दलहन

दलहन वनस्पति जगत में प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत हैं। मटर, चना, मसूर, मूँग इत्यादि से दाल प्राप्त होती हैं।

भारतीय कृषि पद्धति में दालों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है। दलहनी फसलें भूमि को आच्छाद  प्रदान करती है जिससे भूमि का कटाव  कम होता है। दलहनों में नत्रजन स्थिरिकरण का नैसर्गिक गुण होने के कारण वायुमण्डलीय नत्रजन को  अपनी जड़ो में सिथर करके मृदा उर्वरता को भी बढ़ाती है। इनकी जड़ प्रणाली मूसला होने के कारण कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में भी इनकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इन फसलों के दानों के छिलकों में प्रोटीन के अलावा फास्फोरस अन्य खनिज लवण काफी मात्रा में  पाये जाते है जिससे पशुओं और मुर्गियों के महत्वपूर्ण रातब  के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।

मूँगफली की वैज्ञानिक खेती

बहुपयोगी व्यापारिक फसल-मूँगफली 

                 भारत की तिलहन फसलो  में मूँगफली का मुख्य स्थान है । इसे तिलहन फसलों का राजा तथा गरीबों के बादाम की संज्ञा दी गई है। इसके दाने में लगभग 45-55 प्रतिशत तेल(वसा) पाया जाता है जिसका उपयोग खाद्य पदार्थो के रूप में किया जाता है। इसके तेल में लगभग 82 प्रतिशत तरल, चिकनाई वाले ओलिक तथा लिनोलिइक अम्ल पाये जाते हैं। तेल का उपयोग मुख्य रूप से वानस्पतिक घी व साबुन बनाने में किया जाता है। इसके अलावा मूँगफली के तेल का उपयोग श्रंगार प्रसाधनों, शेविंग क्रीम आदि के निर्माण में किया जाता है।

मूंग की प्रमुख, बिमारियां एवं उनकी रोकथाम

तम्बाकू की इल्ली

व्यस्क पतंगों के अगले पंख सुनहरे भूरे रंग के सफेद धारिया लिये होती है। पिछले पंखों पर भूरे रंग की शिराएं होती है। इल्लीयां हरे मटमैले रंग की होती है जिनके शरीर पर पीले हरे एवं नारंगी रंग की लम्बवत धारियां होती है। उदर के प्रत्येक खण्ड के दोनो ओर काले धब्बे होते है। 

लक्षण

इल्ली प्रारंभिक अवस्था में समुह में रहकर पत्तियों के पर्ण हरित पद्रार्थो को खाती है। जिससे पौधों की सभी पत्तियां सफेद जालीनूमा दिखाई देती है।

नियंत्रण

मूंग की खेती किसानो की आय का अच्छा साधन

जलवायु  मूंग की फसल सभी मौसमों में उगाई जाती है , उत्तरी भारत में इसे वर्षा ( खरीफ ) तथा ( ग्रीष्म ) ऋतू में उगाते हैं , दक्षिणी भारत में मूंग को रबी मौसम में उगाते हैं , इसकी फसल के लिए अधिक वर्षा हानिकारक होती है , ऐसे क्षेत्रों में जहाँ 60-75 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है मूंग की खेती के लिए उपयुक्त हैं पर , मूंग की फसल के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता पड़ती है , मूंग की खेती समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है , पौधों पर फलियाँ आते समय तथा फलियाँ पकते समय शुष्क मौसम तथा उच्च तापक्रम अधिक लाभप्रद होता है .

भूमि का चुनाव एवं तैयारी

मूंग की आर्गेनिक खेती

भूमि
 चुनाव -
 इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं जैसे हल्की से भारी मिट्टी पर की जाती है , उत्तरी भारत में गहरी उचित जल निकास वाली दोमट व दक्षिणी भारत की लाल मृदाऐ उपयुक्त हैं जिनमे दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है लेकिन सिंचाई का अच्छा प्रबंध होना आवश्यक है .
 तैयारी - रबी की फसल काटने के तुरंत बाद पलेवा करना चाहिए , खेत में ओट आने पर एक जुताई तथा बाद की जुताई मिट्टी पलटने वाले तवेदार हैरो तथा दूसरी जुताई देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके भली - भाँती पाटा लगाना चाहिए ताकि खेत समतल हो जाए और अधिक नमी बनी रहे .

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