मूंग की खेती किसानो की आय का अच्छा साधन

जलवायु  मूंग की फसल सभी मौसमों में उगाई जाती है , उत्तरी भारत में इसे वर्षा ( खरीफ ) तथा ( ग्रीष्म ) ऋतू में उगाते हैं , दक्षिणी भारत में मूंग को रबी मौसम में उगाते हैं , इसकी फसल के लिए अधिक वर्षा हानिकारक होती है , ऐसे क्षेत्रों में जहाँ 60-75 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है मूंग की खेती के लिए उपयुक्त हैं पर , मूंग की फसल के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता पड़ती है , मूंग की खेती समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है , पौधों पर फलियाँ आते समय तथा फलियाँ पकते समय शुष्क मौसम तथा उच्च तापक्रम अधिक लाभप्रद होता है .

भूमि का चुनाव एवं तैयारी

मूंग की खेती सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जाती है। मध्यम दोमट, मटियार भूमि समुचित जल निकास वाली, जिसका पी.एच. मान 7-8 हो इसके लिये उत्तम है। भूमि में प्रचुर मात्रा में स्फुर का होना लाभप्रद होता है। दो या तीन बार हल या बखर चलाकार मिट्टी को पाटा लगाकार समतल करें। दीमक से ग्रसित भूमि को फसल की सुरक्षा हेतु एल्ड्रिन 5 प्रतिशत चूर्ण 8 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से अंतिम बखरनी के पूर्व भुरकावें और बखर से मिट्टी में मिलावें। 

बीज की मात्रा एवं बीजोपचार : 

खरीफ मौसम में मूँग का बीज 6-8 किलोग्राम प्रति एकड़ लगता है। जायद में बीज की मात्रा 10-12 किलोग्राम प्रति एकड़ लेना चाहिये। 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम / 2 ग्राम थायरम या 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करने से बीज एवं भूमि जन्य बीमारियों से फसल की सुरक्षा होती है। इसके बाद बीज को जवाहर रायजोबियम कल्चर से उपचारित करें। 5 ग्राम रायजोबियम कल्चर प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें और छाया में सुखाकर शीघ्र ही बुवाई करना चाहियें। इसके उपचार से रायजोबियम की गाँठें ज्यादा बनती है, जिससे नत्रजन स्थरिकरण से बढ़ोत्री होती है तथा जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। 

बोनी का समय एवं विधि :

खरीफ में जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के द्वितीय सप्ताह तक पर्याप्त वर्षा होने पर बुवाई करें। जायद में फरवरी के दूसरे या तीसरे सप्ताह से मार्च के दूसरे सप्ताह तक बुवाई करना चाहिये। बुवाई दुफन या तिफन से कतारों के बीच 30 से.मी. व पौध से पौध के बीच 10 से.मी. और 4-5 से.मी. गहराई पर करें। जायद में कतार की दूरी 20-25 से.मी. रखना चाहिये ताकि खरीफ से ज्यादा पौध संख्या प्रति एकड़ प्राप्त हो सके।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा एवं देने की विधि :

मँग के लिये 8 किलो नत्रजन 20 किलो स्फुर, 8 किलो पोटाश एवं 8 किलो गंधक प्रति एकड़ बोने के समय प्रयोग करना चाहिये।

सिंचाई एवं जल निकास :

प्राय: खरीफ में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। परंतु फूल अवस्था पर सूखे की स्थिति में सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोतरी होती है। अधिक वर्षा की स्थिति में खेत में पानी का निकास करना जरुरी है। जायद मूँग फसल में खरीफ की तुलना में पानी की ज्यादा आवश्यकता होती है। 10-15 दिन के अंतराल पर 3-4 सिंचाई करना चाहिये।

निंदाई व बुवाई :

प्रथम नींदाई बुवाई के 20-25 दिन के भीतर व दूसरी 40-45 दिन में करना चाहिये। 2-3 बार कोल्पा चलाकर खेत को नींदा रहित रखा जा सकता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु नींदा नाशक दवाईयों जैसे बासालीन या पेंडामेथलीन का प्रयोग भी किया जा सकता है। बासालीन 800 मि.ली. प्रति एकड़ के मान से 250-300 लीटर पानी में बोनी पूर्व छिड़काव करें।

फसल चक्र एवं अंतरवर्तीय फसल :

निम्न फसल चक्र अपनाने से उत्पादन के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है - धान आधारित क्षेत्रों के लिये : धान-गेंहू-मूंग या धान-मूंग-धान, मालवा निमाड़ क्षेत्र के लिये : अ. मूंग-गेंहू-मूंग, ब. कपास-मूंग-कपास फसल चक्र आम है

अंतरवर्तीय फसल में ज्वार+मूंग - 4:2 या 6:3, मक्का+मूंग - 4:2 या 6:3, अरहर+मूंग 2:4 या 2:6

पौध संरक्षण 

अ. कीट 

फसल की प्रारम्भिक अवस्था में तनामक्खी, फलीबीटल, हरी इल्ली, सफेद मक्खी, माहों, जैसिड, थ्रिप्स आदि का प्रकोप होता है। इनकी रोकथाम हेतु इंडोसल्फान 35 ई.सी. 400 से 500 मि.ली. व क्वीनालफॉस 25 ई.सी. 600 मि.ली. प्रति एकड़ या मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन बाद पुन: छिड़काव दोहरायें।

पुष्पावस्था में फली छेदक, नीली तितली का प्रकोप होता है। क्वलीनालफॉस 25 ई.सी. का 600 मि.ली. या मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. का 200 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करने से इनकी रोकथाम हो सकती है। कई क्षेत्रों में कम्बल कीड़े का भारी प्रकोप होता है इसकी रोकथाम हेतु पेराथियान चूर्ण 2 प्रतिशत, 10 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से भुरकाव करें।
 

ब. रोग: 

मेक्रोफोमिना रोग : कत्थई भूरे रंग के विभिन्न आकार के धब्बे पत्तियों के निचले भाग पर मेंकोफोमिना एवं सरकोस्पोरा फफूंद के द्वारा बनते हैं। इनकी रोकथाम के लिये 0.5 प्रतिशत कार्बेंडाजिम या फायटोलान या डायथेन जेड-78, 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 

भभूतिया रोग या बुकनी रोग - 30-40 दिन की फसल में पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है। इसकी रोकथाम के लिये घुलनशील गंधक 0.15 प्रतिशत या कार्बेंडाजिम 0.1 प्रतिशत के 15 दिन के अंतराल पर तीन छिड़काव करें। 
पीला मोजेक वायरस रोग : यह सफेद मक्खी द्वारा फैलने वाला विषाणु जनित रोग है। इसमें पत्तियाँ तथा फलियाँ पीली पड़ जाती है और उपज पर प्रतिकूल असर होता है। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु मोनोक्रोटोफॉस 36 ई.सी. 300 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिये। पीला मोजेक वायरस निरोधक किस्मों को उगाना ही सबसे अच्छा उपाय है।
 

फसल कटाई-गहाई : 

जब फलियाँ काली पड़कर पकने लगे तब तुड़ाई करना चाहिये। इन फलियाें को सुखाकर बैलों के दावन से या लकड़ी द्वारा पीटकर गहाई करें।

उपज :

उपरोक्त तरीके से मूंग की खेती करने पर उपज 4.00-4.80 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त हो सकती है।

 

organic farming: 
जैविक खेती: