सघन बागवानी- बढ़ती जनसंख्या के लिये आज की आवश्यकता
भारत फल उत्पादन के क्षेत्र मे पूरे विश्व मे दूसरे स्थान पर है। फल उत्पादन के माध्यम से लोगो के स्वास्थ्य, समृद्धि तथा सामान्य जीवन मे खुशहाली लायी जा सकती है। हमारे देश मे फलो के उत्पादन के लिये विभिन्न प्रकार की जलवायु उपलब्ध है। भारत मे जनसंख्या वृद्धि के साथ फल उतपादन भी लगातार बढ़ रही है, लेकिन प्रति व्यक्ति फलो की उपलब्धता एवं उपयोग अन्य विकसित देशो की तुलना मे काफी कम है। हमारे यहां प्रति व्यक्ति फलो की उपलब्धता केवल 85 ग्राम है। कृषि मे बागवानी एक ऐसा क्षेत्र है जिसमे किसान अपनी भूमि से अधिक से अधिक आय प्राप्त कर सकते है। प्रति व्यक्ति फलो की उपलब्धता को बढ़ाने के लिये क्षेत्रफल को बढ़ाना अत्यंत मुश्किल कार्य है लेकिन हम उत्पादन को कुछ विशेष प्रबंधन अपनाकर आसानी से बढ़ा सकते है। इसके लिये अधिक उपज देने वाली किस्मो का चयन, सही समय पर कटाई-छंटाई, वृद्धि नियामको का प्रयोग, रोग कीट प्रबंधन एवं सघन बागवानी अपनाना प्रमुख है।
‘’सघन बागवानी से तात्पर्य है कि एक निश्चित क्षेत्रफल मे आधुनिक प्रबंधन के सामंजस्य से आधिक से अधिक पौधो का समावेश करते हुए प्रति इकाई क्षेत्रफल के द्वारा गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादन प्राप्त करन”
सघन बागवानी का प्रचलन सबसे पहले सेब मे किया गया था जिसमे एक हेक्टेयर क्षेत्रफल मे काॅट-छाॅट एवं प्रबंधन की आधुनिक विधियो को अपनाकर अधिक से अधिक पौधो का समावेश करते हुये उत्पादन कई गुना अधिक प्राप्त किया गया था। वर्तमान मे भारत मे भी इस पद्धति का उपयोग प्रायः सेब, केला, पपीता, अनार, नीबू वर्गीय फल, अमरूद, लीची, आम, नाशपाती, अनानाश आदि मे किया जा रहा है। सघन बागवानी से फलो के उत्पादन मे 5-10 गुना तक वृद्धि की जा सकती है, जिसमे अपने देश की कुपोषण को दूर करने, प्रति व्यक्ति फलो की उपलब्धता बढ़ाने एवं किसानो को आत्मनिर्भर बनाने मे यह तकनीक कारगार साबित हो सकती है।
सघन बागवानी मे ध्यान देने योग्य बातेः-
- बौने किस्मो के वृक्षो/मूलवृंत या साकुरडाली का चयन करना चाहिये।
- जल्दी फलन एवं अधिक उपज देने वाली किस्मो का चयन करना चाहिये।
- पौधो मे बौनापन लाने के लिये पादप वृद्धि नियामको का प्रयोग करना चाहिये।
- सही समय पर वृक्षो की कटाई-छंटाई करते रहना चाहिये।
- भूमि की प्रकृति एवं जलवायु के अनुसार फलवृक्ष एवं प्रजातियो का चुनाव करना चाहिये।
- तकनीकी ज्ञान की जानकारी आवश्यक है। इसके लिये विषय वस्तु विशेषज्ञ या वैज्ञानिको से परामर्श लेना चाहिये।
- बाग की संस्थापना उचित पद्धति द्वारा करनी चाहिये।
मूलवंतो का चुनावः-
सघन बागवानी को सफल बनाने के लिये बौने मूलवृंतो का चुनाव करना चाहिये, इनसे फसल जल्दी तैयार हो जाती है। उदाहरण के लिये सेब की खेती मे एम-9, एम-26, एम-27, आम के लिये वेलाईकोलंबन, ओल्यूर, निलेश्वर ड्वार्फ, नीबू मे लाइ्रग ड्रेगन, किन्नो के लिये सिटरेंज, नाशपाती के लिये क्ंिवस, अमरूद मे अलाहाबाद सफेदा किस्म के लिये पूसा श्री (अनुप्लोइड-82) एवं सिडियम फा्रइड्रिचेस्थेलिएनम मूलवृंत उपयुक्त पाये गये है।
सघन बागवानी के लाभः-
सघन बागवानी से निम्न लाभ प्राप्त होते है जो इस प्रकार है-
- भूमि एवं संसाधनो का समुचित उपयोग होता है।
- प्रकाश का समुचित उपयोग होता है जिससे प्रकाश संश्लेषण अधिक होता है।
- परंपरागत विधियो की अपेक्षा सघन बागवानी मे व्यावसायिक फलन जल्दी आता है सामान्यतः परंपरागत विधियो मे व्यावसायिक फलन लगभग 10-12 वर्षो मे आता है जबकि सघन बागवानी मे 4-5 वर्षो मे आ जाता है।
- फलो की गुणवता मे वृद्धि होती है।
- अधिक पौधो का समावेश होने के कारण उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ती है।
- बौने पौधे होने के कारण कॅटाई-छॅटाई, फलो की तुड़ाई, पौध संरक्षण उपाय अपनाने मे आसानी होती है।
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Authors
सीताराम देवांगन और घनश्याम दास साहू