मक्के में लगने बालें कीट व रोगों तथा उपचार

मक्का खरीफ ऋतु की फसल है, परन्तु जहां सिचाई के साधन हैं वहां रबी और खरीफ की अगेती फसल के रूप मे ली जा सकती है। मक्का कार्बोहाइड्रेट का बहुत अच्छा स्रोत है। यह एक बहपयोगी फसल है व मनुष्य के साथ- साथ पशुओं के आहार का प्रमुख अवयव भी है तथा औद्योगिक दृष्टिकोण से इसका महत्वपूर्ण स्थान भी है।जिन किसानों ने मक्के की बुवाई की है, उन्हें मक्के में लगने वाले कीटों, रोगों व उनके उपचार के बारे में जानना बहुत ज़रूरी है ताकि समय रहते किसान कीट व रोग को पहचान कर उचित उपचार कर सकें। इस संकलन से हम किसानों को मक्के में लगने वाले कीटों, रोगों व उनके उपचार के बारे में बता रहे हैं।

कीट व उपचार
1- दीमक : खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 फीसदी ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
 करंज के पत्ते ,नीम के पत्ते ,धतूरे के पत्ते 10 लीटर गौमूत्र में डालकर उबालें  यह तब तक उबालें जब गौ मूत्र 5 लीटर रह जाये तो ठंडा करके छान कर इस में 1 ली तेल  अरंडी का मिला लें 50 ग्राम सर्फ़ मिला कर 15 लीटर पानी में 200 मिली घोल मिला कर तनें और जड़ों में प्रयोग करें।
2- सूत्रकृमि : रासायनिक नियंत्रण के लिए बुआई से एक सप्ताह पूर्व खेत में 10 किग्रा फोरेट 10 जी फैलाकर मिला दें।
 2 लीटर गाय के मठ्ठे  में 15 ग्राम हींग 25 नमक ग्राम अच्छी तरह मिला कर खेत में छिरक दें 
3- तना छेदक कीट : कार्बोफ्यूरान 3जी 20 किग्रा अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सीजी 20 किग्रा अथवा डाईमेथोएट  30 प्रतिशत ईसी 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी 1.50 लीटर।
20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती , 3 किलो धतुरा की पत्ती और 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो बेशर्म की पत्ती  2 किलो अकौआ  की पत्ती  200 ग्राम अदरक की पत्ती (यदि  नही मिले तो 50ग्राम अदरक) 250ग्राम लहसुन 1 किलो गुड 25 ग्राम हींग  150 ग्राम  लाल मिर्च डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें  यह घोले 1 एकड़ के लिए तैयार है इसे दो बार में 7-10 दिनों के अन्तेर से छिद्काब करना है प्रति 15 लीटर पानी में 3 लीटर घोल मिलाना है छिद्काब पूरी तरह से तर करके करना होगा 
4 – प्ररोह मक्खी : कार्बोफ्यूूरान 3जी 20 किग्रा अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सीजी 20 किग्रा अथवा डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा कूनालफास 25 प्रतिशत ईसी 1.50 लीटर।
20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती , 3 किलो धतुरा की पत्ती और 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो बेशर्म की पत्ती  2 किलो अकौआ  की पत्ती  200 ग्राम अदरक की पत्ती (यदि  नही मिले तो 50ग्राम अदरक) 250ग्राम लहसुन 1 किलो गुड 25 ग्राम हींग  150 ग्राम  लाल मिर्च डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें  यह घोले 1 एकड़ के लिए तैयार है इसे दो बार में 7-10 दिनों के अन्तेर से छिद्काब करना है प्रति 15 लीटर पानी में 3 लीटर घोल मिलाना है छिद्काब पूरी तरह से तर करके करना होगा 

रोग व उपचार
1 – तुलासिता रोग
पहचान: इस रोग में पत्तियों पर पीली धारियां पड़ जाती है। पत्तियों के नीचे की सतह पर सफेद रुई के समान फफूंदी दिखाई देती है। ये धब्बे बाद में गहरे अथवा लाल भूरे पड़़ जाते हैं। रोगी पौधे में भुट्टा कम बनते हैं या बनते ही नहीं हैं। रोगी पौधे बौने एवं झाड़ीनुमा हो जाते हैं।
उपचार: इनकी रोकथाम के लिए जिंक मैगनीज कार्बमेट या जीरम 80 प्रतिशत, दो किलोग्राम अथवा 27 प्रतिशत के तीन लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव आवश्यक पानी की मात्रा में घोलकर करना चाहिए।
इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
2 – झुलसा रोग
पहचान: इस रोग में पत्तियों पर बड़े लम्बे अथवा कुछ अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। रोग के उग्र होने पर पत्तियां झुलस कर सूख जाती है।
उपचार: इसकी रोकथाम के लिए जिनेब या जिंक मैगनीज कार्बमेट दो किलो अथवा जीरम 80 प्रतिशत, दो लीटर अथवा जीरम 27 प्रतिशत तीन लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
नीम का काढ़ा  २५० मि. ली. को प्रति पम्प के हिसाब से फसल में तर-बतर कर छिड़काव  करें |

3- तना सडऩ
पहचान: यह रोग अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में लगता है। इसमें तने की पोरियों पर जलीय धब्बे दिखाई देते हैं, जो शीघ्र ही सडऩे लगते हैं और उससे दुर्गन्ध आती है। पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं।
उपचार: रोग दिखाई देने पर 15 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन अथवा 60 ग्राम एग्रीमाइसीन तथा 500 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से अधिक लाभ होता है।
 देसी गाय का मूत्र 5 लीटर लेकर 15 ग्राम के आकार के बराबर हींग लेकर पिस कर  2 किलो नीम का तेल या काड़ा अच्छी तरह मिलाकर घोल बनाना चाहिए प्रति 2 ली. पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिडकाव करे ।

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