शिमला मिर्च खेती

लगाने का समय:

उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में शिमला मिर्च की फ सल को जाड़े की फ सल के रूप में उगाया जाता है जिसके लिए पौधे जुलाई अगस्त के महीने में तैयार करते है पर्वतीय क्षेत्रों में कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नवम्बर तथा फरवरी मार्च में बीज की बुवाई करते है और मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मार्च से मई तक बुवाईकरते है। शिमला मिर्च के बीज के अंकुरण के लिए आवश्यक है कि समय से बुवाई की जाए क्योंकि देर से बुवाई करने पर जब तापमान कम होने लगता हैतो अंकुरण का प्रतिशत घट जाता है तथा अंकुरण में काफी समय लगता है। पौधशाला मे 30 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। पौधे के बढऩे केलिए 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है जबकि फ ल लगने के लिए महीने का औसत तापमान 10-15 डिग्री सेंटीग्रेट के बीच कातापमान अच्छा होता है।

पौध तैयार करना:पौध तैयार करने के लिए अच्छी प्रकार से तैयार क्यारी में अच्छी तरह से सड़ा हुआ गोबर की खाद मिला दे। यह क्यारी जमीन कि सतह से 15-20 सेमी ऊंचीहोनी चाहिए जिससे बरसात के पानी से क्यारी डूबे नहीं तथा पौधे पानी में खऱाब न हों। बीज को पंक्तियों में 5 सेमी की दूरी पर एवं 2.5 सेमी की गहराई पर बोते है।

बीज की मात्रा :शिमला मिर्च के बीज बहुत छोटे होते है यह प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्र में लगाने के लिए 1 ग्राम बीज पर्याप्त होता है सामान्यतया 1 ग्राम से भी कम बीज की आवश्यकता होती है लेकिन बाजार में 1 ग्राम से कम बीज के पैकेट उपलब्ध नहीं होते हैं।

रोपण: पौधशाला में रोपण के लिए बुवाई के 30 से 35 दिन बाद तैयार हो जाते हैं। इस समय पौधे में 4 से 5 पत्तियां होती हैं। रोपण केलिए 40 सेमी चौड़ी जमीन कि सतह से 20 सेमी उच्च क्यारियां बनाई जाती है जिसके दोनों तरफ चौड़ी नाली होती है इन्ही क्यारियों में दोनों तरफ 30 सेमी की दूरी पर पौधों कि रोपाई की जाती है।

जलवायु :शिमला मिर्च गर्म और आधे गर्म जलवायु का पौधा है, लेकिन इसकी सफल खेती के लिए गर्म एवं नम जलवायु सर्वोत्तम मानी है। 20 से 25 डिग्री सेल्सियसतापमान इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है उपयुक्त तापमान न होने की स्थिति में इसके फ ल, फू ल और कली गिर जाते है। 625 से 750 मिलीमीटरवार्षिक बरसात वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए उत्तम माने गए है मिर्च की खेती समुद्र तल से 2000 मीटर तक की ऊंचाई पर भी की जा सकती है।

कैसी हो भूमि: शिमला मिर्च के लिए अच्छी उपजाऊ जमीन, जिसमे जीवांश की मात्रा अधिक हो, जरूरी होती है। भूमि की प्रकृति बलुई दोमट होनी चाहिए इस प्रकार से चुनी हुई जमीन कि 3-4 बार अच्छी तरह से खुदाई करके मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है।

प्रजातियां : शिमला मिर्च के लिए सामान्य किस्में और संकर दोनों ही किस्मों का चुनाव किया जा सकता है संकर किस्मों के फ ल सामान्य या मुक्त परागित किस्मों की तुलना में बड़े आकार के एवं गहरे रंग के होते है इसलिए संकर किस्मों को अधिक पसंद किया जाता है इसकी कुछ सामान्य किस्मों एवं संकर किस्मों का वर्णन नीचे किया गया है .

सामान्य किस्में :

 कोलोफोरनेया वंडर : यह काफी प्रचलित किस्म है जिसके पौधे मध्यम ऊंचाई के और सीधे बढऩे वाले होते है। फ ल चिकने और गहरे हरे रंग के होते है, फ लों का छिलका मोटा होता है और प्रत्येक फ ल में 3 से 4 पिंड फल होते है।

यलो वंडर: इसके पौधे छोटे आकार के होते हैं, फल का छिलका मध्यम मोटाई का होता है और फ ल गहरे हरे रंग के होते है।

संकर किस्में:

इन्द्रा : 

यह एक प्रभावी संकर किस्म है। इसके पौधे मध्यम ऊंचाई के खड़े सीधे व छाता नुमा आकार के होते है। फ ल चौड़ाई के अनुपात में थोड़े लम्बे एवं मोटे गुदे

वाले होते है। प्रत्येक फ ल का वजन 100 से 150 ग्राम का होता है।

भारत: इसके पौधे ऊपर की तरफ बढऩे वाले, घने, मजबूत, व गहरी पत्ती लिए होते है। फ ल मोटे 3-4 प्रकोष्ठ वाले तथा चिकनी सतह के होते है, प्रत्येक फ ल का औसत वजन 150 ग्राम के लगभग होता है।

ग्रीन गोल्ड: इसके फ ल की लम्बाई 11 सेमी और मोटाई 9 सेमी होती है। फ ल का रंग गहरा हरा होता है, फ ल का वजन 100-120 ग्राम होता है।

सिंचाई  शिमला मिर्च को सामान्यतया अधिक पानी कि आवश्यकता होती है इसके लिए 10 15 दिन के अंतर हलकी सिचाई करनी चाहिए।

खरपतवार रोकथाम: पहली निराई गुड़ाई रोपण के 30 दिन बाद और दूसरी 60 दिन बाद करते है दूसरी गुड़ाई के समय पौधों के पास हलकी मिटटी चढ़ा देनी चाहिए।

कीट नियंत्रण:थ्रिप्स पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते है इस कीट का प्रकोप पौधों कि रोपाई के 2-3 सप्ताह बाद प्रारंभ होता है। फुल आने के समय इसका प्रकोप बहुत अधिक होता है इसके अधिक प्रकोप से पत्तियां सिकुड़ जाती है तथा मुरझाकर मुड़ जाती है।     

 

अमर कान्त 

लेखक एक अग्रणी किसान हैं 

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