लाभदायक खेती: सूरजमुखी

सूरजमुखी साल के तीनों मौसम में लगाने वाली तिलहनी फसल है । इसका तेल कोलेस्ट्राॅल रहित तथा विटामिन-ए, डी एवं ई से भरपूर रहता हैं। इसके दानों में मंूगफली के समान ही 40 से 50 प्रतिशत तेल निकलता है। इसका उपयोग खाद्य तेल के रूप में किया जाता है। इसमे कोलेस्ट्राॅल की मात्रा कम होने से यह हृदय रोगियों के लिए अन्य तेलो की अपेक्षा अधिक लाभप्रद होता है। कई क्षेत्रों में, जहां कहीं भी गेहँू की बुआई के लिए देरी हो जाती है, वहां सूरजमुखी लगाना अधिक लाभदायक होता है । अतः कृषक भाई गेहूं की जगह सूरजमुखी ही लगायें।
भूमि –
सूरजमुखी के लिए अच्छी जलधारण क्षमता वाली भूमि जिसमें जल निथार अच्छा हो, वह इसके लिए उपयुक्त होती है। खेत की तैयारी अन्य फसलों की ही तरह की जानी चाहिए। जुताई कर पिछली फसल का अवशेष नष्ट कर दें और फिर भूमि तैयार करें।
किस्में –
मार्डेन-यह किस्म 110 दिन में पक जाती है तथा 15 से 20 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है इसमें तेल की मात्रा 42 प्रतिशत होती है। ज्वालामुखी, एम.एस ़एस.एच.- 8 , एम.एफ.एस.एच. 17 ,के.बी.एस.एच. 44।
बीज मात्रा –
संकर किस्मों का 5 से 6 किलो तथा अन्य किस्मों का 10 से 12 किलो बीज एक हेक्टर के लिए पर्याप्त होता है । सूरजमुखी के बीज की सतह बहुत कठोर होती है अतः बुआई के पूर्व उसका उपचार अच्छे अंकुरण के लिए आवश्यक होगा। बीज को सर्वप्रथम 24 घंटे तक ठंडे पानी में भिगोकर छोड दें, फिर निकाल कर छाया में सूखा लें, इसके उपरांत 2 ग्राम थाईरम प्रति किलो बीज के हिसाब से उसका उपचार करंे।
बुवाई का समय –
इसकी बुआई का उपयुक्त समय जनवरी के अंतिम सप्ताह से लेकर फरवरी के प्रथम सप्ताह तक है। बीज कतार से कतार 50 से 60 सेमी. दूरी तथा 20 सेमी. बीज से बीज की दूरी पर डालें।
उर्वरक –
खेत की तैयारी के समय 20 से 25 टन गोबर खाद डालें तथा बुआई के समय सामान्य किस्मों में नत्रजन 40, स्फुर 40 एवं पोटाश 40 किलो/हैक्टेयर की दर से दें। संकर किस्मों में नत्रजन 60, स्फुर 90 एवं पोटाश 60 किलो/हैक्टेयर दिया जाता है। स्फुर – पोटाश आधी मात्रा नत्रजन की बुआई के समय तथा नत्रजन की शेष आधी मात्रा बुआई के 30 से 35 दिनों बाद, निंदाई -गुडाई सिंचाई के बाद देवें ।
निंदाई -गुडाई विरलीकरण: –
खेत में निंदाई -गुडाई तथा सघन पौधों का विरलीकरण एक महत्वपूर्ण क्रिया है, ताकि पौधों को विकास के लिए एक पर्याप्त वातावरण मिलें और उनका विकास होकर अच्छा उत्पादन प्राप्त हो। अतः समय पर निंदाई-गुड़ाई करें ।
पौध संरक्षण –
पक्षियों से फूल की रक्षा तथा परागकण क्रिया में प्रोत्साहन करने के लिए मधुमक्खी पालन/संरक्षण पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि परागीकरण कार्य संतोषजनक होकर अच्छे से अच्छा उत्पादन मिल सके।

ऽ उकठा रोग के बचाव हेतु बीज का उपचार करना आवश्यक हैं।
ऽ पत्तों पर धब्बों के रोग-उपचार हेतु मेन्कोजेब 2 ग्राम/लीटर पानी में घोल बना कर, दो छिड़काव 15 दिनों के
अन्तर से करें।
ऽ पक्षियों से रक्षा के लिए एक साथ बड़े क्षेत्र में फसल लगाने तथा दर्पण प्रपंच का उपयोग भी करें।
कटाई –
जब फूल के पीछे भाग में पीलापन आने लगे उसी समय कटाई करें।

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जैविक खेती: