचा."

उन्होंने कहा, "जैविक खेती को जब शुरू किया गया तो लोगों को लगा कि क्या वाकई इससे उत्पादकता बढ़ेगी और खरपतवार ख़त्म हो जाएंगे? लेकिन हमने यह कर दिखाया. अब जो किसान जैविक खेती कर रहे हैं उनका उत्पादन रासायनिक फर्टिलाइज़रों का प्रयोग करने वाले किसानों से हर मायने में बेहतर है."

इस परियोजना के पीछे नैफ़ेड का मुख्य उद्देश्य ग़ैर रासायनिक खादों के माध्यम से भूमि को उपजाऊ बनाए रखना और किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाना है.

जैविक खेती में फसलों और मिट्टी को फायदा पहुंचाने वाले कृमियों और सूक्ष्म जीवों का संरक्षण होता है. इससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है.

पर्यावरण संरक्षण

जैविक खेती रसायनों से होने वाले दुष्प्रभावों से पर्यावरण का बचाव करती है और इसका सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि इसके माध्यम से जैव पर्यावरण का संरक्षण होता है.

 

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए नैफ़ेड ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत आईटीएस लिमिटेड का सहयोग लिया. यह संगठन किसानों के समूहों को फसल उत्पादन के लिए पहले पंजीकृत करता है फिर उन्हें उत्पादन की जैविक विधियों का प्रशिक्षण दिया जाता है ,

किसानों के खेतों से मिट्टी के नमूने लेकर भूमि स्वास्थ्य की जाँच करवाई जाती है. इन नमूनों से मिट्टी के लिए लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं को अलग करके द्विगुणन के लिए जैविक कल्चर तैयार किया जाता है. यह जैविक कल्चर किसानों को मुफ़्त वितरित किया जातता है 

फ़ायदा

जैविक खेती का पहला फ़ायदा यह हुआ कि किसान की खेती में लागत पहले के मुक़ाबले 80 फ़ीसदी कम हो गई. जैविक खेती पर्यावरण के लिए भी बेहतरीन है और इससे जल और वायु प्रदूषण से बचाव होता है.

जैविक खाद की वजह से खेत की मिट्टी की गुणवत्ता में बहुत सुधार आया और उत्पादन पहले से ज़्यादा स्वादिष्ट और स्वास्थ्य के लिए बेहतर साबित हुआ.

इसके अलावा समय से पहले उत्पादन की वजह से किसानों को सिंचाई के लिए पानी की ज़रूरत काफ़ी कम हो गई. ड़ी संख्या में खेतों के जैविक होने का फायदा देश को भी मिल रहा है क्योंकि देश को 40 हजार करोड़ रुपये इन उर्वरकों की सब्सिडी पर खर्च करने पड़ते हैं.