जेनेटिक संरक्षण से बचाए जा सकते हैं जीव जंतु साभार दैनिक जागरण
ग्लोबल वार्मिंग जीव जंतुओं के लिए काल साबित हो रहा है। भारत में सैकड़ों प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। अगर उनको बचाना है तो जेनेटिक संरक्षण पर जोर देना होगा ताकि उनकी संख्या को बढ़ाया जा सके। यह बात बरेली कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में रोहतक विश्वविद्यालय के एमिरेट्स प्रोफेसर डॉ. रवि प्रकाश ने कही। उन्होंने मधुमक्खी, बंदर, चमगादड़ की कई प्रजातियों का भी जिक्र किया।
विवि की प्रोफसर नीलिमा गुप्ता ने नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण पर चिंता जताई। कहा कि नदियों में प्रदूषण बढ़ने से पानी जहरीला होता जा रहा है। पर्यावरणविद् प्रोफेसर पालीवाल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिस कारण हिमालय से ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। पशु पक्षियों में समागम की इच्छा खत्म हो रही है, जिस कारण उनकी प्रजनन क्षमता भी घट रही है। सरदार बल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के डीन ने प्रोफेसर सुबोध कुमार भट्नागर ने ग्रीन टेक्नोलॉजी पर जोर दिया। कहा कि ऊर्जा के वैकल्पिक साधन खोजने होंगे। प्राचार्य डॉ. सोमेश यादव ने सेमिनार में आए अतिथियों को स्वागत किया। सेमिनार में डॉ. राजेंद्र सिंह, डॉ. डीके गुप्ता, डॉ. शालिनी, डॉ. राजीव यादव, डॉ. डीआर यादव और डॉ. बीनम आदि लोग मौजूद रहे।
खत्म हो रहे मछलियों के आशियाने
सेमिनार में शामिल होने आई पंडुचेरी यूनिवर्सिटी की डॉ. दिव्या सिंह ने अपने शोध को लेकर बताया कि समुद्र में कोर्रलरीफ (एक प्रकार की मूंगे की चट्टान) प्रदूषण के चलते नष्ट होते जा रहे हैं। उन्होंने अपने शोध में अंडमान के तीन हिस्सों को लिया। यहां तापमान बढ़ने से कोर्रलरीफ नष्ट होने की संख्या काफी बढ़ गई। उन्होंने एक्रोपोरा मूंगे की प्रजाति पर शोध किया है। इनके नष्ट होने में समुद्र में बढ़ रहा प्रदूषण, ई-कचरा और मानवीय क्रियाओं में बढ़ोत्तरी भी शामिल हैं। कई प्रकार की मछलियां न केवल इन मूंगों में रहती हैं बल्कि इनकी परत से भोजन भी जुटाती हैं। उन्होंने बताया कि एसिडफिएशन जो एक प्रकार का प्रदूषण है, इसकी मात्रा तेजी से समुद्र में बढ़ रही है।