रोजगार

कोई व्यक्ति जीवन के विभिन्न कालावधियों में जिस क्षेत्र में काम करता है या जो काम करता है, उसी को उसकी आजीविका या 'वृत्ति' या करिअर (Career) कहते हैं। आजीविका प्राय: ऐसे कार्यों को कहते हैं जिससे जीविकोपार्जन होता है। शिक्षक, डाक्टर, इंजिनीयर, प्रबन्धक, वकील, श्रमिक, कलाकार, आदि कुछ आजीविकाएँ हैं।

हममें से प्रत्येक को किसी न किसी स्तर पर अपना जीवनयापन करने के लिये जीविकोपार्जन का साधन चुनना पड़ता है। व्यापार का क्षेत्र स्वरोजगार तथा सवेतन रोजगार के अनगिनत अवसर प्रदान करता है। आज स्वरोजगार, बेरोजगारी दूर करने का एक अति उत्तम विकल्प है जिससे देश की उन्नति भी होती है। स्वयं के लिये कार्य करना अपने आप में एक चुनौती तथा प्रसन्नता है।
जीविका का शाब्दिक अर्थ है : एक ऐसा व्यवसाय, जिसके द्वारा जीवन में आगे बढ़ने एवं उन्नति के अवसरों का लाभ उठाया जा सके। इससे अभिप्राय मात्रा एक रोजगार/जीविका का चयन नहीं है। इसका तात्पर्य उन विभिन्न पदों से हैं, जो क्रियाशील जीवन में कोई व्यक्ति प्राप्त कर सकता है। व्यापक अर्थों में जीविका किसी व्यक्ति की जीवन संरचना का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। उदाहरण के लिए आपको कार्यालय सहायक का पद मिलता है। आगे चलकर आप कार्यालय अधीक्षक बन सकते हैं और हो सकता है कि कार्यालय प्रबन्धक के पद तक पहुंच जाएं। व्यवसाय का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा जीवन में उन्नति करना विशेषतया उस व्यक्ति से सम्बंधित व्यवसाय के सम्बंध में। व्यवसाय सामान्यतः एक व्यक्ति द्वारा लम्बे समय तक किया जाने वाला कार्य है, जो सेवा में रहते हुए अपनी स्थिति बनाये हुए अपने व्यवसाय/जीविकोपार्जन के रूप में करता है।

आज जल्दी-जल्दी व्यवसाय बदलने का चलन बढ़ रहा है। उदाहरण के लिये एक वकील अपने व्यक्तिगत व्यवासय में कई अलग-अलग फर्मों का अलग-अलग कानूनी व्यवसाय करता है।

अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग व्यवाय जो आप करते हैं। उसे आपके व्यवसाय का रास्ता कह सकते है और इससे आपके दिन प्रतिदिन की दिनचर्या पर भी प्रभाव पड़ता है। व्यवसाय से ही किसी की स्थिती का पता भी चलता है कि जो उस व्यक्ति ने अपनी योग्यता तथा क्षमता विकसित की है।
जब कोई व्यक्ति किसी व्यवसाय में लगा होता है तो हम कहते हैं कि वह रोजगार में है। हर व्यक्ति का व्यवसाय किसी न किसी आर्थिक क्रिया से जुड़ा है। हर व्यक्ति अपने भविष्य के निर्माण के लिए किसी न किसी रोजगार में लगना चाहता है अर्थात् अपनी आजीविका कमाने के लिए किसी न किसी आर्थिक क्रिया में लग जाता है।

जीविका का चुनाव करने के लिए नीचे दिए गए विकल्पों में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है : 

नौकरी का अर्थ है किसी दूसरे की मजदूरी अथवा वेतन के बदले में कार्य करना। यदि किसी को कार्यालय सहायक के पद पर नियुक्त किया जाता है तो वह उस कार्य कोकरेगा जो उसका पर्यवेक्षक उसे सौंपता है। अपने कार्य के बदले में प्रतिमास उसे वेतन मिलेगा। इस प्रकार का रोजगार रोजगारदाता एवं कर्मचारी के बीच अनुबंध पर आधरित होता है। कर्मचारी अपने मालिक के लिए कार्य करता है। वह उस कार्य को करता है जो उसका मालिक उसे करने के लिए देता है। इसके बदले में उसे उसका प्रतिफल मिलता है। कार्यकाल की अवधि् में वह मालिक की देख-रेख और नियंत्रण में कार्य करता है। दूसरी ओर स्वरोजगार का अर्थ है अपनी जीविका कमाने के लिए स्वयं किसी आर्थिक क्रिया को करना। आइए, पहले नौकरी के विभिन्न अवसरों के बारे में संक्षेप में जानें।

नौकरी
सवेतन व्यवसाय अथवा सवेतन नौकरी के अवसर सरकारी कार्यालयों में पाये जाते हैं। सरकारी विभागों में रेलवे, बैंक, व्यापारिक कम्पनियां, स्कूल एवं अस्पतालों में विभिन्न प्रकार का कार्य होता है। इसी प्रकार से औद्योगिक इकाइयों एवं ट्रांसपोर्ट कम्पनियों के कार्यों की प्रकृति में अंतर होता है। इसलिए इनमें कार्यरत तकनीकी कर्मचारियों के कार्य में भी भिन्नता होती है।

जिन लोगों ने माध्यमिक परीक्षा पास की है उन लोगों के लिए लिपिक अथवा विद्यालयों में प्रयोगशाला सहायक के पद पर नियुक्ति के अवसर होते हैं, क्योंकि इन पदों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता माध्यमिक कक्षा उत्तीर्ण है। वैसे इनके लिए आई। टी.आई। पॉलीटैक्निक, राज्य सचिव एवं वाणिज्यिक संस्थानों में प्रशिक्षण की विशेष सुविधएं उपलब्ध हैं। जो व्यक्ति तकनीकी अथवा कार्यालय सचिवालयों के पाठ्यक्रम में उतीर्ण हो जाता है उसे किसी कार्यशाला में तकनीकी कर्मचारी अथवा कार्यालय सहायक अथवा लेखालिपिक के पद पर नियुक्ति मिल सकती है। यदि वह कम्प्यूटर प्रचालन में निपुण है तो उसे कम्प्यूटर प्रचालक के रूप में नियुक्ति मिल सकती है।

स्वरोजगार
जब आप कोई रोजगार अपनाते हैं तो आप वह कार्य करते हैं जो आपका रोजगारदाता आपको सौंपता है तथा बदले में आपको मजदूरी अथवा वेतन के रूप में एक निश्चित राशि प्राप्त होती है। लेकिन कोई काम/नौकरी के स्थान पर अपना कोई कार्य कर सकते हैं तथा अपनी आजीविका कमा सकते हैं।

आप एक दवाइयों की दुकान चला सकते हैं या फिर एक दर्जी का काम कर सकते हैं। यदि एक व्यक्ति कोई आर्थिक क्रिया करता है तथा स्वयं ही इसका प्रबंधन करता है तो इसे स्वरोजगार कहते हैं। हर इलाके में आप छोटे-छोटे स्टोर, मरम्मत करने वाली दुकानें अथवा सेवा प्रदान करने वाली इकाइयां देखते हैं। इन प्रतिष्ठानों का एक ही व्यक्ति स्वामी होता है तथा वही उनका प्रबंधन करता है। कभी-कभी एक या दो व्यक्तियों को वह अपने सहायक के रूप में रख लेता है। किराना भंडार, स्टेशनरी की दुकान, किताब की दुकान, दवा घर, दर्जी की दुकान, नाई की दुकान, टेलीफोन बूथ, ब्यूटी पार्लर, बिजली, साइकिल आदि की मरम्मत की दुकानें स्वरोजगार आधारित क्रियाओं के उदाहरण हैं। इन भंडारों अथवा दुकानों के स्वामी प्रबन्ध्क क्रय-विक्रय क्रियाओं अथवा सेवा कार्यों से आय अर्जित करते हैं जो उनकी जीविका का साधन है। यदि उनकी आय व्यय से कम होती है तो उन्हें हानि होती है, जिसे उन्हें ही वहन करना होता है।

कृषि क्षेत्र के हालात ज्यादा बदतर देश में हर रोज बेरोजगार हो रहे हैं 550 लोग

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 देश में रोजगार की संभावनाएं तलाश रही केंद्र सरकार के तमाम प्रयासों के बीच एक चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। यह रिपोर्ट बताता है कि देश में हर रोज करीब 550 लोग बेरोजगार हो रहे हैं। अगर यही रफ्तार जारी रही तो साल 2050 तक देश के 70 लाख लोग बेरोजगार हो चुके होंगे। दिल्ली सोसाइटी स्थित एक सिविल सोसाइटी ग्रुप प्रहार (PRAHAR) के एक अध्यियन में यह बात सामने आई है।

 

कृषि क्षेत्र के हालात ज्यादा बदतर: